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ये कौन सा गुनाह है

मेरी परवरिश ब्रिटेन में हुई, पर मेरे माता-पिता ईरान के हैं। इसलिए मुझे ईरान और ब्रिटेन, दोनों देशों की नागरिकता हासिल है। बचपन में मैंने मम्मी-पापा से ईरान के बारे में बहुत कुछ सुना था। वे अक्सर अपने...

ये कौन सा गुनाह है
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 08 Nov 2014 08:32 PM
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मेरी परवरिश ब्रिटेन में हुई, पर मेरे माता-पिता ईरान के हैं। इसलिए मुझे ईरान और ब्रिटेन, दोनों देशों की नागरिकता हासिल है। बचपन में मैंने मम्मी-पापा से ईरान के बारे में बहुत कुछ सुना था। वे अक्सर अपने देश को याद करते थे। मैंने तय किया कि पढ़ाई पूरी करते ही मैं अपने देश लौटूंगी। लंदन यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई के बाद स्वदेश लौटी, तो बहुत अच्छा लगा। पुराने रिश्तेदारों और करीबियों से मिलकर लगा कि मैं अपने असली घर लौट आई हूं। पहली बार मैं ईरानी आबोहवा और तहजीब से रूबरू हुई।

अपने लोगों के बीच रहना और उनसे मिलना-जुलना एक सुखद एहसास था। पर जल्दी ही यह एहसास फीका पड़ने लगा। मैंने देखा कि ब्रिटेन में लड़कियों को जिस तरह पढ़ने-लिखने, घूमने-फिरने और पहनने-ओढ़ने की आजादी है, वह ईरानी लड़कियों को नसीब नहीं है। लंदन में देर शाम लड़कियों का अकेले घूमने जाना, पुरुष  दोस्तों के साथ रेस्तरां में खाना या फिर फिल्में देखने जाना, नाइट शिफ्ट में नौकरी करना आम बात थी। पर ईरान में हम इसकी कल्पना भी नहीं सकते। सबसे अजीब बात यह थी कि यहां कोई इन बातों को तवज्जो नहीं देता। लड़कियां इन पाबंदियों का विरोध नहीं करतीं, मानो सबने इन बंदिशों को अपनी किस्मत मान लिया है। इस बीच मैं बच्चों के लिए शिक्षा मिशन में जुट गई। ईरान आने से पहले ही मैंने तय कर लिया था कि मैं अपने देश में बच्चों के लिए काम करूंगी। मेरी दिली ख्वाहिश है कि ईरान का हर एक बच्चा स्कूल जाए और लड़के-लड़कियों को शिक्षा का बराबर हक मिले।

एक दिन मुझे किसी ने बताया कि आजादी स्टेडियम में वॉलीबॉल मैच हो रहा है। वॉलीबॉल मेरा पसंदीदा गेम है। मैंने मैच देखने का फैसला किया, पर मेरी दोस्त ने कहा, तुम वहां नहीं जा सकती। मैंने पूछा, क्यों? जवाब था, यह मैन्स वॉलीबॉल मैच है और ईरान में लड़कियां पुरुषों के मैच नहीं देख सकतीं। यह सुनकर मैं सकते में थी। मैंने कहा, वे लड़कियों के साथ ऐसा कैसा कर सकते हैं? इस पाबंदी के क्या मायने हैं? मैंने तय किया कि चाहे जो जाए, मैं यह मैच देखने जरूर जाऊंगी। घर वालों ने मुझे समझाया कि मैं यह जिद छोड़ दूं। उन्हें डर था कि मेरी जिद कहीं मेरे जीवन पर भारी न पड़ जाए। उनका डर जायज था। आज से पहले किसी महिला ने इस तरह की बंदिशों का विरोध नहीं किया था। पर मैं अडिग थी। मैंने कहा कि मैं मैच देखने जरूर जाऊंगी। शुरुआत में तो सब मुझे समझाते रहे, लेकिन बाद में कुछ और लड़कियां मेरे संग चलने को राजी हो गईं।

हम राजधानी तेहरान के आजादी स्टेडियम पहुंचे। यह वाकया जून, 2014 का है। हमारे पास मैच के टिकट थे। गेट के बाहर हम लड़कियों को देखकर पुरुष दर्शक हैरत में थे। जाहिर है, इससे पहले उन्होंने कभी पुरुष खेलों में महिला दर्शकों को नहीं देखा था। सब हमें घूर रहे थे। हमने ग्राउंड में प्रवेश करने की कोशिश की। सुरक्षाकर्मियों ने हमें रोक दिया। उन्होंने हमें बताया कि लड़कियों का अंदर जाना मना है। हमने पूछा, क्यों? उन्होंने जवाब दिया, लड़कियों को पुरुष टीम का मैच देखने की इजाजत नहीं है। पर हमने जिद की कि हमें अंदर जाने दिया जाए। इस बीच मेरे संग आई बाकी लड़कियां घबरा गईं। उन्होंने मुझसे वापस चलने को कहा, मगर मैं डटी रही। खास बात यह थी हम सभी लड़कियों ने अपने सिर पर सफेद रंग का स्कार्फ बांध रखा था, जबकि ईरान में नियम के मुताबिक लड़कियों का गहरे रंग का स्कार्फ पहनना चाहिए।

हमारी यह नाफरमानी भी उन्हें नागवार गुजरी। पुलिस वालों ने मेरे साथ बदसलूकी की। एक ने मुझे थप्पड़ मारा और दूसरे ने मेरी बांह पर चोट पहुंचाई। इसके बाद उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया और मेरा मोबाइल और दूसरी चीजें जब्त कर लीं। मुझे कुछ घंटे हिरासत में रखा गया। इस बीच मेरे संग आई अन्य लड़कियों ने मेरी गिरफ्तारी का जमकर विरोध किया। बाद में मुझे जमानत पर रिहा कर दिया गया। यह घटना सब तरफ चर्चा का विषय बन गई, पर किसी ने खुलकर मेरा साथ नहीं दिया।

इस घटना के करीब एक हफ्ते बाद मैं अपना सामान लेने पुलिस स्टेशन पहुंची। मैंने उनसे अपना मोबाइल मांगा, पर इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, उन्होंने मुझे दोबारा गिरफ्तार कर लिया। मुझे जेल भेज दिया गया। मैं उनसे पूछती रही कि आखिर मुझे किस बात के लिए जेल भेजा जा रहा है। पर किसी ने कुछ नहीं बताया। बिना कुछ कहे ही उन्होंने मुझे जेल में डाल दिया। मुझे तनहाई में रखा गया है। इस बैरक में मैं अकेली हूं। तनहा बैरक में ज्यादातर कुख्यात अपराधी रखे जाते हैं। मुझे यह नहीं पता है कि मैंने कौन-सा कुख्यात अपराध किया है। अब उन्होंने मेरे ऊपर सरकार के खिलाफ दुष्प्रचार करने का आरोप लगाया है। मुझे यह भी बताया गया है कि मुझे एक साल तक कैद में रहना होगा।

उन्हें लगता है कि मैं सरकार के खिलाफ विद्रोह कर रही हूं। वे कह रहे हैं कि मैं मुल्क की सरकार की मुखालफत कर रही हूं। भला किसी महिला का वॉलीबॉल मैच देखना एक सरकार के खिलाफ बगावत कैसे हो सकता है? आखिर महिलाओं पर बेवजह की बंदिशें क्यों लगाई जाती हैं? मुझे पूरा हक है यह सवाल उठाने का। लेकिन जेल में कोई नहीं है मेरी बात सुनने वाला। विरोध जताने के लिए मैंने खाना छोड़ दिया, लेकिन मुझे नहीं पता कि मेरी भूख-हड़ताल का सरकार पर क्या असर होगा। वे मुझे कमजोर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। मुझे वकील तक से नहीं मिलने दिया जा रहा है। मैंने उन्हें यह कहते हुए सुना कि मैं जेल से जिंदा बचकर नहीं निकल पाऊंगी।

मेरे परिवार के लोग मुझे लेकर चिंतित हैं। पिछले दिनों सुनवाई के दौरान अदालत में मम्मी और दादा जी आए थे। मुझे उनसे मिलने का मौका मिला। लेकिन यह मुलाकात बस कुछ पलों की थी। मम्मी मुझे गले लगाकर भावुक हो गईं। मैं उनका दर्द समझ सकती हूं। मेरा भाई ईमान मेरी रिहाई को लेकर जद्दोजहद कर रहा है। मैंने सुना है कि सैकड़ों लोगों ने मेरी रिहाई को लेकर एक ऑनलाइन अभियान छेड़ रखा है। मैं उम्मीद करती हूं कि यह मुहिम ईरान की महिलाओं के जीवन को एक नई दिशा देगी। 
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

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