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गुजरात, त्रिपुरा ने की नए भूमि अधिग्रहण कानून की मांग

भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर रही केंद्र सरकार से गुजरात व त्रिपुरा ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के बनाए इस कानून को ही रद्दी की टोकरी में डालने और नया कानून बनाने को कहा...

गुजरात, त्रिपुरा ने की नए भूमि अधिग्रहण कानून की मांग
लाइव हिन्दुस्तान टीमFri, 18 Jul 2014 10:16 PM
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भूमि अधिग्रहण कानून में बदलाव की प्रक्रिया शुरू कर रही केंद्र सरकार से गुजरात व त्रिपुरा ने पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के बनाए इस कानून को ही रद्दी की टोकरी में डालने और नया कानून बनाने को कहा है।

गुजरात की मुख्यमंत्री आनंदी बेन पटेल और त्रिपुरा के वित्त व राजस्व मंत्री बाबुल चौधरी ने केंद्र सरकार से कहा है कि भूमि अधिग्रहण व पुनर्वास विधेयक 2013 में बुनियादी खामियां हैं, इसलिए इसकी जगह दूसरा कानून लाया जाना चाहिए।

पटेल की राय पिछले माह ग्रामीण विकास मंत्री नितिन गडकरी की ओर से बुलाई गई बैठक में गुजरात के प्रतिनिधि ने रखी थी। जबकि त्रिपुरा के वित्त मंत्री ने गडकरी को पत्र लिखकर इस कानून को बदलने का सुझाव दिया है। ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 27 जून को राज्यों के साथ इस मसले पर बैठक की थी। बैठक में मिले सुझवों के आधार पर गडकरी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपनी रिपोर्ट सौंपी है। उन्होंने मौजूदा कानून में 19 संसोधन सुझाए हैं। इस बैठक में कानून के करीब दो दर्जन प्रावधानों पर चर्चा की गई थी।

सरकार में सूत्रों के अनुसार, गुजरात व त्रिपुरा की सिफारिश के बावजूद फिलहाल कानून को रद्दी की टोकरी में डालना संभव नहीं है। लेकिन जिन प्रावधानों पर राज्यों को ज्यादा आपत्ति है उन्हें बदला जाएगा। उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात व महाराष्ट्र जसे बड़े राज्यों सहित ज्यादातर राज्यों की आपत्ति पीपीपी के तहत बनने वाली परियोजनाओं के लिए अधिग्रहण से पहले 70 फीसदी जमीन मालिकों की मंजूरी आवश्यक बनाने को लेकर है।

राज्यों की दूसरी प्रमुख आपत्ति परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण से पड़ने वाले सामाजिक प्रभाव के अध्ययन से संबंधित है। उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों ने इस प्रावधान को ही समाप्त करने की सिफारिश की है।

सूत्रों के अनुसार, कानून में संशोधन को लेकर गडकरी जल्द ही प्रधानमंत्री से मुलाकात करेंगे। गडकरी का इरादा संशोधित कानून को संसद के इसी सत्र में पेश करने का है।

खास सुझाव
जमीन अधिग्रहण के लिए प्रभावित भू स्वामियों में से 80 फीसदी की सहमति के प्रावधान को लचीला कर इसे 50 फीसदी तक रखा जाए।

सामाजिक प्रभाव आंकलन का प्रावधान को समाप्त किया जाए। यह परियोजनाओं में नाहक देरी का सबब बन सकता है।

अधिग्रहण के बाद जमीन का उपयोग न किये जाने पर जमीन भू स्वामी को वापस किये जाने संबंधी प्रावधान को खत्म किया जाए।

जमीन के बदले जमीन संबंधी प्रावधान पर भी पुनर्विचार हो।

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