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शिक्षा और सोच

'पीएचडी, बीटेक डिग्रीधारक बनना चाहते हैं चपरासी' इस खबर को पढ़कर, हाय! बेरोजगारी कहकर, कोई भी व्यक्ति अपनी नजर अखबार की किसी दूसरी खबर पर टिका सकता है। लेकिन यह खबर सोचने पर मजबूर करती है, क्योंकि...

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लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 13 Sep 2015 09:19 PM
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'पीएचडी, बीटेक डिग्रीधारक बनना चाहते हैं चपरासी' इस खबर को पढ़कर, हाय! बेरोजगारी कहकर, कोई भी व्यक्ति अपनी नजर अखबार की किसी दूसरी खबर पर टिका सकता है। लेकिन यह खबर सोचने पर मजबूर करती है, क्योंकि उत्तर प्रदेश में भुखमरी जैसे हालात नहीं हैं। युवाओं के पास रोजगार के अवसर नहीं हैं और उन्हें मजबूरन उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी उन पदों के लिए आवेदन करना पड़ा, जिन पदों के लिए योग्यता दसवीं कक्षा उत्तीर्ण होना ही पर्याप्त है। वैसे तो कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, परंतु एक पढ़ा-लिखा युवक यदि अपनी अधिकतम प्राप्त शैक्षिक योग्यता के स्तर से बहुत नीचे जाकर कोई काम करेगा, तो वह उसकी मजबूरी नहीं है, बल्कि यह तो अपनी शैक्षिक योग्यता को अपने हाथों से कठघरे तक घसीटकर ले जाने वाला कृत्य है। इसलिए मैं लानत-मलामत भेजता हूं ऐसी शिक्षा व्यवस्था पर।
श्रवण कुमार
मुरादाबाद, उत्तर प्रदेश

बदहाल स्वास्थ्य सेवाएं
सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाएं बदतर हालत में हैं, जिनसे लोगों को निजी चिकित्सालयों में जाना पड़ता है। वहां पर लूट चरम पर है, जिससे लोगों को झोलाछाप डॉक्टरों की शरण में जाना पड़ता है। वहां पर इलाज करवाने वालों पर हर समय खतरा मंडराता रहता है और कई बार तो इलाज के दौरान ही मरीज को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। एक व्यक्ति के लिए सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सुविधाएं अहम हैं। यह आम आदमी का अधिकार भी है, लेकिन सरकार और जनता के चुने हुए नुमाइंदे इन सबसे बेखबर हैं। नेता तो हर गली-मुहल्ले में होते हैं, लेकिन सामाजिक सुधारक कम ही होते हैं, जो इन सब सुविधाओं को लोगों को दिलवाने के लिए एड़ी-चोटी की जोर लगा सकें। हर आम आदमी को अपने अधिकारों व कर्तव्यों के बारे में ज्ञान होना चाहिए, क्योंकि अधिकार मांगने से नहीं, बल्कि अधिकार पाने के लिए लड़ना पड़ता है।
सुनील प्रेमी
सूरजपुर, ग्रेटर नोएडा

बोलें पीएम की भाषा
नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने अब 16 माह होने जा रहे हैं, लेकिन वह अभी तक चुनावी भाषा का ही प्रयोग कर रहे हैं, भले ही मौका कुछ भी हो। विश्व हिंदी सम्मेलन तक में वह नहीं चूके। सबसे ताजा मामला है कि वह ऋषिकेश में अपने गुरु से मिलने गए, लेकिन वहां भी कांग्रेस पार्टी को ही कोसते रहे। ऐसी गुरु भक्ति किस काम की, जिसमें विरोध करने वालों को हमेशा कोसते ही रहो? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस किसी भी स्थान पर जाते हैं, वहां कांग्रेस सहित उस क्षेत्र की विरोधी पार्टी को निशाना बनाने से नहीं चूकते। लेकिन अब जन-मानस सब समझ गया है, भीड़ देखकर किसी भी व्यक्ति को उत्साहित होने की जरूरत नहीं। यह आती नहीं, लाई जाती है और कैसे, यह सब जानते हैं।
यश वीर आर्य
aryayv@gmail.com

सम्मेलन का हासिल
भोपाल में चले विश्व हिंदी सम्मलेन में जिस प्रकार 40 देशों के प्रतिनिधि हिंदी भाषा के अस्तित्व को बढ़ाने, बचाने-संवारने में लगे, वह निश्चित रूप से सराहनीय है। इटली के वेनिस विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर जाइली ने धाराप्रवाह हिंदी बोलकर यह जता दिया कि भारतीय चाहे हिंदी बोलने से परहेज करें, लेकिन विदेश में इसके प्रति अटूट प्रेम है। सनद रहे कि आज अपने को अति-विशिष्ट लोगों में शामिल करने वाले बहुत से ऐसे हैं, जो ऑफिस तो क्या, घर में भी हिंदी बोलने में शर्म महसूस करते हैं। इनके लिए जाइली एक सबक हैं। साथ ही, जिस प्रकार माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, एप्पल जैसी सॉफ्टवेयर कंपनियां हिंंदी के नए-नए ऐप्स विकसित कर रही हैं, इसके लिए उनको भी साधुवाद है। आशा है, जिस प्रकार हिंदी विश्व सम्मलेन में नए-नए आयाम उभरकर आगे आए हैं, उनका दूरगामी लाभ निम्न से उच्च वर्ग तक सहजता से और समान रूप से मिलना सुनिश्चित होगा।
विजय पपनै
फरीदाबाद, हरियाणा

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