फोटो गैलरी

Hindi Newsसंकीर्ण होती सियासत

संकीर्ण होती सियासत

बिसाहड़ा कांड में जो बेतुकी बयानबाजी हो रही है, उससे दिन-ब-दिन एक अलग तरह का राजनीतिक माहौल तैयार हो रहा है। भाजपा, बसपा, सपा और राजद के नेता जमीनी समस्या से भटककर बिसाहड़ा कांड पर तुच्छ राजनीति कर...

संकीर्ण होती सियासत
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 07 Oct 2015 09:26 PM
ऐप पर पढ़ें

बिसाहड़ा कांड में जो बेतुकी बयानबाजी हो रही है, उससे दिन-ब-दिन एक अलग तरह का राजनीतिक माहौल तैयार हो रहा है। भाजपा, बसपा, सपा और राजद के नेता जमीनी समस्या से भटककर बिसाहड़ा कांड पर तुच्छ राजनीति कर रहे हैं। बड़बोले नेता देश की समस्या से हटकर समय का दुरुपयोग करते हैं, ताकि जनता को इसी मुद्दे पर भ्रम में डाला जा सके, बाकी के वादों और नीतियों को पीछे धकेला जा सके। यह कांड मानवीय चेतना को झकझोर देता है। इसकी निष्पक्ष जांच बनती है। यदि कानून किसी मामले को अवैध करार देता है, तो इस मामले में जांच भी कानूनी प्रक्रिया द्वारा होनी चाहिए। किसी साधारण व्यक्ति को यह अधिकार नहीं होता कि वह किसी के जीवन के अधिकार का हनन करे। लेकिन जिस तरह बिसाहड़ा में एक शख्स की हत्या हुई, वह स्तब्ध करने वाली है। आज भी भारत में हिंदू-मुस्लिम एकता गौरवमय है। लेकिन कुछ समय से नेता वोट बैंक को भुनाने के लिए इस एकता पर चोट की पुरजोर कोशिश करते आ रहे हैं। इसलिए देश के नागरिकों को तुच्छ राजनीति से दूर कानून की परिधि में रहना चाहिए।
पंकज भारत, मेरठ, उत्तर प्रदेश

समाज में हिंसा
हाल के दिनों में जिस तरह देश में हत्या की घटनाएं घटी हैं, उससे यही जाहिर होता है कि लोग देश की कानून-व्यवस्था को दरकिनार करके ही जी रहे हैं। नगालैंड के दीमापुर में बलात्कार आरोपी की हत्या, बिहार में एक निजी स्कूल के प्रिंसिपल की भीड़ द्वारा हत्या, रांची शहर में सांप्रदायिकता के कारण लोगों की हत्या और अब उत्तर प्रदेश की दादरी में एक 50 वर्षीय बुजुर्ग की हत्या, ये घटनाएं वर्तमान समाज को मनुष्यता से पशुता की ओर धकेले जा रही है। लोग कानून को अपने हाथ में लेकर देश की शासन व्यवस्था को शर्मसार कर रहे हैं। और तो और, कुछ लोग उन खत्म होती जिंदगी को बचाने या पुलिस को सूचना देने की बजाय उसका वीडियो बनाते हैं। क्या हमारा समाज यही रह गया है कि हम एक-दूसरे को मारते-काटते रहें? और इन अपराधों पर होने वाली बहसों को खबरिया चैनलों में मनोरंजन के तौर पर देखते रहें? अपराधी के सामाजिक बहिष्कार की आदत अब तक समाज को नहीं हुई है। क्या हम उस अहिंसात्मक समाज की स्थापना कर पाएंगे, जिसकी कल्पना महात्मा गांधी ने की थी?
साकेत आनंद
बेगूसराय, बिहार
saketanandgyan@gmail.com


लालच और बदजुबानी
बिहार के चुनाव में विकास को एजेंडा बताने वाले नेताओं ने विकास को परे रखकर लालच और बदजुबानी को गले लगा लिया है। इसमें नुकसान बिहार का ही हो रहा है। लालू यादव, राबड़ी देवी से लेकर अमित शाह और सुशील मोदी तक ने अभद्र भाषा का जमकर इस्तेमाल किया है। ठीक इसी प्रकार भाजपा द्वारा टीवी, स्कूटी, धोती-साड़ी आदि के प्रलोभन दिए जा रहे हैं। मुद्दा  विकास का था, लेकिन अब लालच पर आ गया है। हिंदू और मुस्लिम वोटों को बांटने की कोशिश की जा रही है। जनता से अपील है कि वह लालच और जुमलों के फेर में न पड़े। सोच-समझकर वोट करे, क्योंकि अगर आपकी सावधानी  हटी, तो दुर्घटना घटी।
प्रिया कुमारी
priyapriy81@gmail.com


नाम का चक्कर
नई दिल्ली नगर पालिका का अंग्रेजी में संक्षिप्त रूप एनडीएमसी है। इसी की देखा-देखी उत्तरी दिल्ली नगर निगम भी अपने नाम का संक्षिप रूप एनडीएमसी लिखने या प्रचारित करने लगा है। दोनों के एक जैसे नाम होने के कारण भ्रम की स्थिति पैदा होती है। दोनों नगर निगमों के दिल्ली के होने के बावजूद क्या वे आपस में इतना भी तालमेल नहीं बैठा सकते कि उनके संक्षिप्त नाम में कुछ तो फर्क हो? बड़ी हैरानी की बात है! क्या कोई जिम्मेदार अधिकारी इस पर ध्यान देगा या यथास्थिति बनी रहेगी और लोग यूं ही भ्रमित होते रहेंगे?
सतप्रकाश सनोठिया, रोहिणी
spgoel.jhm@gmail.com

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें
अगला लेख पढ़ें