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निठारी कांड: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोली की मौत की सजा उम्रकैद में बदली

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा के चर्चित निठारी कांड में सजायाफ्ता सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया है। राष्ट्रपति के यहां से दया याचिका खारिज होने के बाद आए ऐतिहासिक...

निठारी कांड: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोली की मौत की सजा उम्रकैद में बदली
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 29 Jan 2015 01:12 AM
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नोएडा के चर्चित निठारी कांड में सजायाफ्ता सुरेंद्र कोली की फांसी की सजा को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया है। राष्ट्रपति के यहां से दया याचिका खारिज होने के बाद आए ऐतिहासिक फैसले में हाईकोर्ट ने सुरेंद्र कोली की फांसी के अमल की प्रक्रिया को असंवैधानिक करार दिया है। दो जजों की खंडपीठ ने कहा कि सुरेंद्र कोली की दया याचिकाओं के निस्तारण में अनावश्यक विलंब किया है और इस देरी का कोई उचित कारण सामने नहीं लाया गया।

मुख्य न्यायमूर्ति डॉ. धनंजय यशवंत चंद्रचूड एवं न्यायमूर्ति प्रदीप कुमार सिंह बघेल की खंडपीठ ने रिम्पा हलधर मर्डरकेस में मिली फांसी को आजीवन कारावास में तब्दील करने की मांग में दाखिल पीपुल्स यूनियन फार डेमीक्रेकिट राइट्स व सुरेंद्र कोली की याचिकाओं का स्वीकार करते हुए कहा कि सुरेंद्र कोली की ओर से दया याचिका प्रस्तुत करने में कोई देरी नहीं की गई। दया याचिका के निस्तारण में देरी राज्य सरकार के स्तर पर की गई। राज्य सरकार ने अपने यहां से राष्ट्रपति के यहां तक फाइल पहुंचाने में 26 माह लगा दिए। और तो और सरकार इसका कोई उचित व स्पष्ट कारण भी नहीं बता सकी।

खंडपीठ ने कहा कि सुरेंद्र कोली को बगैर किसी अदालती आदेश के गाजियाबाद की डासना जेल के अंदर तनहाई में रखा गया। इस बारे में कोर्ट को भ्रमित भी किया गया। इसके लिए जो तर्क दिए गए वे वास्तविक तथ्यों के विपरीत निकले। इसके अलावा एडिशनल सेशन जज गाजियाबाद की अदालत से सुरेंद्र कोली के जो तीन डेथ वारंट जारी हुए, वे सीआरपीसी के प्रावधान के मुताबिक नहीं थे। पहला डेथ वारंट तीन मई 2011 को जारी हुआ, जिसमें 24 मई से 31 मई 2011 के बीच सुबह चार बजे फांसी देने की बात कही गई। जबकि सीआरपीसी की धारा 413 के तहत डेथ वारंट में फांसी का एक समय व तारीख तय होना चाहिए। दूसरी बार दो सितम्बर 2014 को जारी वारंट में भी हफ्तेभर का समय दिया गया जबकि तीन सितम्बर 2014 को जारी तीसरे वारंट में मॉडीफिकेशन करके फांसी की जगह डासना की जगह मेरठ जिला जेल कर दी गई। दया याचिका पर संस्तुति के संबंध में गृह सचिव ने पहले यह कहा कि उन्हें क्षेत्राधिकार नहीं है यह विधि सचिव को है और फिर संस्तुति भी कर दी।

सुरेंद्र कोली को रिम्पा हलधर मर्डरकेस में गाजियाबाद की सेशव कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई थी। यह सजा हाईकोर्ट से कन्फर्म हो गई थी और इसके विरुद्ध कोली की अपील सुप्रीम कोर्ट से भी खारिज हो चुकी थी। फिर राज्यपाल व राष्ट्रपति के यहां से दया याचिका खारिज होने के बाद दाखिल पीआईएल पर प्रारंभिक सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने गत 31 अक्तूबर को सुरेंद्र कोली की फांसी के अमल पर रोक लगा दी थी।

ये बने मृत्युदंड को पलटने के आधार
- दया याचिकाओं के निस्तारण में लगे कुल तीन साल व तीन माह। राज्य सरकार को राष्ट्रपति के यहां तक फाइल पहुंचाने में लगे 26 माह और इस अनावश्क विलंब का कोई उचित कारण नहीं बता सकी सरकार।
- संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत बंदी के जीवन जीने के संवैधानिक अधिकार का हनन हुआ।
- बगैर किसी अदालती आदेश के सुरेंद्र कोली को तनहाई में रखा गया। इस मामले में प्रस्तुत तर्क तथ्यों के विपरीत पाए गए।
- कोली की फांसी के लिए सेशन कोर्ट से तीन बार जारी डेथ वारंट सीआरपीसी के प्रावधानों के मुताबिक नहीं पाए गए।
- राज्य सरकार के अधिकारियों ने इस मामले में गैर जिम्मेदाराना व मनमाने तरीके से की कार्रवाई। 

पांच घंटे से ज्यादा लगे फैसले में
इलाहाबाद। चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड एवं पीकेएस बघेल की खंडपीठ को यह ऐतिहासिक फैसला लिखाने में पांच घंटे से ज्यादा का समय लगा। खंडपीठ ने लंबी सुनवाई के बाद मंगलवार को अपराह्न साढ़े तीन बजे फैसला लिखाना शुरू किया था। खंडपीठ ने कल शाम 4:06 बजे तक फैसला लिखाया। खंडपीठ ने आज सुबह 10 बजे से दोपहर 1:06 बजे तक और फिर दोपहर दो बजे से 3:35 बजे तक लगातार फैसला लिखाया।

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