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विचार: कुनबे में कलह

उत्तर प्रदेश के सियासी घमासान को देखने के दो तरीके हो सकते हैं। एक तो यह कि इसे पूरी तरह सत्ता में बैठे परिवार का अंदरूनी झगड़ा मान लिया जाए। इसे प्रदेश के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव के परिवार की...

विचार: कुनबे में कलह
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 24 Oct 2016 02:11 PM
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उत्तर प्रदेश के सियासी घमासान को देखने के दो तरीके हो सकते हैं। एक तो यह कि इसे पूरी तरह सत्ता में बैठे परिवार का अंदरूनी झगड़ा मान लिया जाए। इसे प्रदेश के सबसे बड़े नेता मुलायम सिंह यादव के परिवार की वैसी ही सियासी लड़ाई मान ली जाए, जैसी हमने कुछ समय पहले तमिलनाडु में एम करुणानिधि के परिवार में देखी थी।

अभी तक तो इसे इसी रूप में देखा जा रहा था और यह माना जा रहा था कि परिवार के बड़े-बुजुर्ग की तरह मुलायम सिंह यादव आगे बढ़ेंगे और सारी कड़वाहट खत्म हो जाएगी। खुद मुलायम सिंह भी यही कोशिश कर रहे थे और एक समय लगने भी लगा था कि मामला अब खत्म ही होने वाला है। लेकिन कल लखनऊ में जिस तरह की राजनीति हुई, और दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी चालें चलीं, उनको देखते हुए यही लगता है कि अब बात शायद उनकी कोशिशों से कहीं आगे बढ़ गई है। समाजवादी पार्टी के इस घमासान को देखने का दूसरा नजरिया यह हो सकता है कि यह दो पीढ़ियों का संघर्ष है, जो ऐन चुनाव से पहले सतह पर आ गया है। एक तरफ शिवपाल यादव हैं, जो पुरानी तरह की राजनीति के समर्थक हैं। वोट लेने और सरकार चलाने तक उनके सारे औजार वही हैं, जिनका एक जमाने से भारतीय राजनीति में दबदबा रहा है। दूसरी तरफ, पार्टी के नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं, जो पद संभालने के बाद से नई तरह की राजनीति करते आए हैं। सरकार चलाने और राजनीति करने, दोनों में उन्होंने अपनी छवि का पूरा-पूरा ख्याल रखा है। बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल करने और महिलाओं की सुरक्षा के लिए कॉल सेंटर खोलने जैसे कदम उनकी आधुनिक सोच को दर्शाते हैं।

समाजवादी पार्टी में घमासान चूंकि अभी जारी है, इसलिए ठीक से यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि यह लड़ाई सिर्फ परिवार के भीतर का मामला होकर रह जाएगी या फिर दो पीढ़ियों के संघर्ष के रूप में यह किसी अंजाम तक पहुंचेगी। कहीं न कहीं यह उम्मीद बची हुई है कि अगर मुलायम सिंह यादव सक्रिय हुए, तो मामला यहीं पर खत्म हो सकता है। दोनों पक्षों के बीच मेल-जोल की कोशिशों के कुछ संकेत मिले भी हैं और कुछ फॉर्मूलों की चर्चा भी हो रही है। एक-दूसरे से शिकवे-शिकायतों के बावजूद दोनों पक्ष इस बात को समझते ही होंगे कि चुनाव से ठीक पहले इस तरह का घमासान उन्हें कितना नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि, यह भी माना जा रहा है कि आगामी चुनाव में अपने-अपने लोगों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिलाने की राजनीति इस लड़ाई का एक बड़ा कारण है। 

कुछ भी हो, यह घमासान प्रदेश के विरोधी दलों के लिए एक अच्छी खबर है। वे यह मान रहे हैं कि कुछ महीने बाद जब प्रदेश में चुनाव होंगे, तब समाजवादी पार्टी को जितना परेशान एंटी इन्कंबेन्सी नहीं करेगी, उससे कहीं ज्यादा नुकसान उसे इस घमासान की वजह से पार्टी की छवि की पहुंची क्षति के कारण होगा। इसी के साथ यह गणना भी शुरू हो गई है कि किस वर्ग के कितने मतदाता समाजवादी पार्टी का साथ छोड़ सकते हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने पहली बार पूर्ण बहुमत हासिल किया था और बिना किसी सहयोगी के अपने बूते पर सरकार बनाई। उसकी सरकार के पास गिनाने के लिए कई उपलब्धियां और आंकड़े भी हैं। इन उपलब्धियों और आंकड़ों को गिनाने के विज्ञापन मीडिया में शुरू भी हो गए हैं, जो बताते हैं कि समाजवादी पार्टी विधानसभा चुनाव की तैयारियां किस तरह से कर रही है। लेकिन इस घमासान से उन सारी तैयारियों पर पानी फिर सकता है। इस कलह में चाहे जो भी हो, पार्टी के नेताओं की असली ताकत तो चुनाव के नतीजों से पता लगेगी।

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