फोटो गैलरी

Hindi Newsमुनाफाखोरी के खिलाफ

मुनाफाखोरी के खिलाफ

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों की अर्जी पर जो फैसला सुनाया है, वह मेडिकल कॉलेजों में भर्ती के लिए एक परीक्षा के उसके पिछले फैसले के क्रम में ही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि...

मुनाफाखोरी के खिलाफ
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 03 May 2016 08:51 PM
ऐप पर पढ़ें

सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के निजी मेडिकल कॉलेजों की अर्जी पर जो फैसला सुनाया है, वह मेडिकल कॉलेजों में भर्ती के लिए एक परीक्षा के उसके पिछले फैसले के क्रम में ही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार को निजी संस्थानों में भर्ती के नियम, उनकी फीस वगैरह तय करने का अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट के दोनों फैसलों में एक ही दृष्टिकोण स्पष्ट होता है कि शिक्षा के व्यवसायीकरण पर नियंत्रण होना चाहिए। यह कोई रहस्य नहीं है कि देश के ज्यादातर निजी संस्थान मुनाफा कमाने के लिए खोले गए हैं और उनमें से ज्यादातर मुनाफा कमाने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं। मुनाफाखोरी की इस प्रवृत्ति का सबसे बड़ा खामियाजा छात्र और उनके परिवार उठाते हैं और इसका शिक्षा की गुणवत्ता पर भी बुरा असर होता है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में एक महत्वपूर्ण बात यह कही है कि निजी शिक्षा संस्थान चलाने को पेशा तो कहा जा सकता है, लेकिन उसे व्यापार नहीं कहा जा सकता। इस पेशे को मुनाफे के लिए चलाना गलत है और सरकार को यह हक है कि वह यह सुनिश्चित करे कि निजी संस्थान मुनाफाखोरी न करें और कैपिटेशन फीस वगैरह न लें।

आजादी के पहले या आजादी के कुछ वर्षों बाद तक जितने भी निजी शैक्षणिक या चिकित्सा संस्थान खोले गए थे, वे समाज की भलाई के उद्देश्य से खोले गए थे, मुनाफा कमाना उनका मकसद नहीं था। तब तक समाज में यह भावना थी कि लोगों को शिक्षित करना या बीमारों का इलाज करना समाज सेवा या पुण्य का काम है। अब भी दुनिया के कई देशों में शिक्षा या चिकित्सा संस्थानों को मुनाफा कमाने के लिए नहीं खोला जा सकता। भारत में सरकार ने शुरू से ही शिक्षा व चिकित्सा के क्षेत्र में बहुत कम निवेश किया, धीरे-धीरे यह निवेश और कम होता गया। नतीजा यह हुआ कि दोनों ही क्षेत्रों में निजीकरण की बाढ़ आ गई। इसके दो नतीजे हुए। पहला यह कि आम भारतीय की आय का बड़ा हिस्सा बच्चों की पढ़ाई या बीमारी के इलाज के लिए खर्च होने लगा। सरकारी आंकडे़ बताते हैं कि लोगों के गरीबी की रेखा के नीचे जाने की एक बड़ी वजह परिवार के किसी सदस्य की बीमारी होती है।

इसी तरह, बच्चों की शिक्षा पर होने वाला खर्च भी लाखों-करोड़ों रुपयों में पहुंच गया है। निजीकरण का दूसरा नतीजा यह हुआ कि भारतीयों के स्वास्थ्य और शिक्षा का स्तर तेजी से गिरने लगा। इसकी वजह यह है कि ज्यादातर निजी संस्थान अपना मुनाफा बढ़ाने के लिए ज्यादा पैसा लेकर कम गुणवत्ता की सेवाएं देते हैं। निजी संस्थानों में दाखिले में धांधली पैसा कमाने का सबसे बड़ा जरिया है, क्योंकि इस तरह संस्थान ज्यादा पैसा देने वाले छात्र को दाखिला देने का अपना अधिकार बनाए रखते हैं। सुप्रीम कोर्ट के ताजा फैसले भर्ती में धांधली रोकने में मदद करेंगे, साथ ही निजी मेडिकल कॉलेजों को मनमानी फीस लेने से रोकने में भी मदद कर सकते हैं, बशर्ते कि सरकारें इस मामले में गंभीर हों।

निजी मेडिकल कॉलेजों को नियंत्रित करने का काम मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया यानी एमसीआई को करना चाहिए, लेकिन एमसीआई खुद अराजकता और भ्रष्टाचार में डूबी हुई है। एमसीआई ने चिकित्सा शिक्षा की गुणवत्ता और मर्यादा को संभालने की बजाय मुनाफाखोरी और स्तरहीनता बढ़ाने का ही काम किया है। अब सुप्रीम कोर्ट ने तीन सदस्यीय एक कमेटी बनाई है, जो एमसीआई के सारे कामकाज की तब तक निगरानी करेगी, जब तक सरकार एमसीआई में स्थायी सुधार नहीं करती। अदालत ने तो अपना काम कर दिया है, अब सरकार को चाहिए कि वह इन फैसलों की रोशनी में भारत के शिक्षा और चिकित्सा तंत्र को सुधारे।
 

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें