नन्हे सपनों को नोबेल
भारत-पाक दोनों ओर जब सरहदें सुलग रही हों, हाफिज सईद आग उगल रहा हो, ऐसे में शांति के लिए भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला को नोबेल मिलना दोनों देशों के हुक्मरानों को संदेश दे गया।...
भारत-पाक दोनों ओर जब सरहदें सुलग रही हों, हाफिज सईद आग उगल रहा हो, ऐसे में शांति के लिए भारत के कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला को नोबेल मिलना दोनों देशों के हुक्मरानों को संदेश दे गया। ओस्लो में बुधवार को नोबेल से नवाजे जाने के बाद दोनों शांतिदूतों ने अमन की बात की और बच्चों के सपनों को उड़ान देने की अपील की।
बच्चों को कक्षाओं तक लाएं: नॉर्वे की नोबेल समिति के प्रमुख थोर्बजोर्न जगलांद ने सत्यार्थी और मलाला को सम्मानित किया। पुरस्कार ग्रहण करने के बाद सत्यार्थी ने कहा कि जब एक सप्ताह का वैश्विक सैन्य खर्च ही सभी बच्चों को कक्षाओं तक लाने के लिए पर्याप्त है तो मैं यह स्वीकार करने से इंकार करता हूं कि यह विश्व बहुत गरीब है। उन्होंने कहा, मैं यह भी मानने से इंकार करता हूं कि गुलामी की जंजीरे कभी भी आजादी की ललक से मजबूत हो सकती हैं।
सत्यार्थी ने कहा कि सभी धर्म हमें बच्चों की देखभाल की शिक्षा देते हैं। 60 वर्षीय कैलाश सत्यार्थी ने इक्लेट्रिकल इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर बाल अधिकार के क्षेत्र में काम करना आरंभ किया और वह बचपन बचाओ आंदोलन नामक गैर सरकारी संगठन का संचालन करते हैं।
साथ चल सकते हैं भारत-पाक: सत्यार्थी के साथ नोबेल पाने वाली मलाला युसुफजई ने कहा, मैं कैलाश सत्यार्थी के साथ इस पुरस्कार को हासिल करके सम्मानित महसूस कर रही हूं जो लंबे वक्त से बाल अधिकारों के मसीहा रहे हैं। मैं इसको लेकर खुश हूं कि हम खड़े होकर दुनिया को दिखा सकते हैं कि भारतीय और पाकिस्तानी अमन में एकजुट हो सकते हैं और बाल अधिकारों के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।
राशि बच्चों को समर्पित: युसुफजई ने नोबेल पुरस्कार राशि को मलाला कोष को समर्पित कर दिया ताकि बच्चियों की शिक्षा में मदद मिल सके। मलाला ने कहा, सबसे पहले यह पैसा उस जगह जाएगा जहां मेरा दिल है। पाकिस्तान में स्कूल का निर्माण कराने के लिए, खासकर मेरे गृहनगर स्वात और शांगला में जाएगा।
मेरा एकमात्र सपना है कि हर कोई अपना बचपन जीने के लिए आजाद हो। हंसने, रोने और खेलने के लिए स्वतंत्र हो। सीखने, स्कूल जाने और अपने सपने बुनने के लिए आजाद हो।
- कैलाश सत्यार्थी
यह सम्मान मेरे लिए नहीं है। यह उन भुला दिए गए बच्चों के लिए है जो पढ़ना चाहते हैं। उन भयभीत बच्चों के लिए है जो शांति चाहते हैं। मैं यहां उनकी आवाज उठाने खड़ी हुई हूं।
- मलाला युसुफजई