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चीन की गुस्ताखी

चीन आज भी अपनी आदत बदल नहीं पाया। सच कहें,  तो वह बदलना भी नहीं चाहता। 1962 में जिस तरह से धोखा देकर चीन ने भारत की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई थी,  उसे हम आज तक नहीं भूले। लेकिन वह अब भी अपनी...

चीन की गुस्ताखी
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 24 Nov 2014 07:54 PM
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चीन आज भी अपनी आदत बदल नहीं पाया। सच कहें,  तो वह बदलना भी नहीं चाहता। 1962 में जिस तरह से धोखा देकर चीन ने भारत की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचाई थी,  उसे हम आज तक नहीं भूले। लेकिन वह अब भी अपनी दादागिरी से बाज नहीं आ रहा। जब उसके राष्ट्रपति-प्रधानमंत्री भारत की यात्रा पर आते हैं या जब भारतीय नेता चीन की यात्रा पर जाते हैं,  तो उसकी सेना कोई न कोई बखेड़ा खड़ा कर देती है। यह सही है कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से चीन बहुत अधिक बौखलाया हुआ है। कारण है,  मोदी की सक्रियता और दृढ़ता। हमें यह जानकर अचरज होता है कि चीनी सेना हमारे क्षेत्र में पांच से बीस किलोमीटर अंदर तक आ जाती है,  तब भारतीय सेना को पता चलता है कि चीनी सेना घुसपैठ कर गई। ऐसा क्यों?  आखिर इस मामले में कहीं कोई तो कमी हो रही है?
इंद्र सिंह धिगान,  रेडियो कॉलोनी,  किंग्जवे कैंप-09

धूम्रपान का विरोध

सरकार लाखों-करोड़ों रुपये खर्च करके तंबाकू,  गुटका,  पान मसाला के सेवन से होने वाली बीमारियों के बारे में टीवी और समाचार-पत्र के जरिये चेताती है,  लेकिन उसका आम जनता पर बिल्कुल प्रभाव नहीं पड़ता है। इसका मुख्य कारण है गुटका,  पान-मसाला आदि के उत्पादक उससे कहीं अधिक राशि खर्च करके मनमोहक विज्ञापन प्रस्तुत कर देते हैं। इन रंग-बिरंगे विज्ञापनों के प्रसारण से सरकार की मुहिम बेकार हो जाती है। सरकार को ये विज्ञापन कम से कम टीवी पर पूर्णतया बंद कर देने चाहिए और इनसे होने वाली बीमारियों के बारे में अधिक से अधिक बताया जाना चाहिए। जिन टीवी चैनलों पर भक्ति के कार्यक्रम आते हैं,  वहां साधु-महंतों तथा धार्मिक विद्वानों द्वारा तंबाकू,  पान मसाला,  गुटका आदि के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्परिणामों का प्रचार किया जाना चाहिए। महिलाएं अपने पति को इन चीजों की लत छोड़ने के लिए मजबूर करें। बच्चों का भी सहयोग प्राप्त करना चाहिए। सत्यमेव जयते आदि जैसे जनहित के कार्यक्रमों का सहारा लेना सही होगा। इनकी रोकथाम संबंधी विज्ञापन बिल्कुल साफ और बड़े अक्षरों में होने चाहिए।
ब्रज मोहन,  पश्चिम विहार,  नई दिल्ली-63

पास-फेल के नियम

पिछले दिनों छपी खबर ‘हट सकता है आठवीं तक फेल न करने का नियम’  पढ़कर अच्छा लगा। जब किसी बच्चे की बुद्धि का मूल्यांकन सही नहीं होगा,  तो तेज बुद्धि वाले और मंद बुद्धि वाले,  दोनों बच्चे समान आधार पर पास होते जाएंगे। यही कारण है कि पढ़ने-लिखने वाले बच्चे भी पढ़ाई के प्रति उदासीन होने लगे हैं। पूरे दिन खेलना, गली-मोहल्लों में हो-हल्ला मचाना इनकी दिनचर्या होने लगी है। पढ़ाई के बाद परीक्षा से बच्चों का सही मूल्यांकन होता है,  इसलिए फेल और पास आवश्यक हैं। अगर ऐसा नहीं होगा,  तो बुद्धि का क्या मूल्य रह जाएगा? सरकार ने जब से यह नियम बनाया है,  तभी से इसमें कई तरह के दोष दिखाई दे रहे थे। सरकारी स्कूलों की बिगड़ती दशा को हम सब जानते हैं,  न वहां कोई शिष्टाचार है और न ही किसी तरह की प्रतिस्पर्धा। फेल न करने का नियम यदि हटता है,  तो अभिभावकों को खुशी होगी और बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित होगा।
ज्ञान वर्मा,  प्रताप विहार,  दिल्ली

अंगदान महादान

मैंने टीवी पर एक कार्यक्रम में देखा कि दुनिया के देशों में भारत अंगदान जैसे नेक कार्य में बहुत पीछे है। यह तो हमने बहुत सुना है कि अंगदान महादान है,  बहुत ही नेक कार्य है। लेकिन कोई नहीं बताता कि यह नेक कार्य होगा कैसे?  इसके लिए दान करने वाले इच्छुक व्यक्तियों को क्या करना चाहिए?  इस कार्य की सारी प्रक्रिया को टीवी कार्यक्रमों और समाचार-पत्रों के बड़े-बड़े विज्ञापनों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाना चाहिए,  ताकि लोग इसके बारे में जागरूक हो सकें। अंगदान से हम कई लोगों को नई जिंदगी दे सकते हैं। मेरी सलाह है कि प्रधानमंत्री जन-धन योजना की तरह ही ऐसी योजना शुरू की जाए।
कौशल कुमार दुबे,  गाजियाबाद

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