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बंद आंखों ने दिखाई रोशनी

जन्म से ही उसे आंखों की दुर्लभ बीमारी थी। जब चार साल का हुआ, तो डॉक्टरों ने कहा कि बीमारी लाइलाज है। जब वह 13 साल का था, तो आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई। इस सदमे से उबर पाता कि मां की मौत हो गई। वह...

बंद आंखों ने दिखाई रोशनी
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 26 Jul 2014 08:54 PM
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जन्म से ही उसे आंखों की दुर्लभ बीमारी थी। जब चार साल का हुआ, तो डॉक्टरों ने कहा कि बीमारी लाइलाज है। जब वह 13 साल का था, तो आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई। इस सदमे से उबर पाता कि मां की मौत हो गई। वह जान चुका था अब वह कभी इस खूबसूरत दुनिया को देख नहीं पाएगा। लेकिन उसने अपनी नेत्रहीनता को कमजोरी नहीं बनने दिया। यकीनन राह बहुत कठिन थी, पर वह हारा नहीं। स्कूल के दिनों में वह कुश्ती चैंपियन था। उसे बास्केट बॉल खेलने का बहुत शौक था। पर कमजोर होती आंखों के साथ उसके सपने भी धुंधले हो रहे थे। फिर वह नेत्रहीन बच्चों के संग पढ़ने लगा। स्कूल की पढ़ाई खत्म करके कॉलेज गया। कॉलेज से बाहर आते ही जिंदगी की बेरहम हकीकत से रूबरू हुआ। उसे पता चला कि कथित सामान्य लोगों की दुनिया में एक नेत्रहीन युवक के लिए कोई जगह नहीं होती। फिर एक दिन उसने दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी पर चढ़ने का फैसला किया और आखिरकार बन गया एवरेस्ट पर चढ़ने वाला पहला नेत्रहीन व्यक्ति। आज वह मशहूर लेखक हैं और बेहरतीन वक्ता भी। उनका नाम  है एरिक व्हेनमेयर।

अमेरिका के न्यू जर्सी शहर में जन्मे एरिक व्हेनमेयर के लिए शुरू से ही जीवन का मतलब था दुश्वारियां। वह जब दो-तीन साल के हुए, तो माता-पिता ने महसूस किया कि उनकी आंखों में कुछ दिक्कत है। बचपन में कई बार उन्हें चीजों को देखने या पकड़ने में दिक्कत होती थी। शुरुआत में तो डॉक्टर ज्यादा कुछ समझ नहीं पाए, पर जब वह चार साल के हुए, तो पता लगा कि उन्हें आंखों की लाइलाज बीमारी जेवुनाइल रेटिनोशेसिस है। माता-पिता उन्हें बड़े-बड़े डॉक्टरों के पास ले गए। किसी का इलाज काम न आया। डॉक्टरों ने साफ जवाब दे दिया। समय के साथ-साथ एरिक की आंखों की रोशनी कम होती गई। एरिक का बचपन आम बच्चों जैसा नहीं रहा। माता-पिता उन्हें धूल और धूप से बचाने की कोशिश करते। इसलिए खेलने-कूदने का बहुत कम मौका मिला। माता-पिता जानते थे कि एक दिन एरिक आंखों की रोशनी पूरी तरह गंवा देंगे, पर मन में कहीं उम्मीद दबी थी कि शायद कोई चमत्कार हो जाए। पर ऐसा नहीं हुआ।

स्कूल के दिनों में एरिक ने कुश्ती खेलना शुरू किया और चैंपियन बन गए। उन्हें बास्केट बॉल का बहुत शौक था, पर धूमिल रोशनी के कारण अक्सर गेंद उनके हाथ से फिसल जाती थी। कई बार साथ के बच्चे उनका मजाक बनाते, पर वह कभी बुरा नहीं मानते थे। उस समय उनकी उम्र 13 साल की थी। एक दिन उन्होंने महसूस किया कि उन्हें कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा। धुंधली दिखने वाली चीजें भी पूरी तरह ओझल हो चुकी थीं। वह रोशनी खो चुके थे। माता-पिता तो न जाने कब इस आशंका को दिल में दबाए जी रहे थे। वे जानते थे कि एक दिन ऐसा होने वाला है। पर उन्होंने बेटे को बिखरने नहीं दिया। एरिक संभलने की कोशिश कर ही रहे थे कि उनकी मां की मौत हो गई। यह उनके लिए दूसरा सबसे बड़ा झटका था। एरिक ने कहा, अब सब खत्म हो गया है, पर पिता ने समझाया कि जब एक रास्ता बंद होता है, तो अनेक रास्ते अपने आप खुल जाते हैं। अब वे एरिक की मां और पिता, दोनों बन गए थे। घर से लेकर स्कूल कैंपस तक वह एरिक के साथ रहते, हर कदम पर उसकी मदद करते। धीरे-धीरे एरिक ने बिना रोशनी के जीना सीख लिया।

