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बेरोजगारी की मार

बीते दिनों प्रकाशित संपादकीय 'बेरोजगारों की फौज' पढ़ा। कुछ निचले दर्जे के पदों के लिए लाखों आवेदन यह बताने के लिए काफी हैं कि हमारी व्यवस्था किस कदर नाकाम है। कुछ समय पहले तक हम लॉर्ड मैकाले की...

बेरोजगारी की मार
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 25 Sep 2015 08:50 PM
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बीते दिनों प्रकाशित संपादकीय 'बेरोजगारों की फौज' पढ़ा। कुछ निचले दर्जे के पदों के लिए लाखों आवेदन यह बताने के लिए काफी हैं कि हमारी व्यवस्था किस कदर नाकाम है। कुछ समय पहले तक हम लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को यह कहकर कोसते थे कि यह शिक्षा पद्धति केवल क्लर्क पैदा कर रही है, परंतु हमारी शिक्षा प्रणाली क्या पैदा कर रही है? चपरासी के लिए आवेदन करने वालों में बड़े-बड़े डिग्रीधारी हैं। जरा सोचिए, जिस पद के लिए पांचवीं पास चाहिए, वहां डिग्रीधारी लोग आएंगे, तो कम शिक्षित कहां जाएंगे? अच्छा होता कि शिक्षा की न्यूनतम और अधिकतम सीमा भी निर्धारित कर दी जाती। अभी तक 'मेक इन इंडिया' या ऐसी अन्य योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंच नहीं पाया है। शिक्षा को किताबी ज्ञान से निकालकर रोजगारमूलक बनाना होगा। उत्तर प्रदेश में जितने लोग बेरोजगार हैं, उतनी तो पूरी दिल्ली की आबादी है। रोजगार बढ़ाना बेहतर प्रशासन और भ्रष्टाचार मिटाने के लिए जरूरी है। अच्छा होगा कि उत्तर प्रदेश का विभाजन कर उसके तीन हिस्से किए जाएं, जिससे वहां विकास हो और रोजगार के अवसर बढ़ें।
इंद्र सिंह धिगान, रेडियो कॉलोनी, किंग्जवे कैंप, दिल्ली

उपेक्षित है स्वास्थ्य-क्षेत्र

पिछले दिनों दिल्ली में एक बच्चे की इस वजह से मौत हो गई, क्योंकि उसके इलाज में देरी की गई। फिर यह भी सुना कि माता-पिता ने अपने बच्चे की मौत के गम में आत्महत्या कर ली। यह पूरी स्थिति संबंधित विभाग से महज जवाबदेही नहीं मागती, बल्कि हमारे स्वास्थ्य तंत्र की लापरवाही की पोल भी खोलती है। भारत को आजाद हुए साढ़े छह दशक से ऊपर हो गए, पर देश की स्वास्थ्य-सेवाओं में सुधार नहीं आया। हमारी केंद्र सरकार बुलेट ट्रेन को लेकर उत्साहित है, लेकिन ऐसी बुलेट ट्रेन चलाने का क्या औचित्य, जब देश के नागरिकों की सेहत ही बिगड़ रही हो। मरीजों की लंबी-लंबी लाइनें आखिर कब तक इलाज के लिए सरकती रहेंगी? यदि केंद्र और राज्य की सरकारों ने देश की सेहत को गंभीरता से लिया होता, तो डेंगू जैसी बीमारियां मरीजों को निगल नहीं रही होतीं।
कमलेश तुली, द्वारका, नई दिल्ली

सुविधाओं का अभाव

मौसम के अनुसार, बीमारियों की मार प्रत्येक साल आम जनता को झेलनी पड़ती है। सरकार इन बीमारियों से निपटने का दावा प्रत्येक साल करती है। लेकिन दिल्ली की जनता को बीमारी में भी राजनीति का प्रकोप देखने को मिलता है। दिल्ली नगर निगम भाजपा के अंतर्गत आती है और दिल्ली सरकार आम आदमी पार्टी के पास है। दिल्ली नगर निगम और दिल्ली सरकार, दोनों ठीक प्रकार से आंकडे़ भी जनता के सामने नहीं रख रहे हैं। हाल ही में जिस प्रकार की घटनाएं सुनने को मिलीं, उनसे यही पता चलता है कि अस्पताल के अंदर भर्ती होने में भी आम जनता को बहुत मशक्कत करनी पड़ती है। मानसून के दौरान मच्छरों को मारने-भगाने के लिए दवाइयों का छिड़काव किया जाता था, परंतु कुछ समय से ऐसा कुछ भी नहीं दिख रहा है। जाहिर है, प्रशासन के कामकाज का कच्चा चिट्ठा खुल रहा है।
रतन सिंह, दिल्ली विश्वविद्यालय

भारत पर निगाहें

विश्व के कई देशों में आज उथल-पुथल मची हुई है। इराक और उसके आसपास के क्षेत्र आतंकवाद से ग्रस्त हैं। पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा देकर अफगानिस्तान, भारत समेत अनेक देशों की शांति व्यवस्था को नुकसान पहुंचा रहा है। चीन भी परेशान है, उसकी अर्थव्यवस्था डगमगा रही है। नेपाल संविधान बना चुका है, लेकिन वहां भी अशांति है। इन सबके बीच भारत अपनी मजबूत आर्थिक व सामाजिक नींव के कारण विश्व में एक अलग पहचान बनाए हुए है। भारतीय राजनीति में अगर सुधार हो जाए, तो हम पूरे विश्व में एक मजबूत ताकत के रूप में उभर सकते हैं। विश्व के ज्यादातर देशों की निगाह भारत पर टिकी हुई है।
दिनेश गुप्त, पिलखुवा, उत्तर प्रदेश

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