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बेतुका बयान

भाजपा नेता ने जिस ढंग से सोनिया गांधी पर नस्लभेदी टिप्पणी की,  वह अशोभनीय है। इस आपत्तिजनक टिप्पणी से एक महिला की साख पर हमला होता है और साथ में उसके मानवाधिकारों का भी हनन होता है। ऐसे बयान...

बेतुका बयान
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 02 Apr 2015 08:46 PM
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भाजपा नेता ने जिस ढंग से सोनिया गांधी पर नस्लभेदी टिप्पणी की,  वह अशोभनीय है। इस आपत्तिजनक टिप्पणी से एक महिला की साख पर हमला होता है और साथ में उसके मानवाधिकारों का भी हनन होता है। ऐसे बयान नेताओं की नासमझी और राजनीति में उनके कद को प्रदर्शित करते हैं। जहां एक ओर, नरेंद्र मोदी संसद को प्रजातंत्र का मंदिर मानकर उसका सम्मान बढ़ाते हैं,  वहीं उन्हीं के नेता बेतुके बोल से संसद को शर्मसार कर रहे हैं। सोनिया गांधी इस भूमि से भारतीय संस्कृति के अनुरूप कई दशकों से जुड़ चुकी हैं। ऐसे में, वह विदेशी न होकर भारतीय नारी की पहचान हैं। इसके बावजूद उन जैसी ताकतवर महिला पर आपत्तिजनक टिप्पणी निंदनीय है। इससे हमारे नेताओं की मानसिकता का पता चलता है कि वे किस तरह की सोच रखते हैं। ऐसी सोच के लिए देश के लोकतंत्र में कतई जगह नहीं है।            
पंकज भारत, भोला,  मेरठ

विरोध का असर

उम्मीद से बहुत ज्यादा सीटें आने से आम आदमी पार्टी के नेताओं को घमंड होना स्वाभाविक था। इसलिए इनके दिमाग आसमान पर चढ़ गए हैं। मगर पार्टी के भीतर उठे विरोध के स्वर ने इनकी अक्ल जरूर ठिकाने लगा दी है, जिससे सही रास्ते पर आकर एक सप्ताह से हड़ताल पर गए नगर निगम के सफाई कर्मचारियों को वेतन देने का सरकार ने तुरंत ऐलान कर दिया, जो कि एक अच्छी पहल है। यह सही है कि बिना दबाव के रस नहीं निकलता और बगैर सही विपक्ष के लोग और दल तानाशाह होने लगते हैं। इसलिए ही तो सशक्त विपक्ष बहुत जरूरी होता है। आशा है कि केंद्र में मोदी सरकार और दिल्ली में केजरीवाल सरकार अब बेकार की ड्रामेबाजी न करके जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरने की कोशिश करेगी। इसी में उनकी व जनता की भलाई है।
वेद मामूरपुर, नरेला,  दिल्ली 

कूड़े पर राजनीति

हमारी राजनीतिक गंदगी की वजह से जिस तरह पिछले दिनों दिल्ली नगर निगम के चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी तीन महीने से वेतन न मिलने के कारण दिल्ली सरकार के खिलाफ हड़ताल पर गए और दिल्ली जिस तरह से कूड़ेदान बन गई और भाजपा व आम आदमी पार्टी के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला, उसकी जितनी निंदा की जाए, वह कम ही है। दिल्ली नगर निगम पार्षद और दिल्ली सरकार के विधायक, दोनों ही जनता के प्रतिनिधि हैं। इस गड़बड़ी के लिए निगम व सरकार, दोनों बराबर जिम्मेदार हैं। जो व्यक्ति काम करता है, उसे उसका मेहनताना जरूर मिलना चाहिए। निगम अपने में संपूर्ण नहीं है। वह दिल्ली सरकार से खर्च का पैसा लेता है। दिल्ली सरकार इसे देने को राजी नहीं थी और कह रही थी कि केंद्र सरकार से मांगो या इस्तीफा दे दो। क्या दिल्ली सरकार का यह रवैया जायज था? आरोप तो चलते रहते हैं, पर जनता को परेशान नहीं किया जाना चाहिए। वैसे भी, दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी बड़ी है, क्योंकि उसे जनता ने भाजपा को खारिज करके चुना है। 
मनीष पाण्डेय, दिलशाद गार्डन,  दिल्ली

क्या खोया,  क्या पाया

पिछली यूपीए सरकार के कुशासन और महंगाई के कारण जनता ने केंद्र में सत्ता-परिवर्तन करके नरेंद्र मोदी के हाथ में देश की बागडोर सौंपी। लेकिन इस सरकार को बने करीब दस महीने हो चुके हैं और नई सरकार अभी यह तय नहीं कर पाई है कि सुशासन की शुरुआत कहां से होनी है और महंगाई कैसे कम होगी? थोक सूचकांक पर महंगाई दर घटाने को ही मोदी सरकार महंगाई घटने का दावा कर रही है, जबकि हकीकत में आम जनता का खुदरा दुकानदारों से पाला पड़ता है। जिस प्रकार उत्तर प्रदेश में दिनोंदिन बढ़ती अराजकता,  घूसखोरी और लूट-खसोट को वहां के मुख्यमंत्री विकास कह रहे हैं, वैसे ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी व्यापक प्रशासनिक अनियंत्रण और बढ़ती महंगाई को विकास कह रहे हैं।
रचना दुबलिश, मेरठ, उत्तर प्रदेश

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