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सिद्धू का सिक्सर

              भारतीय जनता पार्टी के सांसद और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू का राज्यसभा से इस्तीफा भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है। पंजाब में...

सिद्धू का सिक्सर
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 19 Jul 2016 11:07 PM
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भारतीय जनता पार्टी के सांसद और पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू का राज्यसभा से इस्तीफा भाजपा के लिए एक बड़ा झटका है। पंजाब में भाजपा की स्थिति वैसे भी बहुत अच्छी नहीं है। इन दिनों आम धारणा यह है कि वहां अकाली दल-भाजपा सरकार बहुत अलोकप्रिय हो गई है और अगले विधानसभा चुनावों में इस गठबंधन के आसार कुछ ठीक नहीं हैं। सरकार भ्रष्टाचार, मनमानी व कुशासन के तमाम आरोपों से घिरी है और पंजाब में बढ़ती हुई नशाखोरी की समस्या ने उसकी विश्वसनीयता को बुरी तरह प्रभावित किया है। इनमें से ज्यादातर समस्याओं के लिए अकाली दल के नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, मगर सरकार में भागीदार होने की वजह से भाजपा भी जनता के निशाने पर है। ऐसे में, नवजोत सिंह सिद्धू का जाना पार्टी को ज्यादा कमजोर कर सकता है। स्थानीय भाजपा नेता काफी वक्त से यह सोचते रहे हैं कि अगर भाजपा पंजाब में अकाली दल से अलग हो जाए, तो वह बादल सरकार की नाकामियों व अकाली नेताओं पर लग रहे आरोपों के दागों से बच जाएगी। 2014 के लोकसभा चुनावों के बाद शायद ऐसा विचार केंद्रीय नेताओं के दिमाग में भी आया था, जब भाजपा ने कई मुद्दों पर अकाली दल का विरोध शुरू कर दिया था, लेकिन राज्यसभा के अंकगणित ने उसे समीकरण न बदलने पर मजबूर कर दिया।

सिद्धू पंजाब के ऐसे भाजपा नेता थे, जिनका अकालियों से खुला विरोध रहा, खासकर बादल परिवार के विवादास्पद रिश्तेदार विक्रम सिंह मजीठिया से उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा। अकालियों के विरोध की वजह से ही दो बार चुनाव जीतने के बावजूद तीसरी बार सिद्धू को अमृतसर लोकसभा क्षेत्र से सन 2014 में टिकट नहीं दिया गया। वित्त मंत्री अरुण जेटली उस सीट से चुनाव लड़े और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अर्मंरदर सिंह से हार गए। सिद्धू उसके बाद से ही विद्रोही रुख अपनाए हुए थे और यह कहा जाने लगा था कि वह ‘आप’ के सदस्य बन सकते हैं। उन्हें मनाने के लिए भाजपा ने अभी तीन महीने पहले ही राज्यसभा में मनोनीत किया था, लेकिन शायद सिद्धू को यह लग रहा होगा कि अकाली दल से उनके खराब रिश्तों की वजह से पंजाब भाजपा में भी उनके लिए बहुत संभावनाएं नहीं हैं, क्योंकि अकाली नेता उन्हें कोई भी महत्वपूर्ण पद देने का विरोध कर सकते हैं। ‘आप’ पंजाब में तेजी से उभरती हुई ताकत है और अगर परिस्थितियां अनुकूल रहीं, तो हो सकता है कि इन चुनावों में वह पंजाब की सबसे बड़ी ताकत के रूप में उभरे। इसकी वजह यह है कि जहां लोग अकाली-भाजपा सरकार से असंतुष्ट हैं, वहीं पंजाब में कांग्रेस भी बहुत संगठित और ऊर्जावान नहीं है। कांग्रेस की विश्वसनीयता भी बहुत ज्यादा नहीं है। पहली बार चुनाव लड़ने के बावजूद ‘आप’ ने सन 2014 के चुनावों में पंजाब में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था। उसके चार उम्मीदवार चुनाव जीते और अन्य कई ने अच्छे-खासे वोट पाए।

अगर अटकलें सही हैं, तो नवजोत सिंह सिद्धू ‘आप’ के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार हो सकते हैं। ‘आप’ को इससे फायदा यह होगा कि उसे एक लोकप्रिय चेहरा और ऊर्जावान प्रचारक मिल जाएगा। सिद्धू की राजनीतिक छवि साफ-सुथरी है और अकाली दल के खिलाफ मोर्चा खोले रहने की वजह से उनकी विश्वसनीयता भी होगी। राज्यसभा की सदस्यता छोड़कर उन्होंने राजनीतिक साहस तो दिखाया ही है, जिसका उन्हें फायदा मिल सकता है। पंजाब में अकाली दल से असंतुष्ट भाजपाइयों को भी मुखर होने का मौका इस कदम से मिल सकता है। भाजपा के लिए अब पंजाब की लड़ाई और ज्यादा मुश्किल हो गई है।

 

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