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सियाचिन में जूझना

सियाचिन में बर्फीले तूफान की वजह से दस भारतीय सैनिकों की मौत से फिर एक बार यह मसला सामने आ गया है कि वहां सैनिक कितने खतरनाक हालात में रहते हैं। सियाचिन को दुनिया की सबसे ऊंची युद्ध भूमि कहा जाता है,...

सियाचिन में जूझना
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 05 Feb 2016 09:36 PM
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सियाचिन में बर्फीले तूफान की वजह से दस भारतीय सैनिकों की मौत से फिर एक बार यह मसला सामने आ गया है कि वहां सैनिक कितने खतरनाक हालात में रहते हैं। सियाचिन को दुनिया की सबसे ऊंची युद्ध भूमि कहा जाता है, जहां भारत और पाकिस्तान के तकरीबन 2,000 सैनिक हर वक्त तैनात रहते हैं।

सियाचिन में काफी वक्त से कभी-कभार दोनों सेनाओं में झड़पें होती रहती हैं, हालांकि वहां युद्ध की वजह से कम, खराब मौसम की वजह से ज्यादा सैनिक मारे जाते हैं। सैनिकों के बर्फीले तूफान में मरने की ताजा घटना पहली नहीं है। सन 1984 में पहली बार भारत ने सियाचिन में सक्रिय सैनिक मौजूदगी दर्ज की, उसके बाद से अब तक 800 से ज्यादा भारतीय सैनिक मौसम की मार का शिकार हो चुके हैं। भारत की तरह पाकिस्तान के सैनिक भी सियाचिन के बीहड़ मौसम का शिकार होते रहे हैं। सियाचिन में सबसे बड़ा हादसा सात अप्रैल, 2012 को हुआ था, जब बर्फीले तूफान में फंसकर 129 पाकिस्तानी सैनिक और 11 नागरिक मारे गए थे। दोनों सेनाओं के बीच युद्ध विराम है, लेकिन दोनों देशों की सेनाओं को लगातार प्रकृति से युद्ध करना पड़ता है।

इस स्थिति से बचने का एकमात्र तरीका यह है कि भारत व पाकिस्तान, दोनों ही सियाचिन से अपनी सेनाएं हटा लें। इस नजरिये से कई बार बातचीत भी की गई। सन 2012 के हादसे के बाद तत्कालीन पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जनरल कियानी ने फिर एक बार यह सुझाव दिया था। सन 1984 के पहले सियाचिन में कोई सैनिक उपस्थिति नहीं थी। दरअसल, सियाचिन ग्लेशियर के ठीक पश्चिम में भारत और पाकिस्तान के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा का जो आखिरी बिंदु है, वह पूरी उत्तरी सीमा रेखा तक नहीं है। सन 1949 के कराची समझौते में जो वास्तविक नियंत्रण रेखा स्वीकार की गई थी, उसमें इस हिस्से पर इसलिए ध्यान नहीं दिया गया, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र के अधिकारी यह मानते थे कि इस दुर्गम इलाके में झगड़े की कोई आशंका नहीं है।

समस्या तब शुरू हुई, जब सन 1967 में कुछ अमेरिकी नक्शों में सियाचिन ग्लेशियर को पाकिस्तानी सीमा में दिखाना शुरू किया गया। भारत ने इन नक्शों को गलत करार दिया, मगर पाकिस्तान ने अपनी तरफ से सियाचिन पर चढ़ाई के लिए विदेशी पर्वतारोहियों को इजाजत देना शुरू कर दिया। इसके बाद भारत ने 1984 में 'ऑपरेशन मेघदूत' के जरिए सियाचिन पर अपनी सैनिक चौकियां बनाईं और तब से पूरा सियाचिन ग्लेशियर भारत के कब्जे में है। उसके बाद कई बार भारत और पाकिस्तान के बीच सियाचिन पर झड़पें हुई हैं, जिनमेें पाकिस्तान ने कुछ सामरिक महत्व के ठिकानों पर कब्जे की कोशिश की, लेकिन भारत का कब्जा बना रहा। यह माना जाता है कि 'ऑपरेशन मेघदूत' के बाद लगभग 1,000 वर्ग किलोमीटर का एक ऐसा हिस्सा भारत के कब्जे में आ गया, जिस पर पाकिस्तान दावा करता रहा है।

कारगिल में पाकिस्तान की यही रणनीति थी कि अगर पाकिस्तान वहां कब्जा कर ले, तो उसके बदले सियाचिन से भारत को हटने पर मजबूर किया जाए। कारगिल में पाकिस्तानी रणनीति तो विफल रही, लेकिन इससे सियाचिन से सेनाओं को हटाने की योजना खटाई में पड़ गई, क्योंकि यह शक पैदा हो गया कि पाकिस्तान फिर कब्जा जमाने की कोशिश कर सकता है। इस अविश्वास की कीमत सैनिकों की तैनाती के रूप में चुकानी पड़ रही है, जहां तापमान -50 डिग्री सेल्शियस तक पहुंच जाता है और बर्फीले अंधड़ आते रहते हैं। दोनों देशों के बीच मित्रता और विश्वास ही वह तरीका है, जिससे इन सैनिकों और इनके परिवारों को राहत मिल सकती है।

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