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काले धन की पहेली

उम्मीद थी कि नोटबंदी से काले धन की पहेली कुछ सुलझेगी, विवाद सिर्फ इसे लेकर था कि किस हद तक सुलझेगी? लेकिन अब लग रहा है कि यह पहेली और ज्यादा उलझती जा रही है। जिस समय नोटबंदी की घोषणा हुई, उस समय यह...

काले धन की पहेली
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 14 Dec 2016 10:02 PM
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उम्मीद थी कि नोटबंदी से काले धन की पहेली कुछ सुलझेगी, विवाद सिर्फ इसे लेकर था कि किस हद तक सुलझेगी? लेकिन अब लग रहा है कि यह पहेली और ज्यादा उलझती जा रही है। जिस समय नोटबंदी की घोषणा हुई, उस समय यह कहा गया था कि 1000 रुपये और 500 रुपयों के जो बड़े नोट प्रचलन में हैं, उनमें उनका कुल मूल्य 15.44 लाख करोड़ रुपये है। उम्मीद थी कि इसमें से जो सफेद धन है, वह बैंकों में आ जाएगा और जिनके पास काला धन है, वह रद्दी बन जाएगा। देश में कितना काला धन है, यह हमेशा ही विवाद का मुद्दा रहा है। कुछ आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल संपदा में 38 प्रतिशत से ज्यादा काला धन है। देश में मौजूद नकदी में कितना काला धन है, इसका कोई सर्वमान्य अनुमान हमारे पास नहीं है।

इसलिए नोटबंदी की घोषणा के बाद यह कहा जा रहा था कि बैंकों तक न पहुंच पाने वाली रकम तीन से पांच लाख करोड़ रुपये के बीच होगी, यानी लगभग 18 से 32 प्रतिशत के बीच। लेकिन ताजा आंकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे हैं। बड़े नोटों को बैंकों में जमा करने के लिए 30 दिसंबर तक का समय दिया गया था। इस हिसाब से तकरीबन 70 प्रतिशत समय बीत चुका है। लेकिन रिजर्व बैंक के आंकड़े बता रहे हैं कि लगभग 80 प्रतिशत पुराने बड़े नोट बैंकों में पहुंच चुके हैं। अभी दो हफ्ते का समय बाकी है, जिसमें यह प्रतिशत ऊपर जाएगा ही। यह जरूर है कि अब बैंकों में पुराने नोटों के जमा होने की रफ्तार उतनी नहीं होगी, जितनी शुरुआत में थी। लेकिन सवाल अपनी जगह है कि जिसे हम काला धन मानकर निशाने पर ले रहे थे, वह गया कहां?

इसके बहुत सारे जवाब दिए जा रहे हैं। कई उदाहरण भी दिए जा रहे हैं कि कैसे लोगों के जनधन खातों में अचानक बहुत सारा पैसा पहुंच गया और कैसे कुछ लोगों ने बैंकिंग व्यवस्था में ही पुराने नोट व्यवस्थित करने के चोर दरवाजे ढूंढ़ लिए। इस तरह के घपले निश्चित तौर पर हुए होंगे, लेकिन उनका अनुपात या प्रतिशत कितना है, यह हम अभी नहीं जानते। हम यह भी नहीं जानते कि हमारी टैक्स व्यवस्था को इसमें से कितने धन को वास्तव में काला घोषित कर पाएगी और कितना उजले के रूप में अर्थव्यवस्था में सक्रिय हो जाएगा? अर्थशास्त्री अब उस परिदृश्य पर भी विचार करने लगे हैं, जिसमें यह हो सकता है कि पुराने बड़े नोटों के रूप में जितना भी धन प्रवाह में है, लगभग वह सारा ही बैंकों में पहुंच जाए। ऐसे में और कुछ भले ही न हो, लेकिन सरकार की सारी कवायद पर प्रश्नचिन्ह जरूर लग जाएगा। यह तो पहले से ही कहा जा रहा है कि नोटबंदी की रणनीति में अपनी नकदी को ठिकाने लगाने की काले धन वालों की क्षमता को नजरअंदाज किया गया। तो क्या नोटबंदी की पूरी कवायद से कोई फायदा नहीं मिला?

ऐसा कहा जा रहा है कि इससे भविष्य में कई फायदे होंगे, उन फायदों को अगर छोड़ भी दें, तो एक फायदा तो साफ तौर पर सामने दिख रहा है। अब हमारे पास लोगों के धन का पूरा हिसाब है, हमें पता है कि किसके खाते में कितना धन है। बेशक इसमें बहुत से लोगों की काली कमाई भी होगी, या कुछ लोगों के खातों में ऐसा धन भी होगा, जो उनकी अपनी कमाई नहीं, बल्कि किसी दूसरे का काला धन है। जो भी हो, अब हमारे पास हर रुपये का हिसाब है। यह भी हो सकता है कि इसमें काले और सफेद को अलग करने की कोई बड़ी प्रक्रिया आगे चलकर चलानी पडे़। 30 दिसंबर तक देश की नकदी का सारा हिसाब-किताब खातों में चढ़ चुका होगा। यहां से हम वह शुरुआत कर सकते हैं, जिसमें सब कुछ बैंकिंग व्यवस्था में दर्ज रहे व आगे और काले धन का निर्माण न हो।
 

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