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समझौते की आशंकाएं

यह बात साफ है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अमेरिका  यात्रा के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के बीच कोई परमाणु समझौता नहीं होने वाला है। भारत का अनुभव बताता है कि परमाणु समझौता इतनी आसानी...

समझौते की आशंकाएं
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 20 Oct 2015 09:00 PM
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यह बात साफ है कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की अमेरिका  यात्रा के दौरान अमेरिका और पाकिस्तान के बीच कोई परमाणु समझौता नहीं होने वाला है। भारत का अनुभव बताता है कि परमाणु समझौता इतनी आसानी से नहीं होता। उसमें बातचीत के कई दौर होते हैं, कई मुद्दों पर विवाद होते हैं, विवादों को सुलझाने की कोशिशें होती हैं, और तब जाकर ऐसा समझौता हो पाता है, जो दोनों को मान्य हो। इस प्रक्रिया में महीनों लग जाते हैं। पाकिस्तान के साथ खास बात यह है कि वहां वास्तविक सत्ता सेना के हाथ में है और किसी भी परमाणु समझौते के मसौदे को नागरिक सरकार अपने स्तर पर स्वीकार नहीं कर सकती। अमेरिकी सरकार ने भी इस बात का खंडन किया है कि ऐसा कोई समझौता पाकिस्तानी प्रधानमंत्री की इस यात्रा में होने वाला है। ऐसे समझौते की बात इन दिनों चर्चा में है और इस यात्रा में परमाणु समझौते पर बातचीत होने की पूरी संभावना है।

भारत में इस समझौते को लेकर तीव्र विरोध का माहौल है और अगर समझौते की बात आगे बढ़ी, तो इस बात की संभावना है कि यह विरोध और ज्यादा तीव्र हो। भारत में आमतौर पर राय यह है कि पाकिस्तान का परमाणु हथियारों और प्रसार के मामले में व्यवहार गैर-जिम्मेदाराना रहा है, इसलिए उसे परमाणु बिरादरी में शामिल होने का मौका नहीं दिया जाए। भारत को यह भी डर है कि ऐसे समझौते से भारत और पाकिस्तान को एक स्तर पर ला दिया जाएगा, जबकि परमाणु अप्रसार के मामले में भारत का रिकार्ड हमेशा जिम्मेदाराना रहा है। ऐसा नहीं है कि भारत के विरोध की वजह से कोई प्रस्तावित समझौता रुक जाएगा। भारत का रवैया भी ऐसे किसी समझौते के वक्त विचार का एक मुद्दा होगा, लेकिन वह निर्णायक नहीं हो सकता। इसके विपरीत कुछ रक्षा और विदेश मामलों के विशेषज्ञों का कहना है कि भारत को इस समझौते को लेकर अपनी आपत्तियां दर्ज करानी चाहिए, मगर तीव्र विरोध नहीं करना चाहिए।

पाकिस्तान को लेकर भारत में कुछ ज्यादा उग्र भावनात्मक प्रतिक्रिया होती है, इससे भारत को नुकसान होता है, क्योंकि तब भारत और पाकिस्तान एक स्तर पर आ जाते हैं। भारत पाकिस्तान से बहुत बड़ा देश है, हमारी अर्थव्यवस्था के मुकाबले पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कहीं नहीं है और रक्षा पर हमारा खर्च पाकिस्तान से सात गुना है। इसलिए पाकिस्तान से संबंधित मामलों में हमें बराबरी के स्तर पर आकर नहीं झगड़ना चाहिए, क्योंकि इससे हमारी छवि खराब होती है। अंतरराष्ट्रीय राजनय में भावना नहीं, तटस्थ विश्लेषण और राष्ट्रीय हित का महत्व होता है। ऐसे में, जानकारों का मानना है कि बजाय पूरी तरह विरोध करने के हमें इस सिलसिले में अपनी कुछ शर्तें मनवाने की कोशिश करनी चाहिए। अगर हम प्रस्तावित समझौते को सशर्त समर्थन दें, तो सुरक्षा के मामलों में अपनी कई बातें मनवा सकते हैं।

अभी तो शायद शुरुआत भर हुई है। अगर ऐसा कोई समझौता प्रस्तावित होता है, तो उसमें कई ऐसी शर्तों का होना तय है, जो पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम पर सख्त बंदिश लगाए। अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियार कार्यक्रम से सशंकित है और उसे यह भी डर है कि ये हथियार आतंकवादी संगठनों के हाथ न लग जाएं। अमेरिका पाकिस्तानी परमाणु कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय निगरानी में लाना और हथियार कार्यक्रम पर नियंत्रण करना चाहता है। देखना यह होगा कि पाकिस्तानी सेना क्या ऐसी बंदिशों को मंजूरी देगी? भारत को अपने राष्ट्रीय हितों के मद्देनजर इस सिलसिले में कदम उठाने होंगे, ताकि हमारी सुरक्षा और उपमहाद्वीप में  शांति की स्थिति बेहतर हो।

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