उन्हें नेत्रहीन बच्चों के स्कूल में दाखिल कराया गया। इस दौरान उन्हें पढ़ाई के साथ रेसिंग, तैराकी, पहाड़ों की चढ़ाई और स्कीइंग की ट्रेनिंग भी दी गई। पर उन्हें सबसे ज्यादा मजा पहाड़ों की चढ़ाई में आया। स्कूल खत्म करने के बाद एरिक कॉलेज गए। उन्होंने बोस्टन यूनिवर्सिटी से स्नातक की डिग्री हासिल की। गरमी की छुट्टियों में उन्होंने पार्ट टाइम नौकरी करने का फैसला किया। वाकई काफी कठिन दौर था वह। कई जगह आवेदन किया, पर कोई एक ऐसे युवक को नौकरी पर नहीं रखना चाहता था, जिसे दिखाई न देता हो। एरिक ने एक होटल में बर्तन धोने का काम पाने के लिए आवेदन किया। होटल प्रबंधन ने उन्हें इंटरव्यू के लिए बुलाया, मगर यह पता लगते ही कि वह देख नहीं सकते, उन्हें तुरंत खारिज कर दिया। एरिक कहते हैं, ऐसा लगा सारे रास्ते बंद हो गए हैं। कोई मुङो सुनना नहीं चाहता था, कोई भी मुझे मौका नहीं देना चाहता था। जहां जाता, मेरी नेत्रहीनता सामने खड़ी हो जाती और मेरा रास्ता रुक जाता।

पर एरिक निराश नहीं हुए। उन्होंने टीचिंग की विशेष ट्रेनिंग ली और विकलांग बच्चों को पढ़ाने लगे। वह बच्चों के लिए प्रेरणा के स्रोत बन गए। एरिक शारीरिक रूप से कमजोर बच्चों की मदद करते, उन्हें हौसला देते। अब उनके मन में कुछ बड़ा और कुछ नया करने की ख्वाहिश पैदा हुई। स्कूल के दिनों में एरिक ने पहाड़ों पर चढ़ने की ट्रेनिंग ली थी। उन्होंने तय किया कि वह दुनिया की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट पर चढ़ेंगे। अमेरिका के ज्यादातर माउंट क्लाइंबिंग विशेषज्ञों ने दावा किया कि एरिक अपनी नेत्रहीनता के चलते ऐसा नहीं कर पाएंगे। एरिक के शुभचिंतकों ने भी उन्हें इतना बड़ा जोखिम न लेने की सलाह दी। पर एरिक नहीं माने। उन्होंने विशेष ट्रेनिंग ली और चल पड़े पहाड़ की चोटी नापने।

एरिक ने एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की। जैसे-जैसे सफर बढ़ा, बर्फीली हवाओं और बेरहम मौसम का कहर गहराता गया। यात्रा के दौरान एरिक को सबसे ज्यादा तकलीफ आंखों में हो रही थी। कई बार लगा कि आंखों में कांटे चुभ रहे हों। पर एरिक नहीं रुके और 25 मई, 2001 को एक नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बना। एरिक एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने वाले दुनिया के पहले नेत्रहीन व्यक्ति बन गए। इसके बाद सितंबर 2002 में उन्होंने दुनिया के सात महाद्वीपों की सात सबसे ऊंची पर्वत चोटियों पर चढ़ने का रिकॉर्ड भी बनाया। अमेरिका की प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम  ने उन पर आवरण कथा छापी। एरिक ने कई प्रेरक किताबें लिखी हैं। उनकी किताब टच द टॉप ऑफ द वर्ल्ड  काफी मशहूर हुई है।

एरिक एक बेहतरीन वक्ता भी हैं। लोग उनके प्रेरक भाषण सुनने को बेताब रहते हैं। एरिक को जीवन से कोई शिकायत नहीं है। वह कहते हैं, अगर मेरी आंखों में रोशनी होती, तो यकीनन मेरा जीवन ज्यादा सहज होता, पर शायद तब मुझे वह संतोष नहीं होता, जो आज मैं महसूस करता हूं। 
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

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