दो दलीय व्यवस्था की ओर
कांग्रेस के कुशासन से उत्तर, पश्चिम और दक्षिण भारत के मुक्त होने की शुरुआत हो चुकी है और देश की जनता ने ‘सबका साथ सबका विकास’ व ‘पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन’ के...
कांग्रेस के कुशासन से उत्तर, पश्चिम और दक्षिण भारत के मुक्त होने की शुरुआत हो चुकी है और देश की जनता ने ‘सबका साथ सबका विकास’ व ‘पारदर्शी और भ्रष्टाचार मुक्त शासन’ के मूलमंत्रों के साथ आगे बढ़ने वाली भारतीय जनता पार्टी में पूर्ण विश्वास व्यक्त किया है। इसके साथ-साथ राजनीति में जोड़-तोड़ करने और भ्रष्टाचार को बढ़वा देने का पर्याय बने छोटे-मोटे दलों को मिटाने की कार्रवाई भी जनता ने शुरू कर दी है। वह दिन दूर नहीं लगता, जब देश में दो ही मुख्य दल होंगे और भारत सबसे बड़े लोकतंत्र के साथ-साथ सबसे आदर्श लोकतंत्र के रूप में भी अपनी धाक जमाएगा।
अक्षित तिलक राज, रादौर, हरियाणा
ताकि साफ-सुथरा रहे देश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बहुत जोर-शोर से स्वच्छता अभियान प्रारंभ किया था, मगर उनके सिपहसलारों ने इसे झाड़ पकड़ फोटो खिंचवाने तक सीमित कर दिया है। इस अभियान का सबसे बड़ा मजाक उड़ने वालों में दिल्ली प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष शामिल हो गए हैं, जिन्होंने पहले कूड़ा फैलवाया और फिर झाडम् हाथ में लेकर फोटो खिंचवाया। फोटों खिंचवाने की होडम्-सी लगी हुई है। वास्तव में दिल्ली-देहात के गांवों में जगह-जगह कूड़ों के ढेर लगे रहते हैं, मगर इनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। सीवर लीक करते रहते हैं और लोग गंध में रहने को मजबूर हैं। सप्ताह के अंत में यानी रविवार को सफाई कर्मचारियों की छुट्टी होती है। उस दिन कूड़ा उठाने वाला कोई नहीं होता। अगर कोई त्योहार पर गया, तो दो दिन की उनकी छुट्टी हो जाती है और कूड़े के ढेर लग जाते हैं। मेरा सुझाव है कि अगर सभी सफाईकर्मी एक साथ छुट्टी न करके बारी-बारी से करें, तो सप्ताह के सातों दिन सफाई रह सकती है। स्वच्छ भारत अभियान तभी सफल होगा, जब गांव भी साफ रहेंगे।
विरजानंद भार्गव, रंगपुरी, दिल्ली
झारखंड की परीक्षा
पिछले दिनों ‘जहां चुनाव भी उम्मीद नहीं बंधाते’ शीर्षक आलेख पढ़ने को मिला। फरजंद अहमद ने यह लेख झारखंड की दुर्दशा को ध्यान में रखकर लिखा है। एक लंबे आंदोलन के बाद बिहार के कुछ हिस्सों को अलग करके झारखंड राज्य का गठन किया गया। इसके गठन के बाद से ही आदिवासी समुदाय के नेता इसका नेतृत्व करते रहे हैं। लेकिन यह अफसोस की बात है कि न तो आदिवासियों की हालत सुधरी और न ही झारखंड को विकास की दौड़ में कोई उल्लेखनीय मुकाम हासिल हो सका। अब एक बार फिर यह आदिवासी बहुल सूबा चुनाव की दरवाजे पर खड़ा है। राज्य के मतदाताओं को इस बार ऐसे नेताओं को चुनना चाहिए, जो वाकई सभी समुदायों के प्रति समान दृष्टि रखते हैं। झारखंड में लगातार जोड़तोड़ से सरकारें बनती रही हैं, इससे भी उसकी तरक्की की राह अवरुद्ध हुई। इसलिए इस बार मतदाताओं को स्पष्ट जनादेश देना चाहिए, भले ही वह दल कोई भी हो। यह झारखंड की परीक्षा की घड़ी है और उसे इसमें कामयाब होना ही चाहिए।
दीपक सिंह, बोकारो, झारखंड
काले धन पर राजनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जी-20 बैठक में काले धन का मसला उठाया और इससे निपटने के लिए दुनिया भर के देशों में एक पारदर्शी तंत्र गठित करने पर जोर दिया। यह अच्छी बात है। लेकिन कहीं नरेंद्र मोदी इसके पीछे कोई राजनीति तो नहीं कर रहे? यह छिपी हुई बात नहीं है कि दुनिया के पैमाने पर ऐसी किसी व्यवस्था में काफी वक्त लगेगा। ऐसे में, उस वायदे का क्या होगा, तो मोदी जी ने देश के लोगों से किया था कि उनकी सरकार बनी, तो 100 दिनों के भीतर वह काला धन विदेशों से लेकर आएंगे। मोदी जानते हैं कि जनता इस मसले पर उनकी मंशा पर सवाल उठा सकती है, इसलिए उन्होंने जी-20 के मंच का इस्तेमाल अपनी घरेलू राजनीति साधने के लिए की। लेकिन वह भूल रहे हैं कि सबको हमेशा के लिए बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता। जनता तो सवाल पूछेगी, 100 दिनों में कितना काला धन लेकर आए?
मनोज मिश्र, मुखर्जी नगर, दिल्ली