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आरक्षण की चाह

गुजरात के पटेल समुदाय का आरक्षण आंदोलन तेज होता जा रहा है। 22 साल के हार्दिक पटेल इस आंदोलन के नेता हैं और उनके नेतृत्व में गुजरात का सारा पटेल समुदाय संगठित होता जा रहा है। आंदोलन की लोकप्रियता इस...

आरक्षण की चाह
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 25 Aug 2015 09:28 PM
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गुजरात के पटेल समुदाय का आरक्षण आंदोलन तेज होता जा रहा है। 22 साल के हार्दिक पटेल इस आंदोलन के नेता हैं और उनके नेतृत्व में गुजरात का सारा पटेल समुदाय संगठित होता जा रहा है। आंदोलन की लोकप्रियता इस बात से आंकी जा सकती है कि इसकी रैली में लाखों लोग इकट्ठा हुए थे। कुछ आंदोलनकारी भूख हड़ताल पर भी बैठे। यह आंदोलन राज्य भाजपा के लिए मुसीबत बनता जा रहा है, जिसमें पटेलों का वर्चस्व है। राज्य सरकार पटेलों की यह मांग स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है या वह स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है। मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया है कि पटेलों को आरक्षण देना संभव नहीं है, क्योंकि उसमें कई कानूनी पेच हैं। 50 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण न देने के बारे में सुप्रीम कोर्ट का आदेश है और अगर पिछडे़ वर्ग के मौजूदा आरक्षण में पटेलों के लिए गुंजाइश निकाली जाए, तो अन्य पिछड़े वर्ग नाराज हो सकते हैं, ऐसा अन्य राज्यों में हो चुका है। अन्य पिछड़ी जातियों के नेता इस बारे में राज्य सरकार को चुनौती भी दे चुके हैं।

यह एक अजीब स्थिति है कि पिछड़ों, दलितों और आदिम जातियों को दिए जाने वाले आरक्षण के खिलाफ गुजरात में कई बार आंदोलन कर चुका पटेल समुदाय अब खुद आरक्षण की मांग कर रहा है। यह स्थिति आरक्षण के राजनीतिक इस्तेमाल के खतरों को भी दिखाती है, जिसमें वोटों के लिए समाज के किसी ताकतवर वर्ग को आरक्षण का लालच दिया गया। उत्तर भारत में जाटों को और महाराष्ट्र में मराठों को आरक्षण देने की पहल इसी तरह की थी। पटेल या पाटीदार गुजरात का सबसे प्रभावशाली समुदाय है। गुजरात की राजनीति में भाजपा का वर्चस्व भी बड़ी हद तक इसी समुदाय के समर्थन से है। आरक्षण चाह रहे कडेवा पटेलों और लेवा पटेलों की आबादी करीब 12 प्रतिशत है, लेकिन गुजरात विधानसभा में भाजपा के 120 में से 40 विधायक पटेल हैं। मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के अलावा, मंत्रिमंडल में पटेलों का वर्चस्व है। परंपरागत रूप से खेती के अलावा, उद्योगों में भी पटेलों का वर्चस्व है, इसलिए वह अपेक्षाकृत समृद्ध समुदाय है। एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले बरसों में गुजरात में बड़े उद्योगों और बहुराष्ट्रीय निगमों के आने से छोटे व मध्यम उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

इसके अलावा, सूरत के हीरा व्यापार पर भी पटेलों का प्रभुत्व था, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से इस उद्योग में भी मंदी है, इससे पटेलों में आर्थिक असुरक्षा बढ़ी है। परंपरागत रूप से औद्योगिक समुदाय होने से पटेलों की शिक्षा में ज्यादा दिलचस्पी नहीं रही। अब उन्हें लग रहा है कि बच्चों के डॉक्टर, इंजीनियर बनने में उनका भविष्य सुरक्षित हो सकता है, और उनके लिए विदेश जाना भी आसान हो सकता है। जो भारतीय व्यापारी अफ्रीका, यूरोप, अमेरिका आदि में हैं, उनमें बड़ी तादाद में पटेल हैं। अब उन्हें शिक्षा में आगे बढ़ने का रास्ता दिखाई दे रहा है, इसलिए वे आरक्षण मांग रहे हैं। इस बात की संभावना नहीं के बराबर है कि पटेलों को आरक्षण देना कानूनी कसौटी पर खरा उतर पाएगा। दूसरे, यह संभावना शायद नहीं है कि आरक्षण न देने पर पटेल भाजपा का पल्ला छोड़ जाएं, क्योंकि उनके पास दूसरा विकल्प नहीं है। यह आशंका जरूर है कि उन्हें आरक्षण देने पर पिछड़ी जातियां, दलित और आदिवासी समुदाय भाजपा के विरोध में आ जाएं, जिनकी आबादी 70 प्रतिशत से ऊपर है। इस समस्या का निदान आरक्षण में है भी नहीं, शिक्षा और रोजगार के बेहतर और ज्यादा विकल्प पैदा करने से ही इसका समाधान होगा। लेकिन फिलहाल पटेल समुदाय को शांत करना गुजरात सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती है।

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