औषधि का काम करती है दूर्वा
श्रीगणेश को दूर्वा (दूब) इतनी प्रिय क्यों है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। पृथ्वी पर अनलासुर राक्षस के उत्पात से त्रस्त ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की। तब इंद्र और अनलासुर में भयंकर...
श्रीगणेश को दूर्वा (दूब) इतनी प्रिय क्यों है, इसके पीछे एक पौराणिक कथा है। पृथ्वी पर अनलासुर राक्षस के उत्पात से त्रस्त ऋषि-मुनियों ने इंद्र से रक्षा की प्रार्थना की। तब इंद्र और अनलासुर में भयंकर युद्ध हुआ, लेकिन इंद्र भी उसे परास्त न कर सके। तब सभी देवतागण एकत्रित होकर भगवान शिव के पास गए व अनलासुर का वध करने का अनुरोध किया। तब शिव ने कहा, इसका नाश सिर्फ श्रीगणेश ही कर सकते हैं। तब सभी देवताओं ने भगवान गणेश की स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने अनलासुर को निगल लिया। अनलासुर को निगलने के कारण गणेशजी के पेट में जलन होने लगी, तब ऋषि कश्यप ने 21 दूर्वा की गांठ उन्हें खिलाई, तब उनके पेट की ज्वाला शांत हुई। इसी मान्यता के चलते श्रीगणेश को दूर्वा अर्पित की जाती है। गणेश जी को प्रिय दूर्वा के चढ़ाने की पूजा शीघ्र फलदायी और सरलतम है।
गणेश मंत्रों में स्वास्थ्य का खजाना
दूर्वा का विश्लेषण करते हुए गणेश पुराण में वर्णित है- ‘दुर्वाकुरान, सुहरितान, मंगल प्रदान’ अर्थात दूर्वा एक औषधि है। अनलासुर की कथा द्वारा हमें यह संदेश प्राप्त होता है कि पेट की जलन तथा पेट के रोगों के लिए दूर्वा औषधि का कार्य करती है। मानसिक शांति के लिए यह बहुत लाभप्रद है। यह विभिन्न बीमारियों में एंटिबायोटिक का काम करती है, उसे देखने और छूने से मानसिक शांति मिलती है और जलन शांत होती है। वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि कैंसर रोगियों के लिए भी यह लाभप्रद है। एक और ध्यान मंत्र में कहा गया है- ‘गजाननम भूत गणादि सेवितम्। कपित्थ जम्बु फलचारु भक्षणम्।’अर्थात अति मिष्ठान्न के सेवन के बाद कबीट और जामुन का सेवन करने से शक्कर की बीमारी अर्थात डायबिटीज नहीं होती।