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आर्थिक विकास में सुस्ती

भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर अप्रैल से जून 2015 की तिमाही में 7 प्रतिशत रही है, जो इसके पिछली तिमाही यानी जनवरी-मार्च के बीच 7.5 प्रतिशत थी। हो सकता है कि भारत की यह विकास दर दुनिया में...

आर्थिक विकास में सुस्ती
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 01 Sep 2015 09:31 PM
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भारत में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की दर अप्रैल से जून 2015 की तिमाही में 7 प्रतिशत रही है, जो इसके पिछली तिमाही यानी जनवरी-मार्च के बीच 7.5 प्रतिशत थी। हो सकता है कि भारत की यह विकास दर दुनिया में सबसे ज्यादा हो। चीन की भी विकास दर इस तिमाही में 7 प्रतिशत बताई जा रही है, हालांकि जानकार इस पर संदेह कर रहे हैं। इसके बावजूद भारत की विकास दर ने भारत और दुनिया में जानकारों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने यह राय जाहिर की थी कि इस दौरान भारत की विकास दर 7.4 प्रतिशत रहेगी, लेकिन इसका उम्मीद से इतना कम रहना केंद्र सरकार के लिए एक चेतावनी है। ताजा आंकड़ों के आने के बाद मंगलवार को शेयर बाजार में करीब तीन सौ अंकों की गिरावट आई है, जो कि अपेक्षित थी। पिछले करीब डेढ़ साल से भारतीय शेयर बाजार, अर्थव्यवस्था की वास्तविक स्थिति पर कम, उम्मीदों पर ज्यादा चल रहा है और अब बाजार की वास्तविकता इन उम्मीदों के साथ नहीं चल पा रही है। विनिर्माण क्षेत्र में विकास दर इस दौरान घटी है, उपभोक्ता वस्तुओं की खपत और उत्पादन भी कम हुआ है।

इसका अर्थ यह नहीं है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति खराब है। इन आंकड़ों के बावजूद इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि इस साल भारतीय अर्थव्यवस्था दुनिया की सबसे तेजी से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था बन जाए। लेकिन इस बात की सख्त जरूरत है कि ऐसे कदम उठाए जाएं, जिनसे विकास की गति तेज हो।

भारतीय अर्थव्यवस्था कमजोर स्थिति से उबर जरूर रही है, लेकिन उसके उबरने की गति धीमी और अनिश्चित है। जाहिर है, इस स्थिति में रिजर्व बैंक पर ब्याज दरें कम करने का दबाव बढ़ेगा। रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन इस बात के संकेत दे चुके हैं कि जरूरत हुई, तो ब्याज दरें तिमाही समीक्षा के अलावा बीच में कभी भी घटाई जा सकती हैं।

महंगाई बढ़ने की दर लगातार कम बनी हुई है और थोक महंगाई दर तो शून्य से नीचे चल रही है, इसलिए बैंकिंग क्षेत्र पर ब्याज दरों को कम करने का माहौल बना है। इसके अलावा भी कई ऐसी बातें हैं, जो अर्थव्यवस्था के मजबूत स्थिति में होने की सूचना देती हैं।

एक महत्वपूर्ण बात तो यही है कि चालू खाते का घाटा बहुत कम हुआ है। इसकी बड़ी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल और सोने के दामों में भारी कमी आई है। पिछले सात साल में पहली बार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश चालू खाते के घाटे से ज्यादा हुआ है। भारत में विदेशी मुद्रा का भंडार भी बेहतर स्थिति में है, इन सब से दुनिया भर के निवेशक भारत की ओर आकर्षित हो रहे हैं।

इन सुविधाजनक अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों का जितना फायदा सरकार को उठाना चाहिए था, उतना नहीं उठाया गया है। सरकार ने घोषणाएं और वादे तो बहुत किए, लेकिन उनके अमल में उतना उत्साह नहीं दिखाया। संसद में भी सरकार और विपक्ष राजनीतिक झगड़ों में उलझे रहे और कई महत्वपूर्ण सुधार नहीं आगे बढ़ पाए। खास तौर पर वस्तु और सेवा कर (जीएसटी) बिल अगर पारित हो जाता, तो इससे औद्योगिक क्षेत्र में काफी उत्साहजनक माहौल बनता। बुनियादी ढांचे की परियोजनाओं में भी कोई खास तरक्की नहीं हुई है।

भारतीय और विदेशी निवेशकों की राय है कि अब भी भारत में व्यापार और उद्यम के लिए सुगम परिस्थितियां नहीं हैं, राजनीति और नौकरशाही के अड़ंगे कम तो हुए हैं, लेकिन इतने भी नहीं कि बड़ा फर्क नजर आए। अब भी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए परिस्थितियां अनुकूल हैं, जरूरत तेजी से काम करने की है।

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