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नई जगह पर नींद

यह कई लोगों का अनुभव है कि उन्हें नई जगह पर ठीक से नींद नहीं आती। ऐसा अमूमन नई जगह पर पहली रात को होता है, फिर अगली रातों में नींद बेहतर होती जाती है। कई लोगों की शिकायत होती है कि वे ट्रेन में ठीक...

नई जगह पर नींद
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 01 May 2016 06:51 PM
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यह कई लोगों का अनुभव है कि उन्हें नई जगह पर ठीक से नींद नहीं आती। ऐसा अमूमन नई जगह पर पहली रात को होता है, फिर अगली रातों में नींद बेहतर होती जाती है। कई लोगों की शिकायत होती है कि वे ट्रेन में ठीक से नहीं सो पाते। हालांकि ज्यादा सफर करने वालों को ये शिकायतें कम होती हैं। वैज्ञानिक काफी वक्त से इसकी वजह जानने की कोशिश कर रहे हैं। पिछले दिनों एक अमेरिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने आखिरकार इसकी वजह ढूंढ़ निकालने का दावा किया। इन वैज्ञानिकों ने इस बात पर गौर किया कि व्हेल, डॉल्फिन जैसी मछलियां और तमाम पक्षी जब सोते हैं, तो उनके दिमाग का दाहिना हिस्सा ही सोता है, बायां हिस्सा जागता रहता है। यह प्रतिरक्षा का एक तरीका है कि सोते वक्त दिमाग का एक हिस्सा चौकीदारी करता रहे, ताकि अगर कोई खतरा महसूस हो, तो बचाव के लिए तुरंत कुछ किया जा सके। वैज्ञानिकों को यह लगा कि हो सकता है, इंसानी दिमाग में भी ऐसा ही कुछ होता हो।

इसके बाद उन्होंने कई लोगों के साथ प्रयोग किया, जिसमें उन्हें एक स्कैनर में लगे बिस्तर पर ही सुलाया गया, जो स्कैनर लगातार उनके दिमाग की अंदरूनी हरकतों को दर्ज करता रहा। सोने वाले सभी लोगों को देर से नींद आई, नींद बार-बार टूटी और वे ठीक से सो नहीं पाए। वैज्ञानिकों ने पाया कि उनके दिमाग का दाहिना भाग तो सो गया था, लेकिन बाएं भाग में लगातार हरकत होती रही थी, यानी वह भाग जाग रहा था। अगली रात यह हरकत बहुत कम हो गई थी। प्रयोग में हिस्सा लेने वाले सभी लोगों के दिमाग में हरकत की तीव्रता अलग-अलग थी, लेकिन हरकत सभी के दिमाग में नोट की गई।

इसका अर्थ है कि यह एक आदिम प्रतिक्रिया है, जो अब तक हमारे दिमाग में जारी है। नई और अपरिचित जगह पर दिमाग पहली रात को असुरक्षित महसूस करता है, इसलिए उसका एक हिस्सा जागकर चौकीदारी करता रहता है। अगले दिन जब जगह से परिचित और सुरक्षा का भाव बढ़ जाता है, तो फिर नींद भी बेहतर हो जाती है। इंसानों और जानवरों पर इस तरह के कई प्रयोग किए गए हैं और उनसे एक बात यह सामने आती है कि नींद कोई एकसार प्रक्रिया नहीं है। दिमाग के तमाम हिस्से अलग-अलग सो सकते हैं और अलग-अलग परिस्थितियों में इस वजह से नींद का स्वरूप अलग-अलग हो सकता है।

मसलन, यह देखा गया कि बतखों के झुंड में जो बतखें बीच में होती हैं, उनका दिमाग लगभग पूरा सोता है, मगर किनारे की बतखों के दिमाग का एक हिस्सा जागता रहता है, क्योंकि कोई खतरा आने पर पहली शिकार वही हो सकती हैं। इसी तरह, सील जब किनारे पर सोती हैं, तो उनका पूरा दिमाग सोता है, लेकिन जब वे पानी पर सोती हैं, तो उनकी जो आंख पानी की ओर होती है, वह खुली रहती है, ताकि शिकारी शार्क मछलियों को देख सके। प्रकृति ने जीवों को बचाव के लिए यह साधन दिया है, जो विरासत में हमें मिला है, और जिसकी वजह से हम होटल के कमरे में पहली रात ठीक से सो नहीं पाते।

इसका अर्थ है कि जब हम सोते हैं, तो इसका अर्थ यह नहीं कि हमारा सारा दिमाग एक साथ सो जाता है। हो सकता है कि कुछ हिस्से गहरी नींद में सोएं, कुछ की नींद कच्ची हो और कुछ जाग रहे हों। हो सकता है कि इस शोध से नींद से जुड़ी कई समस्याओं और नींद में चलने जैसी बीमारियों को समझने व उनके इलाज में मदद मिले। फिलहाल हम इतना ही समझ सकते हैं कि नई जगह पर ठीक से नींद न आना स्वाभाविक बात है और यह हमें हमारी जैविक संरचना के करोड़ों साल के विकास में विरासत में मिली है। इसे कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं है।
 

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