फोटो गैलरी

Hindi Newsखुशी के पायदान पर

खुशी के पायदान पर

संयुक्त राष्ट्र का एक संस्थान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण करके हर साल सभी देशों का ‘प्रसन्नता सूचकांक’ जारी करता है। इस सूचकांक के मुताबिक, इस साल खुशी के मामले में भारत का नंबर...

खुशी के पायदान पर
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 24 Apr 2015 10:04 PM
ऐप पर पढ़ें

संयुक्त राष्ट्र का एक संस्थान अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण करके हर साल सभी देशों का ‘प्रसन्नता सूचकांक’ जारी करता है। इस सूचकांक के मुताबिक, इस साल खुशी के मामले में भारत का नंबर दुनिया में 117वां है। हैरत की बात यह है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश, यूक्रेन और इराक जैसे देश भारत से ऊपर हैं, यानी इन देशों के नागरिक भारतीयों के मुकाबले ज्यादा खुश हैं। बहुत साल पहले भूटान सरकार ने सकल राष्ट्रीय उत्पाद (जीडीपी) सूचकांक की जगह ‘सकल राष्ट्रीय प्रसन्नता सूचकांक’ की अवधारणा को प्रस्तुत किया था। उसके बाद अंग्रेज प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने सन 2010 में अपने देश में नागरिकों की प्रसन्नता के आंकड़े इकट्ठा करने की शुरुआत की। फिर यह अवधारणा जोर पकड़ गई कि सिर्फ आय नहीं, बल्कि नागरिकों की अपनी और अपने समाज की स्थिति के आकलन और संतुष्टि के स्तर को जांचा जाए। अब संयुक्त राष्ट्र के तहत कुछ अर्थशास्त्रियों की टीम नागरिकों की प्रसन्नता के स्तर को नापती है।

ऐसे आंकड़े काफी दिलचस्प होते हैं, लेकिन इनको थोड़े संदेह के साथ ही देखना जरूरी है। मसलन, कुछ साल पहले कुछ सर्वेक्षण जारी हुए थे, जिनसे पता चलता था कि भारतीय नागरिक कई सारे विकसित पश्चिमी देशों के नागरिकों के मुकाबले ज्यादा खुश और अपने भविष्य के प्रति ज्यादा आशावान थे। फिर भी इन आंकड़ों के सहारे कुछ तो विश्लेषण किया ही जा सकता है। इस सर्वेक्षण में लोगों से यह नहीं पूछा गया था कि वे कितने खुश हैं, बल्कि सर्वेक्षण करने वालों ने छह पैमाने तय किए थे, जिनके आधार पर जांच की गई थी। इनमें से कुछ पैमाने तो काफी वस्तुनिष्ठ हैं, जैसे देश की प्रति व्यक्ति औसत आय। एक और पैमाना स्वस्थ और दीर्घ जीवन की संभावना है। बाकी पैमाने व्यक्तिगत आकलन से संबंधित हैं। मसलन, सामाजिक सुरक्षा या समाज में आर्थिक उदारता, या फैसले करने की आजादी। एक और वस्तुनिष्ठ पैमाना है- भ्रष्टाचार।

इस सूची के सभी अव्वल देशों में प्रति व्यक्ति आय काफी ज्यादा है, यानी भौतिक समृद्धि, आर्थिक सुरक्षा और प्रसन्नता का सीधा रिश्ता है। इन देशों में भ्रष्टाचार भी कम है और सरकार की ओर से सामाजिक सुरक्षा काफी है। परिवार का या आर्थिक सुरक्षा का दबाव कम है, इसलिए जीवन के फैसले करने की आजादी भी ज्यादा है। इन सारे पैमानों पर भारत की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, पर हम पाकिस्तान या इराक से भी बदतर स्थिति में हैं, ऐसा मानना थोड़ा मुश्किल है। शायद इसे हम ऐसे समझ सकते हैं कि भारत में तमाम किस्म के विकल्प मौजूद हैं, लेकिन सबकी उन तक पहुंच नहीं है, इसलिए असंतोष ज्यादा है, जबकि कई सारे देशों में लोगों को विकल्पों के बारे में पता ही नहीं है, इसलिए वे अपने सीमित दायरे में खुश हैं। यह भी हो सकता है कि भारत में जितनी असमानता है, वह लोगों में असंतोष पैदा करती है। मसलन, भारत में स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च ज्यादा होता है, पर स्वास्थ्य के मानकों के आधार पर पाकिस्तान और बांग्लादेश हमसे बेहतर स्थिति में हैं।

खुशी या संतुष्टि का सीधा-सीधा रिश्ता उम्मीद और उपलब्धि के अनुपात से है। इनके बीच फासला जितना कम हो, खुशी और संतोष उतना ही ज्यादा होगा। यह फासला घटाने के दो तरीके हैं, या तो उम्मीद घटाई जाए या उपलब्धि बढ़ाई जाए। शायद भारत में पिछले कुछ साल के तेज विकास की वजह से उम्मीदें बढ़ गई हैं, लेकिन सबकी उम्मीदें पूरी नहीं हुई हैं। एक परिवर्तन से गुजर रहे समाज में असंतोष रहना स्वाभाविक है। ऐसे सर्वेक्षणों को ज्यादा गंभीरता से न लेते हुए भी अगर हम उनसे अपनी कुछ कमजोरियों के बारे में जान सकें, तो यह अच्छा ही है।

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें