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खेत-खलिहान से गोल्फ के मैदान तक

हरियाणा के पानीपत जिले में एक छोटा-सा गांव है इसराना। गांव के लोगों को कुश्ती का बड़ा शौक है। यहां कई अखाडे़ हैं और ढेर सारे पहलवान भी। इसी गांव के दूध बेचने वाले एक मध्यवर्गीय परिवार में शुभम का...

खेत-खलिहान से गोल्फ के मैदान तक
लाइव हिन्दुस्तान टीमSat, 25 Jul 2015 08:02 PM
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हरियाणा के पानीपत जिले में एक छोटा-सा गांव है इसराना। गांव के लोगों को कुश्ती का बड़ा शौक है। यहां कई अखाडे़ हैं और ढेर सारे पहलवान भी। इसी गांव के दूध बेचने वाले एक मध्यवर्गीय परिवार में शुभम का जन्म हुआ। चाचा और ताऊ पहलवान थे, पर दादा जी चाहते थे कि पोता कोई दूसरा खेल खेले। संयोग से जब शुभम पांच साल के थे, तब कपूर सिंह नाम के एक एनआरआई ने उनके गांव में गोल्फ एकेडमी खोली। सिंह चाहते थे कि गांव के बच्चों को गोल्फ के प्रति जागरूक किया जाए। दादा जी को पता चला, तो बहुत खुश हुए। पोते को लेकर गोल्फ एकेडमी पहुंचे और दाखिला करवा दिया। पर यह ट्रेनिंग ज्यादा दिन न चल पाई। गांव में लोगों को कुश्ती पसंद थी। वे गोल्फ को रईसों का खेल मानते थे। एकेडमी में बहुत कम बच्चों ने दाखिला लिया। लिहाजा, दो महीने बाद ही एकेडमी बंद हो गई। पर ये दो महीने शुभम के लिए काफी अहम रहे। इस छोटे से वक्त में ही गोल्फ का बुखार चढ़ चुका था।

गांव से जाते समय कपूर सिंह ने जगपाल से कहा कि आपका बेटा बहुत अच्छा खेलता है, उसकी ट्रेनिंग जारी रखना। गांव के आसपास कोई दूसरी एकेडमी नहीं थी। पिता जानते थे कि गोल्फ महंगा खेल है। उनके परिवार के लिए गोल्फ के खर्चे का इंतजाम करना आसान नहीं था। पर बेटे ने जिद पकड़ रखी थी कि वह गोल्फ ही खेलेगा। बेटे की ख्वाहिश उनके लिए बहुत मायने रखती थी। बेटे को बड़ा गोल्फ खिलाड़ी बनाने का सपना मन में घर कर चुका था।
अब सबसे बड़ा सवाल यह था कि बेटे को ट्रेनिंग कैसे दिलवाई जाए। इस बीच शुभम ने गोल्फ का अभ्यास जारी रखा। घर में तो जगह थी नहीं, लिहाजा सरसों के खेत में अभ्यास करने लगे। फिर किसी ने सलाह दी कि आजकल इंटरनेट पर बहुत कुछ सिखाया जाता है। घर पर कंप्यूटर और इंटरनेट का जुगाड़ किया गया। शुभम यू-ट्यूब पर वीडियो देखकर गोल्फ सीखने लगे। शुभम कहते हैं, 'गोल्फ की मेरी 60 फीसदी ट्रेनिंग इंटरनेट के जरिये हुई। कई बड़े खिलाडि़यों के वीडियो देखकर मैंने काफी कुछ सीखा।'

फिर एक दिन पिता जी उसे करनाल के मधुबन गोल्फ कोर्स ले गए। यहां ट्रेनिंग शुरू हुई। पंचकुला में एक टूर्नामेंट के दौरान बड़े-बड़े गोल्फ खिलाड़ी भी यह देखकर हतप्रभ रह गए कि छह साल का बच्चा बिना किसी ट्रेनिंग के इतना बेहतरीन खेल रहा है। समय के साथ शुभम गोल्फ में माहिर होता गया और उनकी शोहरत बढ़ती गई। अब कोच को यकीन हो चला था कि यह बच्चा जल्द ही कोई बड़ा कमाल करेगा। इस दौरान उन्होंने कई टूर्नामेंट जीते। हालांकि, खेल के कारण शुभम ने अपनी पढ़ाई को कभी नजरअंदाज नहीं किया। कक्षा चार में उन्होंने 90 फीसदी अंक हासिल किए। शुभम बताता है, 'हमारे गांव में कुश्ती का माहौल है। गांववालों के लिए गोल्फ बेकार खेल था। बच्चे मुझ पर हंसते थे।' इस बीच शुभम की मुलाकात गोल्फ फाउंडेशन के अमित लूथरा से हुई। अमित लूथरा खुद गोल्फ चैंपियन रहे हैं। उन्होंने जब नन्हे शुभम को खेलते देखा, तो समझ गए कि बच्चे में दम है। उन्होंने जगपाल से कहा कि अगर बेटे को आगे बढ़ते देखना चाहते हो, तो दिल्ली आ जाओ। पिता समझ चुके थे कि बेटे के सुनहरे भविष्य के लिए हरियाणा छोड़ना ही पडे़गा। दिल्ली में बसने के लिए उन्होंने गांव में अपनी गाय-भैंसें बेच दीं। शुभम पिता के संग दिल्ली आ गए, जबकि मां गांव में ही रह गई। गोल्फ क्लब में ट्रेनिंग शुरू हुई। जगपाल खुद पढ़-लिख नहीं सकते, पर खेल के साथ पढ़ाई की अहमियत वह खूब समझते थे। क्लब की मदद से उन्होंने केंद्रीय विद्यालय में बेटे का दाखिला करवाया। शुभम बताते हैं, 'आर्थिक दिक्कतों की वजह से मैं आठ महीने स्कूल नहीं जा सका। पर जब प्रिंसिपल को इस बारे में पता चला, तो उन्होंने मेरी मदद की और मैं दोबारा पढ़ाई शुरू कर पाया।'

दिल्ली में जीवन आसान नहीं था। गोल्फ क्लब ने ट्रेनिंग का तो इंतजाम कर दिया, पर बाकी के खर्च परिवार को ही उठाने थे। जगपाल बताते हैं, 'गोल्फ क्लब में आने वाले ज्यादातर बच्चे रईस परिवारों के थे। वे महंगी गाडि़यों में आते थे, जबकि हमारे पास क्लब के अंदर पानी या चाय खरीदकर पीने तक के पैसे नहीं थे, क्योंकि वहां हर चीज कई गुना महंगे दाम पर मिलती थी। हम सुबह घर से खाकर चलते थे और शाम को लौटकर घर पर ही खाते थे।' ब्रेक के दौरान, जब बाकी बच्चे कैंटीन में खाते-पीते, तब वह पिता के संग बैठकर ब्रेक खत्म होने का इंतजार करता। कक्षा छह में पढ़ने वाला शुभम बताते हैं, 'मैं गांव से आया था, मुझे अंग्रेजी नहीं आती थी। जब बाकी खिलाड़ी अंग्रेजी में बात करते थे, तब मैं चुप रहता था। बाद में टीचर ने मेरी बहुत मदद की और मैं भी अंग्रजी बोलने लगा।' अपने तीन साल के करियर में दस साल के शुभम ने सौ से ज्यादा टाइटल जीते हैं। इसी सप्ताह उन्होंने जूनियर वर्ल्ड गोल्फ चैंपियनशिप जीतकर नया विश्व रिकॉर्ड कायम किया है। शुभम कहते हैं, 'यह सब मेरे पापा के त्याग का नतीजा है। हमारे कोच ने भी बहुत मेहनत की। बहुत खुश हूं कि मैं उनका सपना पूरा कर पाया।'  
प्रस्तुति: मीना त्रिवेदी

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