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मौसम की मार

मौसम विभाग के जो यंत्र मौसम के बदलावों को नापते हैं, वे लगातार ज्यादा सूक्ष्म और संवेदनशील होते जा रहे हैं, पर शायद उनसे ज्यादा संवेदनशील यंत्र प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में हैं। मौसम विभाग के...

मौसम की मार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 19 Jul 2015 07:13 PM
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मौसम विभाग के जो यंत्र मौसम के बदलावों को नापते हैं, वे लगातार ज्यादा सूक्ष्म और संवेदनशील होते जा रहे हैं, पर शायद उनसे ज्यादा संवेदनशील यंत्र प्राकृतिक रूप से हमारे शरीर में हैं। मौसम विभाग के यंत्र तो मौसम का सिर्फ लेखा-जोखा रखते हैं, मगर हमारे शरीर में मौजूद यंत्र शरीर में ऐसे बदलाव लाते हैं, जो हमें पता भी नहीं होते। जो वैज्ञानिक इन बदलावों का अध्ययन कर रहे हैं, वे भी ऐसे बहुत सारे बदलावों को ठीक से नहीं समझ पाते। जिन्हें जोड़ों के दर्द की शिकायत होती है, उनकी आम राय है कि बारिश के मौसम में उनका दर्द बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों को इस बात का कोई पक्का प्रमाण नहीं मिला है कि सचमुच बारिश के मौसम और जोड़ों के दर्द का कोई सीधा रिश्ता है। यह भी हो सकता है कि जोड़ों में दर्द के मरीज मान लेते हैं कि बारिश होगी, तो उनका दर्द बढ़ जाएगा, इस धारणा की वजह से ही उनका दर्द बढ़ जाता हो। इस पर वैज्ञानिक किसी अंतिम राय पर नहीं पहुंचे हैं। एक धारणा यह भी है कि नम और ठंडे मौसम में पुरानी चोटें फिर से उभर आती हैं। यह बात कितनी सही है, यह प्रश्न अब भी अनुत्तरित है।

यह देखा गया है कि ठंडे देशों में जिन वर्षों में मौसम अपेक्षाकृत गरम होता है, उन वर्षों में लड़कियों के मुकाबले लड़के ज्यादा पैदा होते हैं। जानकार बताते हैं कि 1952 में लंदन में बहुत भयानक स्मॉग यानी कोहरे और धुएं का मिश्रण फैला था और उस साल लड़कियां ज्यादा पैदा हुई थीं। इसकी वजह भी ठीक से पता नहीं है। अनुमान है कि खराब मौसम या परिस्थिति में शरीर को यह संदेश मिलता है कि संकट है, इसलिए प्रजाति को बनाए रखने की कोशिश की जाए। प्रजाति के बने रहने के लिए पुरुष की अपेक्षा स्त्री की जरूरत ज्यादा है, इसलिए ऐसे में लड़कियां ज्यादा पैदा होती हैं। एक और प्रमाण यह है कि अगर गर्भवती स्त्री कुपोषित है या किसी किस्म के कष्ट में है, तो लड़की पैदा होने की संभावना ज्यादा होती है। ऐसा अध्ययन गरम देशों में नहीं किया गया है, लेकिन हो सकता है कि यहां ज्यादा गरमी या सूखे के वर्षों में लड़कियां ज्यादा पैदा होती हों। इसी तरह, पता चलता है कि चीन में किए गए एक अध्ययन के मुताबिक सर्दियों में सर्दी में दिल के दौरे से 40 फीसदी ज्यादा मौतें होती हैं। अनुमान है कि सर्दियों में रक्तचाप बढ़ जाता है, क्योंकि सर्दी से निपटने के लिए शरीर को ज्यादा ऊर्जा की जरूरत पड़ती है। बढ़ा हुआ रक्तचाप दिल के दौरे का एक बड़ा कारण हो सकता है।

विशेषज्ञ बताते हैं कि अगर वातावरण में हवा का दबाव कम हो जाए, तो सिरदर्द की आशंका बढ़ जाती है। माइग्रेन के मरीजों की तकलीफ अक्सर वातावरण में हवा के दबाव से जुड़ी होती है। इसीलिए यह देखा गया है कि गरमी के मौसम में अक्सर सिरदर्द की दवाओं की बिक्री बढ़ जाती है। यह वही बात है, जिसकी वजह से हवाई जहाज में अक्सर यात्रियों को सिरदर्द होता है, क्योंकि हवाई जहाज में भी हवा का दबाव कृत्रिम रूप से बनाया जाता है। यहां पर यह भी जानना दिलचस्प होगा कि हवा के दबाव का असर हमारी सारी संवेदनाओं पर पड़ता है। वैज्ञानिक बताते हैं कि हवाई जहाज के अंदर खाने का अच्छा स्वाद न मिलने की एक वजह हवा का दबाव भी है, जो हमारी स्वादेंद्रियों को प्रभावित करता है। वैज्ञानिक यह भी बताते हैं कि सिर्फ वातावरण नहीं, हमारे सौर मंडल के मौसम का बदलाव भी हमेंं प्रभावित करता है। बढ़ी हुई सौर गतिविधियों के दौर में दिल के दौरे और मस्तिष्काघात से होने वाली मौतों की संख्या बढ़ जाती है। उस वक्त पैदा हुए लोगों की आयु भी अपेक्षाकृत कम होती है। यह क्यों होता है, यह अब तक एक रहस्य ही बना हुआ है।

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