नींद क्यूं रात भर नहीं आती
शिवरात्रि अपने देश का एक ऐसा त्योहार है, जब कई दिनों से भूखे-प्यासे भी उपवास रखते हैं। भंग भवानी का जयकारा इसी दिन लगता है। इस बार तो असली कुंडी ग्यारह मार्च को ही खुलेगी। होली बस उनकी होगी, जो...
शिवरात्रि अपने देश का एक ऐसा त्योहार है, जब कई दिनों से भूखे-प्यासे भी उपवास रखते हैं। भंग भवानी का जयकारा इसी दिन लगता है। इस बार तो असली कुंडी ग्यारह मार्च को ही खुलेगी। होली बस उनकी होगी, जो जीतेंगे। बाकियों के चेहरे तो राख से पुते होंगे। कल तक भांग घोटते हाथ तब तक खुमारी में होंगे। हमारे बाबूजी यानी अमृतलाल नागर कहा करते थे कि भंग तब तक जमा-जमाकर पीसते रहो, जब तक सिलबट्टे को पसीना न आ जाए।
अब तो हाल यह है कि मतपेटी में भाग्य बंद है, मंदिर में भगवान। मैंने पूछा- नेताजी, आपको नींद क्यूं नहीं आ रही? वह बोले- क्या करें भाई, ग्यारह मार्च सामने है। इस बार सुखद संजोग यह रहा कि होली की भंड़ैती चुनाव-प्रचार में ही नेताओं के भद्दे बयानों में झलक गई। एक मरियल गधा अपने को जंगली हाथी समझकर टहल रहा था। कुछ लोग भौंक रहे थे। गधा सोच रहा था। छोड़ो यार। ये भौंकने वाले भी अपना फर्ज निभा रहे हैं।
गजब की बात तो यह है कि तत्कालीन शिवजी के गले का जहर अब चुनाव भक्तों की जुबान पर उतर आया है। सांप-संपोले तो अब भी कहीं न कहीं बैठे मौके का इंतजार कर रहे हैं। मतगणना के दिन मतपेटियों से निकलेंगे। किसी के हाथ से दूध पिएंगे, किसी को काट लेंगे, तो किसी की कलाई में जा छिपेंगे। अभी तक भांग से भरे सिलबट्टों का दंगल जमा हुआ है। होली नजदीक है। मुहल्लों के छिछोरे गोबर, कीचड़ समेट रहे हैं। वहां पर अभी से टोपियां उछालने का अभ्यास चल रहा है।
कल एक चौपाल में देखा, तो वहां एडवांस में होली मनाई जा रही थी। भंग से लेकर रंग तक सब मौजूद थे। मैंने कहा- अभी तो दूर है होली, अभी से? गटक ली भांग की गोली अभी से? किया खर्चा सभी टोटल अभी से? पकड़ ली अपनी प्रिय बोतल अभी से? अबे लंपट, अबे लीचड़ अभी से? जमा सब कर लिया कीचड़ अभी से? नौटंकिए जोकर अभी से? अकल में भर लिया गोबर अभी से?
उर्मिल कुमार थपलियाल