महापुरुषों से सीखें
एक बार नेहरूजी से किसी बच्चे ने पूछा था कि ‘आप तो प्रधानमंत्री हैं, आपकी तो सभी इच्छाएं पूरी हो जाती होंगी।’ नेहरूजी पहले हंसे, फिर उन्होंने कहा, ‘नहीं मेरे बच्चे, कभी मेरी इच्छा...
एक बार नेहरूजी से किसी बच्चे ने पूछा था कि ‘आप तो प्रधानमंत्री हैं, आपकी तो सभी इच्छाएं पूरी हो जाती होंगी।’ नेहरूजी पहले हंसे, फिर उन्होंने कहा, ‘नहीं मेरे बच्चे, कभी मेरी इच्छा होती है कि मैं हरे-भरे खेतों में दूर तक दौड़ लगाऊं और दौड़ता चला जाऊं, किसी पान की दुकान पर बैठकर गप्पें मारूं और सुख-दुख बाटूं और बांटता ही रहूं, किसी मैदान में दोस्तों के साथ खेलूं और खेलता ही रहूं। मगर मेरी ये सारी इच्छाएं पूरी नहीं हो सकतीं और मैं इसके लिए किसी को जिम्मेदार भी नहीं ठहरा सकता।’ उन्होंने बच्चों के समूह को संबोधित करते हुए आगे कहा, ‘मेरे बच्चो, हमें अक्सर दूसरों का जीवन खुद से बेहतर लगता है, मगर सच तो यह है कि ईश्वर ने हर जीवन को कुछ जिम्मेदारियां और कुछ सुविधाएं दी हैं। चाहे आप कितने भी ऊंचे पद पर हों अथवा धनी व्यक्ति हों, यह जरूरी नहीं कि आपकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाएं।’ नेहरूजी के इस संदेश को आज दिल में बिठाने की बड़ी आवश्यकता है। आज कम उम्र में ही सब कुछ एक झटके में पा लेने और दूसरे के जीवन से ईर्ष्या के कारण अपराधी बनने के मामले सामने आ रहे हैं। ऐसे में, हर अभिभावक के सामने चुनौती है कि वे अपने बच्चों को संतोष और व्यक्तित्व -निर्माण की शिक्षा दें। महापुरुषों के जीवन के छोटे-बड़े प्रसंग बच्चों को सुनाकर हम उनके व्यक्तित्व -निर्माण का काम आसान कर सकते हैं।
भावना प्रकाश
व्यवस्था की खुली पोल
बीते दिनों प्रकाशित संपादकीय ‘जाम में जन्म’ दिल्ली की सरकारी स्वास्थ्य सेवा की पोल खोलने के लिए काफी है। नई दिल्ली में, जहां पूरे देश को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने की योजनाएं बनती हैं, एक बस में महिला का प्रसव होना व्यवस्था की अकुशल कार्यशैली की ओर इशारा करता है। यों तो प्रधानमंत्री मोदी का स्वच्छ भारत का अभियान स्वस्थ भारत का अभियान माना जा रहा है, लेकिन सब तक स्वास्थ्य सेवाओं को पहुंचाने का वादा कहां तक पूरा होगा, यह आने वाला समय ही बताएगा। ‘हेल्थ फॉर ऑल’ की बात कई दशक पूर्व की गई थी। मोदी सरकार को इसे अमलीजामा पहनाने में देर नहीं करनी चाहिए। देश में चिकित्सकों व पारा-मेडिकल कर्मियों की कमी को दूर करने, उन्हें उचित सुरक्षा या सम्मान देने पर भी ध्यान देना चाहिए।
शंकर प्रसाद, पटना
किराये कम हों
देश में पेट्रोल और डीजल के भाव करीब 10 प्रतिशत तक कम हो चुके हैं, मगर यात्री किराये में पग-पग पर मनचाही वृद्धि करने वाली राज्य सरकारों को यह कमी दिखाई नहीं दे रही है, इसलिए यात्री किरायों को कम नहीं किया जा रहा है। प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि क्या राज्यों के परिवहन निगम मुनाफा कमाने भर के लिए हैं? यदि नहीं, तो पेट्रोल-डीजल की कीमतों के अनुपात में यात्री किराये में कमी क्यों नहीं की जा रही है?
सुधाकर आशावादी
ब्रह्मपुरी, मेरठ
स्थानीयता का मुद्दा
झारखंड में सभी राजनीतिक दलों ने मतदाताओं को लुभाने के लिए एक से बढम्कर एक चुनावी वादे किए हैं, पर हैरत की बात यह है कि किसी भी प्रमुख राजनीतिक पार्टी ने अभी तक स्थानीय मुद्दों कोअपने घोषणा-पत्र में शामिल नहीं किया है। यह अपने आप में बड़ी ही निराशाजनक बात है। राज्य गठन के बाद से ही अधर में लटकी स्थानीयता-नीति के कारण तमाम छोटी-बड़ी नियुक्तियां बंद हैं। दूसरी ओर, दशकों से पिछड़ेपन का दंश झेल रहे झारखंड के मूलवासी देश के अन्य क्षेत्र के नागरिकों की तुलना में शिक्षा ही नहीं, बल्कि जीवन-स्तर के सभी क्षेत्रों में पिछड़े रहे हैं। ऐसी स्थिति में अखिल भारतीय स्तर पर उनका विकास तभी हो सकता है, जब कम से कम निम्न स्तरीय नौकरियों में स्थानीयता को वरीयता दी जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ, तो उनके विस्थापन व पलायन से राज्य में बड़ी गंभीर समस्या पैदा हो सकती है। अत: स्थानीयता को प्रमुख मुद्दा बनाने की जरूरत है।
महादेव महतो, तालगड़िया