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उर्दू मीडिया : इस्लामी बैंक को लेकर छिड़ी बहस

केरल हाईकोर्ट ने भले ही इस्लामी बैंक पर रोक लगाने का फरमान जारी कर दिया हो। इस मुद्दे पर उर्दू मीडिया जोरदार बहस में उलझा है। संपादकीय और लेख छापे जा रहे हैं। बताया जा रहा है मुल्क के लिए इस्लामी...

उर्दू मीडिया : इस्लामी बैंक को लेकर छिड़ी बहस
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 31 Jan 2010 10:03 PM
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केरल हाईकोर्ट ने भले ही इस्लामी बैंक पर रोक लगाने का फरमान जारी कर दिया हो। इस मुद्दे पर उर्दू मीडिया जोरदार बहस में उलझा है। संपादकीय और लेख छापे जा रहे हैं। बताया जा रहा है मुल्क के लिए इस्लामी बैंक क्यों जरूरी हैं। इससे होने वाले फायदे कौन-कौन से हैं? इंडो-अरब इकोनॉमिक को-ऑपरेटिव फोरम और इंस्टीट्यूट ऑफ ऑबजेक्टिव स्टडीज की संयुक्त पहल पर फरवरी की तीन और चार तारीख को 21 वीं सदी में हिन्दुस्तान- अरब पूंजीनिवेश के लिए सुरक्षित स्थान विषयक सेमिनार के बहाने उर्दू अखबार देश में इस्लामी बैंकों की स्थापना के लिए जोरदार दलीलें पेश कर रहे हैं।

अखबारों में राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के. रहमान खान के उस बयान को खासी तरजीह मिली जिसमें उन्होंने इस्लामी बैंक को देशहित में बताया है। दैनिक ‘राष्ट्रीय सहारा’ लिखता है-हिन्दुस्तान में इस्लामी बैंक की स्थापना की इजाजत मिलनी चाहिए। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह भी इसके पक्षधर हैं। हालांकि इसके विरोधी इसे देशहित में नहीं मानते। उन्हें लगता है इस बहाने हिन्दुस्तान में शरियत विस्तार को एक और बहाना मिल जाएगा। विदेशी पैसे की आड़ में आतंकी भी इनके माध्यम से लेन-देन आसानी से कर सकेंगे। हाल में केरल हाईकोर्ट का इस्लामी बैंक के खिलाफ फैसला आया तो इसके विरोधियों ने इसका जबर्दस्त स्वागत किया।

‘हमारा समाज’ कोर्ट के इस फैसले को अलग नजरिए से देखता है। उसे लगता है केरल उच्च न्यायालय ने यह फैसला देकर इस्लामी बैंक की स्थापना को लेकर देशव्यापी बहस छेड़े जाने का रास्ता खोल दिया है। सूदरहित होने के चलते ऐसे बैंकों का यूरोपीय देशों में क्रेज बढ़ रहा है। सूदखोरी से परहेज करने और अपने पैसे को जुआ-सट्टा जैसे कारोबार से दूर रखने के ख्वाहिशमंदों का इसके प्रति रुझान तेजी से बढ़ा है। एक अखबार कहता है सिर्फ इस्लाम ही क्यों- हिंदू, ईसाई, सिख जैसे मजहबों में भी सूदखोरी की मनाही है। उनके मानने वाले भी सट्टा-जुआ से परहेज करते हैं। इस्लाम में इसे लेकर सख्ती थोड़ा ज्यादा है। इसलिए मुसलमानों की बड़ी संख्या बीमा पॉलिसियों, कार लोन, व्यावसायिक लोन और क्रेडिट कार्ड जैसी सुविधाओं से दूर है।

एक अखबार कहता है केरल के कई बैंकों में इसलिए करोड़ों रुपये लावारिस पड़े हैं, क्योंकि पैसा रखने वाले मुसलमानों ने इंटरेस्ट के पैसे अपने एकाउंट से नहीं निकाले। हैदराबाद से प्रकाशित ‘ऐतमाद’ कहता है-अरब मुल्कों के 35 खरब के पूंजीनिवेश को प्रभावित करने के लिए मुल्क में इस्लामी बैंक का होना निहायत जरूरी है। इसकी हिमायत पटना का कौमी तन्जीम भी करता है। इसे बढ़ावा देने को एचडीएफ लंदन के राजदूत मुफ्ती बरकतुल्लाह कासिम हाल में भारत का दौरा कर गए हैं। इस बैंक ने सूद फ्री पैसे की लेने-देन के लिए अलग से व्यवस्था कर रखी है।

अफजल मिसबाही ने अपने लेख ‘इस्लामी बैंककारी और हमारी जिम्मेदारियां’ में दुनियाभर के इस्लामी बैंकों की स्थिति का बड़े अच्छे ढंग से खुलासा किया है। इस तरह के बैंकों को लेकर हिन्दुस्तान ही नहीं, फ्रांस, इटली, जर्मनी सहित कई मुल्कों में भी बहस छिड़ी हुई है। अभी जद्दा से जकारता तक 50 मुल्कों में 280 सूद फ्री बैंक चल रहे हैं। डेनमार्क, ब्रिटेन, लक्जमबर्ग, स्विट्जरलैंड उनमें एक है। ताजा स्थिति है लंदन का दक्षिणी हिस्सा इस्लामी बैंकों के केंद्र के रूप में विकसित हो चुका है। इस इलाके में बैंकों की संख्या पांच तक पहुंच गई है। 

ब्रिटेन में कुल शरई बैंकों की तादाद बाईस है और लंदन स्टॉक एक्सचेंज में इस्लामी बैंकों की हिस्सेदारी दस लाख अरब डॉलर तक आ गई है। जो दुबई के बाद दूसरे नंबर पर है। 1975 में दुबई में पहली इस्लामिक डेवलपमेंट बैंक की बुनियाद रखी गई थी। 1977 में मिस्र और सूडान में फैसल इस्लामिक बैंक के नाम से पहली बार दो प्राइवेट बैंक खोले गए थे। 2007 तक दुनियाभर में इस्लामी बैंकों का कारोबार 37 प्रतिशत की दर से बढ़कर 729 अरब डॉलर तक पहुंच गया है।

अनुमान है 2008 की मंदी के बावजूद 2010 तक इसके कारोबार में 33 फीसदी तक का इजाफा होगा। अखबार कहते हैं पूरी बैंकिंग प्रणाली सूद- ब्याज पर टिकी है। इस कारण मंदी के दिनों में दुनियाभर के बैंक बुरी तरह डगमगा गए थे। कई बैंकों का दिवाला निकल गया था। मगर इस्लामी बैंकों के कारोबार पर खास असर नहीं पड़ा। ऐसे बैंक होल-सोल फंड पर टिके होते हैं। इसलिए क्रेडिट संकट इन पर हावी नहीं हो पाते। बेहतर भविष्य देखते हुए अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ने इस्लामिक फाइनांस की पढ़ाई भी शुरू कर दी है। ऐसे कोर्सेज हैदराबाद के कई संस्थान भी चला रहे हैं।

लेखक हिन्दुस्तान से जुड़े हैं

malik_hashmi64@yahoo.com

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