अध्यादेश का रास्ता लोगों का भरोसा तोड़ता है: राष्ट्रपति
अध्यादेश का मार्ग अपनाने को लेकर सरकार को आगाह करने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज साफ लहजों में कहा कि बिना चर्चा के कानून बनाने से जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है और यह लोकतंत्र के लिए...
अध्यादेश का मार्ग अपनाने को लेकर सरकार को आगाह करने के बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने आज साफ लहजों में कहा कि बिना चर्चा के कानून बनाने से जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है और यह लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने 66वें गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संदेश में विधायिका के महत्व की चर्चा की और कहा कि तीन दशकों के बाद जनता ने स्थायी सरकार के लिए, एक अकेले दल को सत्ता में लाने के लिए मतदान किया है।
उन्होंने कहा कि मतदाता ने अपना कार्य पूरा कर दिया है। अब यह निर्वाचित हुए लोगों का दायित्व है कि वे इस भरोसे का सम्मान करें। यह मत एक स्वच्छ, कुशल, कारगर, लैंगिक संवेदनायुक्त, पारदर्शी, जवाबदेह तथा नागरिक अनुकूल शासन के लिए था।
विधायिका की भूमिका की चर्चा करते हुए मुखर्जी ने कहा कि एक सक्रिय विधायिका के बिना शासन संभव नहीं है। विधायिका जनता की इच्छा को प्रतिबंबित करती है। यह ऐसा मंच है जहां शिष्टतापूर्ण संवाद का उपयोग करते हुए, प्रगतिशील कानून के द्वारा जनता की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए सुपुर्दगी—तंत्र :डिलीवरी मैकेनिज्म: का निर्माण किया जाना चाहिए। इसके लिए भागीदारों के बीच मतभेदों को दूर करने तथा बनाए जाने वाले कानूनों पर आम सहमति लाने की जरूरत होती है।
उन्होंने कहा कि बिना चर्चा कानून बनाने से संसद की कानून निर्माण की भूमिका को धक्का पहुंचता है। इससे, जनता द्वारा व्यक्त विश्वास टूटता है। यह न तो लोकतंत्र के लिए अच्छा है और न ही इन कानूनों से संबंधित नीतियों के लिए अच्छा है।
मुखर्जी ने पहले कहा था कि अध्यादेश विशिष्ट उददेश्यों के लिए होते हैं और यह असाधारण परिस्थिति में विशेष स्थिति का सामना करने के लिए है। उनकी यह टिप्पणी मोदी सरकार द्वारा नौ अध्यादेश जारी किए जाने की पृष्ठभूमि में आयी थी। सरकार द्वारा जारी अध्यादेशों में बीमा क्षेत्र में एफडीआई सीमा बढ़ाने और कोयला खदानों की ई़़नीलामी से जुड़े अध्यादेश शामिल थे।