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बर्बरता की पराकाष्ठा

आतंकी संगठन आईएसआईएस ने जिस तरह दो पत्रकारों का सिर कलम किया और अलग-अलग वीडियो जारी किया है, वह उसकी बर्बरता को ही बताता है। ऐसे संगठन देश व समाज में आतंक नहीं, बल्कि घृणा पैदा करते हैं। जैसी खबरें आ...

बर्बरता की पराकाष्ठा
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 04 Sep 2014 09:39 PM
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आतंकी संगठन आईएसआईएस ने जिस तरह दो पत्रकारों का सिर कलम किया और अलग-अलग वीडियो जारी किया है, वह उसकी बर्बरता को ही बताता है। ऐसे संगठन देश व समाज में आतंक नहीं, बल्कि घृणा पैदा करते हैं। जैसी खबरें आ रही हैं, उनके मुताबिक इराक व सीरिया में उसके आतंकी कुर्द और यजीदियों का कत्लेआम कर रहे हैं। यह सब कुछ इस्लामिक स्टेट के लिए किया जा रहा है, क्या ऐसे स्टेट में करुणा का कोई स्थान नहीं है? अगर आज कोई इस्लामी जमात इन आतंकी घटनाओं की निंदा नहीं करती है या यह नहीं कहती कि ये सारी कारगुजारियां इस्लाम के उसूलों के खिलाफ हैं, तो वह गलत है। जुल्म की हदें लांघती इन घटनाओं के खिलाफ पूरे विश्व समाज को उठ खड़ा होना चाहिए। ऐसे समय में मुझे कवि दिनकर की पंक्तियां याद आती हैं- ‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध। जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनके भी अपराध।’
प्रवीण कुमार, शाहदरा, दिल्ली

नफा या नुकसान
जन-धन योजना के शुभारंभ पर काफी लोगों को यह शंका हुई कि इससे गरीबों को फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा। कई लोग तो यह कह रहे हैं कि साहूकारी व्यवस्था और इस योजना में कोई फर्क नहीं है। लेकिन मैं बताना चाहूंगा कि जन-धन योजना का उद्देश्य सिर्फ ग्रामीण क्षेत्रों का धन मुंबई पहुंचाना नहीं है, यह नकारात्मकता की चरम सोच है। दरअसल, यह योजना एक प्रयास है देश के कोने-कोने में रह रहे लोगों को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने का, ताकि वे खून-पसीने की अपनी कमाई को बिना डर के बैंक में जमा करें और ब्याज का लाभ उठाएं। साहूकारी व्यवस्था में सब कुछ मनमाना होता है, लेकिन बैंकिंग व्यवस्था में सभी सुनियोजित और कानून-सम्मत होता है। खाते खुलवाने वालों को डेबिट कार्ड दिया जाएगा, इससे ग्रामीण क्षेत्रों में एटीएम सुविधा आएगी, जिससे वहां के लोगों को रोजगार मिलेगा।
गौरव गुप्ता, नई दिल्ली

विदेशी निवेश नहीं चाहिए
पंद्रह अगस्त को लाल किले के प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में विदेशी निवेश को लेकर एक बात कही कि ‘कम ऐंड मेक इन इंडिया’, जिसका साफ अर्थ था कि प्रधानमंत्री भारतीय बाजार में विदेशी कंपनियों को लाना चाहते हैं। आम धारणा यही है कि विदेशी कंपनियां आती हैं, तो अपने साथ तकनीकी और पूंजी लाती हैं और साथ ही, बेरोजगारी की समस्या दूर होती है। लेकिन सच्चाई इसके उलट है। अगर विदेशी कंपनियों के आने से देश में पूंजी आती, तो हमारे देश की अर्थव्यवस्था इतनी गिरती क्यों चली जा रही है? इसलिए हमें इस सोच से निकलते हुए अपनी स्वदेशी कंपनियों को मदद देनी चाहिए। हमें सिर्फ ‘मेड इन इंडिया ऐंड मेड बाय इंडियंस’ पर भरोसा करना चाहिए। 
विवेकानंद विमल, पाथरोल, मधुपुर

लाभ के पिछले दरवाजे
अक्सर जो बड़े नौकरशाह, बड़े व्यक्तित्व या बड़े पदों पर आसीन होते हैं, वे रिटायरमेंट के बाद सरकार द्वारा नियुक्त समितियों के अध्यक्ष या सदस्य हो जाते हैं या फिर उन्हें सरकार प्रदेश का राज्यपाल बना देती है या वे जांच आयोग से जुड़ जाते हैं। ओहदे का यह सफर चलता रहता है, जबकि कई लोग कतार में अपने समय का इंतजार करते रह जाते हैं। यह भी होता है कि एक पद पर किसी को लाभ देकर आप दूसरे पद को पा लेते हैं। इसलिए केंद्र सरकार को एक ऐसा कानून बनाना चाहिए, जिसमें यह प्रावधान हो कि पद छोड़ने के पांच साल बाद तक न्यायमूर्तियों, रिजर्व बैंक के प्रमुखों, केंद्रीय जांच ब्यूरो के प्रमुखों, निर्वाचन आयुक्तों, सेना प्रमुखों व अन्य को कोई दूसरा पद न सौंपा जाए। निष्पक्षता बहाली के लिए यह कानून सहायक है। हां, जनता द्वारा चुनकर कोई व्यक्ति संसद या विधानसभा में लगातार पहुंच रहा है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है।
यशवीर आर्य, दिल्ली

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