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बढ़ता प्रदूषण

देश-दुनिया में प्रदूषण काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसे रोकना बहुत जरूरी है। यदि इसे नहीं रोका गया, तो पूरा जीवन ही समाप्त हो जाएगा। प्रदूषण रोकने के लिए हर साल नियम-कानून बनते हैं। फिर भी यह कम नहीं...

बढ़ता प्रदूषण
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 16 Apr 2015 11:03 PM
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देश-दुनिया में प्रदूषण काफी तेजी से बढ़ता जा रहा है। इसे रोकना बहुत जरूरी है। यदि इसे नहीं रोका गया, तो पूरा जीवन ही समाप्त हो जाएगा। प्रदूषण रोकने के लिए हर साल नियम-कानून बनते हैं। फिर भी यह कम नहीं हो रहा है। इसके मुख्य कारण हैं- स्वयं जनता और भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारी। हम किसी देश के बारे में कहते हैं कि वह कितना सुंदर व प्रदूषणमुक्त है। लेकिन हम यह जानने का प्रयास नहीं करते कि यह कैसे मुमकिन हो सका? इसका सबसे मुख्य कारण यह है कि वहां के कर्मचारी व आम लोग अपना काम बड़ी जिम्मेदारी से करते हैं, जबकि अपने यहां ऐसा नहीं है। जैसे, यदि यहां कूड़ेदान हैं, तो लोग दूर से ही उनमें कचरे फेंकते हैं, जो कूड़ेदान में न जाकर इधर-उधर गिर जाते हैं। इसलिए हमें खुद को स्वच्छ देश बनाना होगा।
अवनेश कुमार, जौनपुर

बारिश और बरबादी
बेवफा मौसम की फितरत पर किसका जोर चला है भला? पर आज इंसान खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहा है। जो भविष्य से खिलवाड़ करते हुए हर पल कुदरत के नियमों को तोड़ने में लगा है, उसके सामने खतरनाक नतीजे आने लगे हैं। प्रकृति आज इंसान की हरकतों से जितनी हैरान-परेशान है, शायद पहले कभी न रही हो। अपनी सुविधा और स्वार्थ के चलते इंसान ने ‘ग्लोबल वार्मिंग’ का जो बीज बो दिया है, कल जब यह जहरीला पेड़ बन जाएगा, तो आने वाली पीढ़ियां इसके दुष्परिणामों से कैसे बच पाएंगी? यह एक बड़ा सवाल है। बेमौसम बरसात से मौसम विज्ञानी भी अचरज में हैं। इसने कृषि प्रधान देश के किसानों की कमर तोड़कर रख दी है। देखा जाए, तो मौसम का बदलता मिजाज एक चेतावनी है, हम इंसानों के सुधरने के लिए।
सचिन कुमार कश्यप, शामली

संस्कृति का पर्व
झाड़खंड झाड़-जंगलों से भरा भू-भाग मात्र नहीं, बल्कि अपनी विशिष्टताओं के साथ अलग संस्कृति का नाम भी है। यही वह क्षेत्र है, जहां प्राक्वैदिक आदिम सभ्यता आज भी अपनी विशिष्टता संजोए है। भगता परब इसी संस्कृति की एक पहचान है। इसे चड़क पूजा, भोक्ता परब, सती भोक्ता, विशु परब, मंडा परब आदि कई नामों से जाना जाता है। यह मउहा मास, यानी चैत महीने से लेकर धरन मास, यानी जेठ महीने तक मनाया जाता है। भगता परब विशुद्ध आदिवासी संस्कृति का पर्व है। इस पर्व का खास आकर्षण ‘गाजन-नाच’ होता है। आखरी गाजन की रात छौ-नाच करके ‘रतजगा’ किया जाता है। मेरा राज्य सरकार से निवेदन है कि इस महापर्व को संरक्षित करने हेतु उचित व्यवस्था प्रदान की जाए।
महादेव महतो, तालगड़िया

नेट निष्पक्षता या छलावा
नरेंद्र मोदी सरकार पर कॉरपोरेट घरानों की सरकारी मदद के आरोप व्यर्थ ही नहीं लगते, बल्कि केंद्र सरकार का हर निर्णय कॉरपोरेट प्रेम का प्रमाण साथ लिए रहता है। कुछ टेलीकॉम कंपनियों की आर्थिक सहायता के लिए मोदी सरकार नेट निष्पक्षता कानून लाना चाह रही है, जिससे टेलीकॉम कंपनियों का तो भला होगा, लेकिन उपभोक्ताओं के बिल तीन से चार गुने हो जाएंगे, क्योंकि आजकल एंड्रॉयड फोन केवल बात सुनने या सुनाने के लिए ही इस्तेमाल नहीं होते, बल्कि ये मिनी कंप्यूटर हैं, जिनसे व्यक्ति रेलवे टिकट बुकिंग से लेकर ऑनलाइन व्यापार तक किए जाते हैं। अगर हर ऐप के लिए दाम तय कर दिए जाएंगे, तो एंड्रॉयड फोन जनता के लिए एक सिरदर्द हो जाएगा। केवल बड़े लोग ही व्हाट्सऐप या स्पाइक या जीमेल सुविधा प्रयोग नहीं करते, बल्कि बड़े शहरों में कोरियर से लेकर ट्रांसपोर्ट सेवाएं तक इन्हीं ऐप द्वारा संचालित होती हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अच्छे दिनों को लाने का वादा किया था, लेकिन अच्छे दिन तो सिर्फ कॉरपोरेट और कंपनियों के ही आते दिख रहे हैं।
रचना रस्तोगी, मेरठ 

 

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