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पाकिस्तान में हिंदू विवाह

बम धमाके, नरसंहार, आतंकवाद- पाकिस्तान से आने वाली बुरी खबरें सुनने के हम इस कदर आदी हो गए हैं कि वहां की अच्छी खबरें भी अक्सर नजरंदाज हो जाती हैं। पाकिस्तान में हिंदू विवाह कानून का बन जाना एक ऐसी ही...

पाकिस्तान में हिंदू विवाह
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 20 Mar 2017 11:50 PM
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बम धमाके, नरसंहार, आतंकवाद- पाकिस्तान से आने वाली बुरी खबरें सुनने के हम इस कदर आदी हो गए हैं कि वहां की अच्छी खबरें भी अक्सर नजरंदाज हो जाती हैं। पाकिस्तान में हिंदू विवाह कानून का बन जाना एक ऐसी ही अच्छी खबर है, जिस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा सका। 1947 में देश के विभाजन के वक्त ज्यादातर हिंदू और सिख उस हिस्से से चले आए थे, जिस पर पाकिस्तान बनाया गया। लेकिन एक छोटी आबादी किन्हीं कारणों और स्थितियों में वहां रह गई थी। बाद के दिनों में यह आबादी कम होती गई, फिर भी इनकी एक ठीक-ठाक संख्या अब भी वहां बनी हुई है। एक ऐसे देश में, जहां बाकायदा एक मजहब को सरकारी प्रश्रय मिला हो, वहां धार्मिक अल्पसंख्यकों को कई तरह की दिक्कतें होती हैं। पाकिस्तान जैसे देश में ये दिक्कतें कुछ ज्यादा ही हो सकती हैं, जो एक तरफ विभाजन के तनाव की उत्तेजना से बाहर न आ पाया हो और दूसरी तरफ जहां मजहबी कट्टरता लगातार बढ़ रही हो। पाकिस्तान में रहने वाले हिंदुओं की तमाम दिक्कतों में एक बड़ी दिक्कत उनके शादी-विवाह का मसला था। उनके रीति-रिवाजों को सरकारी नियम-कायदों में मान्यता नहीं प्राप्त है, इसलिए उनकी सबसे बड़ी दिक्कत शादी रजिस्टर कराने को लेकर आती थी। हिंदू विवाह कानून अब इनसे उन्हें छुटकारा दिला देगा। इससे उनके रीति-रिवाजों को कानूनी मान्यता मिल गई है और दूसरे, उसकी रजिस्ट्री के लिए विशेष प्रावधान कर दिए गए हैं।

बेशक, यह एक अच्छी खबर है, लेकिन इसके दूरगामी अर्थ निकालने की कोई जरूरत नहीं है। इसके बावजूद वहां के अल्पसंख्यकों पर बढ़ती कट्टरता का खतरा पहले की तरह ही मंडराता रहेगा। वहां की सरकार और सेना इस मजहबी कट्टरता का इस्तेमाल राजनीतिक व कूटनीतिक हथियार के रूप में बंद कर देगी, इस पर सोचा भी नहीं जा सकता। इस बात की कोई उम्मीद नहीं कि पाकिस्तान ईशनिंदा कानून में कोई ढील देगा। कुलजमा बात इतनी है कि पाकिस्तान के बीच कुछ ऐसी ताकतें सक्रिय हैं, जो समाज के आंतरिक टकरावों को कम करना चाहती हैं, यह उसी का नतीजा है। जब से पाकिस्तान में चुनी हुई सरकारें बनने लगी हैं, ऐसे प्रयास दिखने लगे हैं। खासकर, नवाज शरीफ की सरकार बनने के बाद से। लोकतंत्र के दबाव किस तरह के होते हैं, इसे पाकिस्तान के ताजा उदाहरण से समझा जा सकता है। हिंदू विवाह कानून पर पाकिस्तानी राष्ट्रपति के दस्तखत से चंद रोज पहले एक वीडियो इंटरनेट पर बहुत चर्चित हुआ था, जिसमें प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पाकिस्तानी हिंदू समुदाय द्वारा मनाए जा रहे होली-उत्सव में पहुंचे थे। वीडियो में दिखाया गया है कि नवाज शरीफ सम्मेलन में विराजमान हैं और गायत्री मंत्र का पाठ चल रहा है। 

पाकिस्तान के हिंदुओं के लिए यह विवाह कानून कितना महत्वपूर्ण है, इसे इससे समझा जा सकता है कि अब पाकिस्तान का सिख समुदाय भी सिख विवाह कानून बनाए जाने की मांग कर रहा है। जबकि एक दूसरे मोर्चे पर पाकिस्तान में रहने वाले सिख समुदाय को एक अलग लड़ाई लड़नी पड़ रही है। पाकिस्तान 19 साल बाद जनगणना की तैयारी कर रहा है। इस जनगणना का जो फॉर्म तैयार हुआ है, उसमें बाकी सभी धर्मों का तो जिक्र है,पर सिख धर्म का नहीं। जाहिर है, धर्म के मामले में सिखों की गिनती ‘अन्य’ के तहत की जाएगी। सिखों को डर है कि इससे पाकिस्तान में उनकी आबादी का प्रामाणिक आंकड़ा हमेशा के लिए गायब हो जाएगा। इससे योजनाओं-नीतियों में उनकी अनदेखी भी हो सकती है। वहां के सिख इसका विरोध कर रहे हैं, पर उनकी आवाज सुनता फिलहाल कोई नहीं दिख रहा।

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