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बढ़ता पागलपन

नफरत और पागलपन एक-दूसरे के हमजोली होते हैं और अमेरिका में आजकल इन दोनों का ही तांडव दिख रहा है। अमेरिका के कैन्सस शहर में जिस तरह से एक बंदूकधारी ने श्रीनिवास कुचीभोटला की हत्या की और उनके साथी आलोक...

बढ़ता पागलपन
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 25 Feb 2017 12:55 AM
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नफरत और पागलपन एक-दूसरे के हमजोली होते हैं और अमेरिका में आजकल इन दोनों का ही तांडव दिख रहा है। अमेरिका के कैन्सस शहर में जिस तरह से एक बंदूकधारी ने श्रीनिवास कुचीभोटला की हत्या की और उनके साथी आलोक मदसानी को घायल कर दिया, उसे एक सिरफिरे की करतूत भर नहीं कहा जा सकता। कहीं न कहीं उसके पीछे वह माहौल है, जो न सिर्फ नफरत को, बल्कि नफरत से जुड़े अपराधों को तेजी से बढ़ा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप हालांकि ऐसे अपराधों की निंदा करते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों में इन अपराधों में जिस तरह से बढ़ोतरी हुई है, वह बताती है कि इसका बड़ा कारण वह राजनीति है, जो ट्रंप ने अमेरिका में शुरू की है। जब से ट्रंप ने सत्ता संभाली है, ऐसे अपराध बड़ी तेजी से बढ़े हैं। आंकडे़ बताते हैं कि अमेरिका में नफरत से जुड़े अपराधों की संख्या जहां पहले उंगलियों पर गिनी जा सकती थी, वहीं अब हर रोज 200 से ज्यादा इस तरह के अपराध हो रहे हैं। ट्रंप के सत्ता संभालने के नौ दिनों के भीतर ही अमेरिका में 867 नफरत से जुड़े अपराध दर्ज किए गए। खुफिया सेवा के प्रमुख रॉबर्ट बायस ने भी ट्रंप के राष्ट्रपति चुने जाने के बाद ऐसे अपराधों में 115 फीसदी की वृद्धि की बात स्वीकार की है। श्रीनिवास कुचीभोटला की हत्या बताती है कि अपराध सिर्फ बढ़ ही नहीं रहे, बल्कि अपराधी ज्यादा निडर हो रहे हैं और ज्यादा खतरनाक हमले कर रहे हैं।
मौका-ए-वारदात पर मौजूद लोगों के अनुसार, हत्यारा गोलियां चलाते समय चिल्ला रहा था- मेरे देश से दफा हो जाओ। इस चिल्लाहट को उसकी निजी खुन्नस भर नहीं माना जा सकता। इसमें उस माहौल की झलक भी देखी जा सकती है, जो इन दिनों अमेरिका में रचा जा रहा है। एक ऐसा माहौल, जिसमें दुनिया भर से अमेरिका में आकर बसने वालों की भूमिका को नजरंदाज किया जा रहा है। यह माना जा रहा है कि वे अमेरिका के लोगों के रोजगार छीन रहे हैं। उनको रोकने और उनसे मुक्ति पाने की तरह-तरह की कोशिशें हो रही हैं। इसके लिए तमाम कानूनी रास्ते तलाशे जा रहे हैं। कहीं एच 1बी वीजा के नियम बदले जा रहे हैं, तो कहीं हर साल जारी होने वाले ग्रीन कार्ड (अस्थायी नागरिकता) की संख्या में कटौती करने की बात चल रही है। ऐसे देशों की फेहरिस्त बन रही है, जहां से लोगों के आने पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी जाए। जो अमेरिका दुनिया भर की प्रतिभाओं को आकर्षित करके उनके कौशल की बदौलत विश्व अर्थव्यवस्था पर राज करने के लिए जाना जाता रहा है, वही अब उस संकीर्ण सोच की गिरफ्त में है, जो अमेरिकावासियों के अलावा किसी को नहीं देख रही।
श्रीनिवास कुचीभोटला एक प्रतिभाशाली इंजीनियर थे, जो जीपीएस सिस्टम बनाने वाली विश्व प्रसिद्ध कंपनी गारमीन इंटरनेशनल के लिए काम कर रहे थे। ऐसी लाखों भारतीय प्रतिभाएं इस समय अमेरिका में हैं और कैन्सस की घटना के बाद वे दहशत में होंगी। यही हाल भारत में रह रहे उनके  परिजनों का होगा, जो हर रोज उनके फोन का इंतजार करते हैं। ऐसे मौकों पर भारत सरकार और विदेश मंत्रालय उनकी हरसंभव मदद की कोशिश भी करते हैं। कई बार तो युद्ध से घिरे देशों से भारतीयों को बड़े पैमाने पर निकालने का काम भी उन्हें काफी मुश्किल परिस्थितियों में करना पड़ता है। ऐसे में, हमेशा यही सवाल उठता है कि क्या भारतीय प्रतिभाओं का विदेश और खासकर विकसित देशों में जाना सचमुच जरूरी है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उनके कौशल का फायदा सात समुंदर पार के किसी देश की बजाय खुद भारत ही उठाए? खासकर तब, जब उनकी शिक्षा, उनकी प्रतिभा और उनके कौशल में खुद भारत ने काफी निवेश किया है।  

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