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एक रुका हुआ फैसला

अदालती मामलों का कानूनी दांव-पेच में उलझकर रह जाना इस देश में कोई नई बात नहीं है। कई मामले तो इतने घिसट जाते हैं कि उन्हें किसी अंजाम तक ले जाना भी मुमकिन नहीं दिखता, फिर भी हम उन्हें खींचते जाते...

एक रुका हुआ फैसला
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 06 Apr 2017 10:33 PM
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अदालती मामलों का कानूनी दांव-पेच में उलझकर रह जाना इस देश में कोई नई बात नहीं है। कई मामले तो इतने घिसट जाते हैं कि उन्हें किसी अंजाम तक ले जाना भी मुमकिन नहीं दिखता, फिर भी हम उन्हें खींचते जाते हैं। अयोध्या में बाबरी मस्जिद (राम मंदिर होने के दावे और इससे जुडे़ ऐतिहासिक विवाद के कारण जिसे विवादास्पद ढांचा भी कहा जाता है) के ध्वंस को तकरीबन 25 साल होने वाले हैं, लेकिन उससे जुड़े मामले अभी तक अदालत में चल रहे हैं। इनमें एक मामला वह है, जिसमें 49 लोगों के खिलाफ बाबरी मस्जिद गिराने का आरोप है, जबकि दूसरा मामला बाबरी मस्जिद विध्वंस के लिए रचे गए आपराधिक षड्यंत्र का है। यह मामला जिन 13 लोगों पर चलाया गया है, वे भारतीय जनता पार्टी और विश्व हिंदू परिषद के बड़े नेता ही नहीं, देश के बड़े नेता भी हैं। इनमें लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, विनय कटियार जैसे नाम शामिल हैं। यह मामला रायबरेली की अदालत से इलाहाबाद उच्च न्यायालय होते हुए अब सुप्रीम कोर्ट में पहंंुच चुका है। इस बीच मामले में 183 गवाहियां भी पेश हो चुकी हैं। उसके बाद इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पूरे मामले को तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया, जिसे बाद में महबूब अहमद और सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। अब ऐसा लग रहा है कि यह मामला फिर से शुरू हो जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह एक गंभीर मामला है और ऐसे मामले को सिर्फ तकनीकी आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। जाहिर है कि सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी वादी या प्रतिवादी किसी के पक्ष में नहीं, बल्कि मामले को ठीक से चलाए जाने के बारे में है। यह भी सच है कि यह मामला कई तरह के राजनीतिक दबावों से भी गुजरा है। कई मौकों पर यह कहा गया कि प्रदेश सरकार इस मामले को दबा रही है, तो कई अन्य मौकों पर इसके विपरीत आरोप भी सामने आए। दिलचस्प बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट जब मामले को फिर से चलाने की बात कर रहा था, तब ज्यादातर लोगों को उम्मीद थी कि सीबीआई इसका विरोध करेगी, लेकिन अदालत में सीबीआई ने कहा कि वह षड्यंत्र के इस मामले को दोबारा चलाए जाने के पक्ष में है। हालांकि यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि यह मामला आगे किस तरह बढ़ेगा? जो गवाहियां पहले हो चुकी हैं, क्या वे दोबारा होंगी? उम्मीद यही है कि आगे की अदालती कार्यवाही शायद लखनऊ में चले।

इसका फैसला कब आएगा, हमें पता नहीं, लेकिन इस 25 साल में बहुत कुछ बदल चुका है। राजनीति में एक नई पीढ़ी आकर जम चुकी है और जिन नेताओं के खिलाफ यह मामला चल रहा है, उनमें से ज्यादातर अपनी आभा खोकर मार्गदर्शक मंडल में पहुंच चुके हैं। यही वजह है कि विरोधी दलों की दिलचस्पी भी इस मामले में खत्म हो चुकी है। उनके लिए इस मामले का राजनीतिक महत्व अब बहुत ज्यादा नहीं है। साथ ही अयोध्या का राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद भी अब उस जगह नहीं है, जहां 25 साल पहले था। दोनों ही पक्ष आजकल इस बात से माथापच्ची कर रहे हैं कि विवाद को सुप्रीम कोर्ट में चलने दिया जाए, या इसे आपसी बातचीत से सुलझाने की कोशिश की जाए। दोनों ही पक्षों में तरह-तरह की राय है। खुद देश के प्रधान न्यायाधीश यह सलाह दे रहे हैं कि मामले को बातचीत से सुलझाना ही बेहतर रास्ता है। उन्होंने तो सुप्रीम कोर्ट की मध्यस्थता का प्रस्ताव भी किया है। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि अगर अयोध्या विवाद सुलझा या उस पर कोई अंतिम फैसला आ गया, तब भी क्या बाबरी विध्वंस के षड्यंत्र का मामला चलता रहेगा? 

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