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सफाई के बगैर

स्वच्छता अभियान का आरंभ दो अक्तूबर, 2014 को हुआ था। इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं मिल रहा है। कार्यालयों, रेलवे स्टेशनों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अब भी पुराना ही माहौल है। कूड़ाघरों का माहौल पहले...

सफाई के बगैर
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 01 Sep 2015 09:23 PM
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स्वच्छता अभियान का आरंभ दो अक्तूबर, 2014 को हुआ था। इसका कोई विशेष प्रभाव नहीं मिल रहा है। कार्यालयों, रेलवे स्टेशनों तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अब भी पुराना ही माहौल है। कूड़ाघरों का माहौल पहले जैसा है। सफदरजंग अस्पताल में तो बहुत ही बुरा हाल है। रिंग रोड, बस स्टॉप के पीछे नई ओपीडी बिल्डिंग का तो कहना ही क्या! चाय, छोले, बीड़ी-सिगरेट, पान-तंबाकू, ठेले और टेंटों में चलने वाले होटलनुमा खोखे की भरमार है। चारों तरफ कीचड़ ही कीचड़ है। बर्तन सड़क पर ही धोए जाते हैं। प्लास्टिक के कप, बर्तन कहीं भी फेंक दिए जाते हैं। हर तरफ गंदगी का अंबार लगा रहता है। जरा-सी गलती हुई, तो आप कीचड़ में फिसले ही समझो। अस्पताल में प्रवेश करते समय आपको नाक पर रूमाल रखना ही पड़ेगा। पता नहीं अस्पताल प्रशासन की नींद कब खुलेगी?
जसवंत सिंह, नई दिल्ली

मिलावट को रोको
आजकल खाद्य पदार्थों, मसालों, घी, तेल, दूध, मिठाइयों आदि में मिलावट के ढेर सारे समाचार आ रहे हैं। राज्य सरकारों को इस तरफ विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि ये वस्तुएं जन-जीवन से जुड़ी हैं और बीमारियों को फैलाने में इनका बहुत बड़ा योग है। मिलावटी मसाले और मिठाइयां अधिक हानिकारक होती हैं। इसलिए इनके नमूनों की जांच पर विशेष ध्यान आवश्यक है। प्राय: सभी छोटे-बड़े नगरों में सरकारी औषधालय पहले से ही काम कर रहे हैं। उसी भवन के एक-दो कमरों में खाद्य वस्तुओं के नमूनों की जांच के लिए प्रयोगशाला खोली जा सकती है। वहां खाद्य विभाग के इंस्पेक्टर खाद्य-सामग्री के सैंपल का परीक्षण कर उनकी गुणवत्ता परख सकते हैं। ऐसी जांच में बहुत खर्चा भी नहीं आएगा और इससे मिलावटखोरों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई का रास्ता भी साफ होगा।
ब्रजमोहन,  पश्चिम विहार, दिल्ली

झुक गई सरकार
एक साल से चली लंबी जद्दोजहद के बाद आखिरकार एनडीए सरकार को पुराने भूमि अधिग्रहण कानून पर लौटना पड़ा है। उसे विपक्ष के अडि़यल रुख के सामने झुकना पड़ा है। पुराने भूमि अधिग्रहण बिल की वापसी से विपक्षी घटकों को थोड़ी राहत मिलती है। लेकिन जिस तरह एनडीए सरकार ने इस बिल को अपनी नाक का सवाल बनाया था, उसमें वह हार गई, यह उसके भविष्य की राजनीति के लिए अच्छा संकेत नहीं है। दूसरी तरफ, विपक्षी दलों ने जिस तरह संसद को लगातार बंधक बनाए रखा, वे अपने काम में सफल हुए हैं। लेकिन 2013 के पेचीदा भूमि अधिग्रहण कानून की वापसी से निवेशकों को मायूसी हाथ लगी है। जाहिर है, विपक्षी घटक देश में युवाओं के लिए अवसर और गरीबों को आबाद नहीं देखना चाहते हैं, वरना भूमि अधिग्रहण बिल के संशोधन से देश में युवाओं के लिए अवसर और गरीबी को पाटने में मदद मिल सकती थी। ऐसे में, राजग सरकार के सामने सवाल उठता है कि वह मेक इंडिया अभियान कैसे आगे बढ़ा पाएगी? कैसे निवेशकों के लिए जमीन तलाशेगी? 
पंकज भारत,  मेरठ, उत्तर प्रदेश

आरक्षण का सवाल

हमारे देश में आरक्षण का लाभ जिसे मिलना चाहिए, वे दरअसल आर्थिक, रूप से पिछड़े लोग हों, चाहे किसी भी जाति के हों। इससे संबंधित कुछ नियमों में बदलाव समय की मांग ही नहीं, आवश्यकता भी है। उच्च जाति तथा निम्न जाति कहना शोभा देता है क्या? अगर हम यह भेद नहीं करके गरीबों-शोषितों को आरक्षण का लाभ दें, तो जातिगत राजनीति का सवाल ही नहीं उठेगा। अगर ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो परिणाम सबके सामने है। गुजरात में आरक्षण के लिए घमासान जारी है। पहले भी कई जातियां आरक्षण की मांग कर चुकी हैं। मैं उनका न तो समर्थन करता हूं और न ही विरोध, क्योंकि वे व्यवस्था से ठगे गए लोग हैं। वे क्यों, और भी जातियों के लोग आगे चलकर आरक्षण की मांग करेंगे। गरीब, गरीब होता है। चाहे वह किसी जाति का हो।
गोविंद पाठक
govindpathak225@gmail.com

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