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तेल का गणित

पिछले एक-दो महीनों में कच्चे तेल के दाम पिछले चार वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। लेकिन भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम उस अनुपात में घटते नहीं दिख रहे, जितनी आशा की जा रही थी। कभी-कभी तो...

तेल का गणित
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 11 Dec 2014 10:24 PM
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पिछले एक-दो महीनों में कच्चे तेल के दाम पिछले चार वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। लेकिन भारत में पेट्रोल और डीजल के दाम उस अनुपात में घटते नहीं दिख रहे, जितनी आशा की जा रही थी। कभी-कभी तो ऐसा लगता है, अंतरराष्ट्रीय बाजार के हिसाब से कीमतें बढ़ती तो हैं, लेकिन उनके घटने का गणित कुछ और ही होता है। जब 2006 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम भारतीय मुद्रा के अनुसार, 3,280 रुपये प्रति बैरल था, उस समय भारत में पेट्रोल 47 रुपये व डीजल 32 रुपये लीटर था। यदि 2010 के आंकड़ों का आकलन किया जाए, तो उस समय कच्चे तेल की कीमत वर्तमान समय के बराबर ही थी। तब पेट्रोल तथा डीजल के दाम भारत में क्रमश: 51 रुपये और 57 रुपये प्रति लीटर थे, जबकि आज पेट्रोल का दाम 64 रुपये प्रति लीटर है। पिछली सरकार ने जो किया, सो किया और उसका नतीजा भी सबके सामने है। लेकिन ऐसे में, हम यह भी कैसे कह सकते हैं कि वर्तमान सरकार तमाम ऐसी समस्याओं से छुटकारा दिलाने की क्षमता रखती है, जो कांग्रेस पिछले साठ वर्षों में नहीं कर पाई?
दीपक दिवाकर, अमरोहा

ताकि गांव खुशहाल हो
सांसदों को गांव के विकास की जिम्मेदारी सौंपकर आदर्श ग्राम योजना जन-प्रतिनिधियों व स्थानीय सरकारी संस्थाओं के बीच के संबंधों को बनाने, मजबूत करने और उनमें समन्वय लाने का प्रयास करती है। सांसद विकास के लिए अपनाए जाने वाले गांव की पहचान करते हैं, योजना प्रक्रिया को सक्षम बनाते हैं और योजना के लिए धन जुटाने में हाथ बंटाते हैं। जिला प्रशासन ग्राम पंचायत के चयन के लिए जरूरी सर्वेक्षण करता है, विकास योजना तैयार करने में सहायता करता है और योजना की मासिक प्रगति की समीक्षा करता है। इस योजना में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है ग्राम पंचायत की। अब हम एक जरूरी मुद्दे पर आते हैं। बिना सरकारी तंत्र और ग्रामीण समुदायों की रुचि, निवेश व भागीदारी के कोई भी परियोजना सफल नहीं हो सकती है। सांसदों के पास अपनाए गए गांव के विकास के लिए दर्जनों विचार हो सकते हैं, लेकिन गांव के निवासी ही उस गांव की जरूरतों की सबसे अच्छी पहचान कर सकते हैं।
सुभाष बुड़ावन वाला, रतलाम

नक्सलियों पर नरमी क्यों
कुछ विद्वानों-चिंतकों का यह मानना है कि नक्सली हमारे अपने ही भटके हुए लोग हैं। सवाल यह है कि अगर ये भटके हुए हैं, तो सही रास्ते पर कब आएंगे? पिछले कई वर्षों से हमारे जवान इनके हाथों मारे जा रहे हैं, तो ये हमारे अपने कैसे हो सकते हैं? जिस तरह ये जवानों की हत्याएं कर रहे हैं, वह एक प्रकार का आतंकवाद ही है। इसलिए इनसे मुकाबले के लिए सेना की मदद ली जाए। यदि कश्मीर में आतंकवाद-अलगाववाद को रोकने के लिए सेना की मदद ली जा सकती है, तो नक्सलवाद को रोकने के मामले में इतनी नरमी क्यों दिखाई जाती रही है?
फरहान, खीरी टाउन, उत्तर प्रदेश

आखिर जिम्मेदार कौन
रेप की घटना के सामने आते ही दिल्ली में राजनीति का सियासी पारा तेज हो गया है। वैसे भी विपक्ष को सिर्फ मौका चाहिए सरकार पर हमला बोलने का। यह हर बार होता है। सत्ता और प्रतिपक्ष अपनी-अपनी राजनीति को मानो रणनीति के अनुसार खेलते हों। उबेर टैक्सी रेप केस की बात करें, तो आप कार्यकर्ताओं ने गृहमंत्री के निवास का घेराव किया। फिर तो देखते-ही-देखते विरोध-प्रदर्शन करने वाली पार्टियों का तांता लग गया। पहले आम आदमी पार्टी, फिर कांग्रेस की छात्र इकाई एनएसयूआई। आखिर ऐसे संवेदनशील मुद्दे पर सियासी ड्रामा कब तक चलता रहेगा? दिल्ली में हर रोज छह रेप केस दर्ज होते हैं। बलात्कार की घटनाएं साल-दर-साल बढ़ती जा रही हैं। विरोध-प्रदर्शन के लिए तो सभी पार्टियां तैयार हो जाती हैं, पर अपनी सोच को बदलने की कोशिश कोई नहीं करता।
कृतिका शर्मा, वैशाली, गाजियाबाद

 

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