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नाकेबंदी का सवाल

नेपाल में संविधान को लेकर जिस तरह का विवाद और अशांति पैदा हुई है, उसके कई नतीजे नेपाल की जनता को भुगतने पड़ रहे हैं। नेपाल में जरूरी चीजों की, खासकर पेट्रोल, और रसोई गैस की भारी किल्लत हो गई है, यहां...

नाकेबंदी का सवाल
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 02 Oct 2015 12:49 AM
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नेपाल में संविधान को लेकर जिस तरह का विवाद और अशांति पैदा हुई है, उसके कई नतीजे नेपाल की जनता को भुगतने पड़ रहे हैं। नेपाल में जरूरी चीजों की, खासकर पेट्रोल, और रसोई गैस की भारी किल्लत हो गई है, यहां तक कि नेपाल सरकार ने पेट्रोल की राशनिंग शुरू कर दी है। ये चीजें भारत से सड़क के रास्ते नेपाल जाती हैं, और पिछले कुछ दिनों से भारत से ट्रक नेपाल नहीं जा रहे हैं। नेपाल में राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर यह आरोप लगाया जा रहा है कि भारत ने नेपाल की आर्थिक नाकेबंदी कर दी है। भारत सरकार ने इस आरोप को गलत बताया है। भारत सरकार का कहना है कि नेपाल में मधेसी आंदोलन के चलते ट्रकों की सुरक्षा को खतरा है, इसलिए ट्रक नेपाल नहीं जा पा रहे हैं। ट्रकों का रास्ता मधेसी बहुल इलाके से ही गुजरता है और मधेसियों ने सड़़कों को रोक रखा है।

अब सुपौल के रास्ते जाने वाले ट्रकों को नेपाल सरकार ने सुरक्षा दी है और इसलिए सौ ट्रकों का पहला काफिला नेपाल में प्रवेश कर पाया है। नेपाल में ज्यादातर जरूरी चीजें पहुंचने का एकमात्र जरिया भारत से सड़क मार्ग है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि भारत पर नाकेबंदी का आरोप लगाकर भारत विरोधी भावनाएं नेपाल में उभारी गई हों। पहले भी कई बार उग्र नेपाली दल ऐसा कर चुके हैं। इस बार भी नेपाली केबल ऑपरेटरों ने भारतीय टीवी चैनलों का बहिष्कार करके भारत विरोधी भावनाएं व्यक्त की हैं।

नेपाल की राजनीति में भारत की स्थिति काफी अजीब है। नेपाल का जनजीवन भारत पर बड़ी हद तक निर्भर है। चाहे राजनीति हो या अर्थव्यवस्था, भारत किसी न किसी रूप में जीवन के सारे क्षेत्रों में मौजूद है। ऐसे में, रिश्तों में एक तरह की जटिलता भी आ जाती है। अगर भारत सरकार किसी बात पर जोर देती है, तो नेपालियों को लगता है कि भारत उसे दबा रहा है या नीचा दिखा रहा है।
नेपाल की राजनीति भी पिछले लंबे वक्त से इतने नाजुक और अस्थिर दौर से गुजर रही है कि ऐसी परिस्थितियां बार-बार आ जाती हैं। इन विवादों का एक पक्ष नेपाल के पहाड़ी और तराई क्षेत्रों के बीच फर्क है।

तराई के लोग भारतीय मूल के हैं और भारत की सीमा के करीब होने की वजह से भी वे भारत समर्थक माने जाते हैं। इसके विपरीत पहाड़ी नेपाल के लोग अपने आप को विशुद्ध नेपाली मानते हैं और उनका नेतृत्व कभी-कभी अपने को भारत विरोधी दिखाना फायदेमंद समझता है।  यही नेता अपने को चीन के ज्यादा करीब पाते हैं। फिलहाल नेपाल में जो विवाद है, उसकी जड़ संविधान में है, जिसमें मधेसियों को पहाड़ी नेपालियों के मुकाबले राजनीतिक रूप से कमजोर स्थिति में रखा गया है। मधेसी इसके विरोध में हैं और भारत भी मधेसियों का समर्थन कर रहा है। पहाड़ी नेता जनता को भड़काने के लिए इस मुद्दे का इस्तेमाल कर रहे हैं।

नेपाली संविधान का मसला बहुत पेचीदा हो गया है। अब संविधान को बदलना टेढ़ी खीर होगी, लेकिन अगर यही संविधान लागू हो गया, तो नेपाल के मधेसियों में असंतोष बना रहेगा और पहाड़ी-मधेसी विभाजन ज्यादा गहरा और स्थायी हो जाएगा। जरूरत यह है कि भारत सरकार नेपाल के नेतृत्व से लगातार और हर स्तर पर संवाद बनाए रखे, ताकि गलतफहमियों की गुंजाइश कम रहे और भारतीय नजरिया भी नेपाली नेताओं के सामने स्पष्ट रहे।

ताजा विवाद पिछले कुछ महीनों की संवादहीनता की वजह से भी है। एक स्थिर नेपाल में भारतीय हितों की रक्षा भी हो और नेपाली भावनाओं का भी सम्मान हो, इसके लिए लगातार संवेदनशीलता के साथ हर तरह का संवाद जरूरी है। भारत और नेपाल ऐसे जुड़े हुए हैं कि एक-दूसरे की उपेक्षा करना दोनों को महंगा पड़ेगा।

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