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खतरे के आकलन के लिए धरती का होगा 'सीटी स्कैन'

भूकंप की भविष्यवाणी नहीं हो सकती, लेकिन इसके खतरे के आकलन के लिए केंद्र सरकार ने एक योजना पर कार्य कर रही है। इसके तहत सरकार धरती का एक मॉडल तैयार करेगी, जिसमें जमीन की संरचना का पूरा ब्योरा होगा।...

खतरे के आकलन के लिए धरती का होगा 'सीटी स्कैन'
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 27 Apr 2015 11:51 AM
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भूकंप की भविष्यवाणी नहीं हो सकती, लेकिन इसके खतरे के आकलन के लिए केंद्र सरकार ने एक योजना पर कार्य कर रही है। इसके तहत सरकार धरती का एक मॉडल तैयार करेगी, जिसमें जमीन की संरचना का पूरा ब्योरा होगा। इसके आधार पर जाना जा सकेगा कि किस स्थान पर भूकंप का खतरा है और कितना है। या कौन सा स्थान भूकंप के लिहाज से सुरक्षित है।

अर्थ साइंस महकमे के सचिव डॉक्टर शैलेश नायक ने हिन्दुस्तान से विशेष बातचीत में कहा कि मूलत: इस योजना का मकसद धरती का सीटी स्कैन करना है। यानी उसके भीतर की संरचना कैसी है। दरअसल हमारे देश की जमीन के नीचे की संरचना को लेकर अभी तक जो वैज्ञानिक जानकारियां हैं, वे सामान्य किस्म की हैं। जिसके आधार पर क्षेत्रों को भूकंप जोन में बाटा गया है। लेकिन वह संरचना कैसी है और भूकंप उसे कैसे प्रभावित कर सकता है, इस पर शोध कम हुए हैं।

इसलिए मंत्रालय ने इस योजना को लेकर उच्च स्तरीय विमर्श प्रक्रिया शुरू कर दी है। दरअसल, धरती टेक्टोनिक प्लेटों पर बसी है। इसके ऊपर चट्टानों एवं मिट्टी की कई परतें हैं। इन परतों के व्यापक अध्ययन के जरिये यह आकलन किया जा सकता है कि कौन सा क्षेत्र भूकंप के हिसाब से खतरनाक है।

कोयना में विदेशी वैज्ञानिकों की मदद लेंगे
नायक के अनुसार मप्र के कोयना प्रोजेक्ट पर अक्तूबर में अहम कार्य शुरू होगा। अक्तूबर में तीन किलोमीटर के करीब बोरिंग की जाएगी और वहां उपकरण स्थापित किए जाएंगे। अभी तक वहां डेढ़ किलोमीटर के दस बोर किए जा चुके हैं जिनमें उपकरण लगाए जा रहे हैं। सबसे अहम बोर तीन किलोमीटर गहरा होना है जिसमें ऐसे सेंसर लगाए जाएंगे जो भूकंप से पहले, दौरान और बाद में होने वाली हलचलों को रिकॉर्ड कर सकें।

इनका अध्ययन कर वैज्ञानिक भूकंप के बारे में अध्ययन करेंगे। बोरिंग के दौरान वहां की चट्टानों से निकले टुकड़ों का भी अध्ययन करने की योजना है। कोयना में नियमित रूप से भूकंप आते हैं जिनकी तीव्रता पांच से कम होती है। इसलिए कोई नुकसान नहीं है। इन झटकों का केंद्र कोयना होता था बीस किमी दायरे में इन्हें महसूस किया जाता है।

 

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