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सच्ची श्रद्धांजलि

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल के नाम पर जो एकता दौड़ आयोजित की, उसमें सभी वर्ग के लोगों ने जोश और उत्साह के साथ हिस्सा लिया। समय-समय पर होने वाले ऐसे आयोजन न केवल जनमानस में उत्साह का संचार...

सच्ची श्रद्धांजलि
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 03 Nov 2014 09:08 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सरदार पटेल के नाम पर जो एकता दौड़ आयोजित की, उसमें सभी वर्ग के लोगों ने जोश और उत्साह के साथ हिस्सा लिया। समय-समय पर होने वाले ऐसे आयोजन न केवल जनमानस में उत्साह का संचार करते हैं, बल्कि सामाजिक सद्भाव के विकास में भी मददगार होते हैं। लेकिन सरदार पटेल की मूर्ति के लिए हजारों करोड़ रुपये दिए जाने की खबर सुनकर धक्का-सा लगा। जिस देश में करोड़ों लोगों को गरीबी, कुपोषण, अशिक्षा, बेरोजगारी तथा कई महामारियों से बचाने के लिए बजट की समस्या मुंह बाए खड़ी हो, वहां एक मूर्ति पर इतना खर्चा करना कहां की अकलमंदी है? वह भी तब, जब जिसकी मूर्ति बन रही है, उसे याद करने और उसके प्रति श्रद्धा व्यक्त करने के दौड़ जैसे सुंदर तरीके उपलब्ध हों? इससे तो अच्छा हो कि सरकार सरदार पटेल के नाम से गांवों में कुछ स्कूल खुलवा दे या फिर देश में नए कृषि विद्यालय खुलवाकर नई पीढ़ी में कृषि को भी एक सम्मानजनक कर्म के रूप में स्थापित करने का प्रयास करे। किसानों के नेता को सच्ची श्रद्धांजलि भारत के किसानों को खुशहाल करना व कृषि को देश में एक प्रतिष्ठित कार्य बनाना है, न कि मूर्ति बनवाना।
भावना प्रकाश
sandarshika11@gmail.com

इंदिरा की उपेक्षा क्यों

भाजपा की नई सरकार कितनी संकीर्ण सोच और तंग नजरिया वाली है, यह 31 अक्तूबर को फिर से साबित हुआ। देश की पहली महिला प्रधानमंत्री और आधुनिक भारत की प्रखर नेता इंदिरा गांधी के बलिदान को मोदी सरकार ने जिस तरह से नजरअंदाज किया, उसकी भरपूर भर्त्सना होनी चाहिए। एक प्रधानमंत्री किसी पार्टी का नहीं होता, इसलिए उसका निरादर देश का अपमान है। हर राजनेता के जीवन के कुछ फैसले अच्छे होते हैं और कुछ गलत। अगर वह फैसला करने वाले पद पर है, तो अच्छे-बुरे निर्णय लाजिम हैं, लेकिन उसकी राष्ट्र निष्ठा और सेवा को यदि कोई देश भूल जाए, तो वह कृतघ्न देश कहलाता है। मोदी सरकार ने इंदिरा गांधी की अनदेखी की, मगर यह सुखद है किहिन्दुस्तान ने अपनी वीरांगना को स्नेह और प्रेम के साथ याद किया। अटलजी की सरकार ने इस मर्यादा का कभी त्याग नहीं किया। लेकिन मौजूदा निजाम से ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती।
अमर सहगल, गुरुरामदास नगर, दिल्ली-92  

वारेन एंडरसन और भोपाल

भोपाल गैस त्रासदी का जिम्मेदार वारेन एंडरसन 93 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गया। एक आरामदेह जिंदगी जीने के बाद वह प्राकृतिक मौत मरा। हम लाख कोशिशें करते रहे, मगर यूनियन कार्बाइड और एंडरसन को वह सजा नहीं दिला सके, जिसके वे हकदार थे। हमारे देश के गुनहगार अक्सर सरहद के बाहर मजे की जिंदगी जीते हैं और हम बेबस कलेजा कूटते रहते हैं, चाहे वह एंडरसन हो, क्वात्रोच्चि हो या फिर दाऊद इब्राहीम। सरकार को दूसरे देशों के साथ प्रत्यर्पण संधि को, खासकर अमेरिका के साथ ऐसा रूप देना चाहिए, ताकि कोई अमेरिकी यूं साफ बचकर न निकल जाए।
मोहित वर्मा, दादा देव रोड, पालम गांव, दिल्ली

कांग्रेस से बिदके दल

अब झारखंड मुक्ति मोर्चा ने भी कांग्रेस का हाथ झटक दिया। पार्टी अपने बूते पर अगला विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है। आखिर क्या वजह है कि एक के बाद दूसरी क्षेत्रीय पार्टी इस राष्ट्रीय दल से अपना दामन छुड़ाने लगी? दरअसल, कांग्रेस में नेतृत्व शून्यता नजर आ रही है। देश के लोग जान गए हैं कि सोनिया गांधी की पारी खत्म हो गई है और राहुल गांधी अब भी आधे-अधूरे मन से ही राजनीति कर रहे हैं। लोगों को, खासकर नौजवानों को अब एक ऐसा नेता चाहिए, जो कम से कम अच्छा वक्ता हो, जो लोगों के बीच बेहिचक और लगातार मौजूद हो। क्षेत्रीय दल के नेताओं को लगता है कि वे कांग्रेस के नेतृत्व से इस मामले में कहीं आगे हैं, तो अपना नुकसान क्यों कराएं?
सीमा शर्मा, धनबाद, झारखंड

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