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हाशिमपुरा:42 कत्ल हुए, 28 साल बाद कोर्ट ने किया सबको बरी

करीब 28 वर्ष पहले मुरादनगर गंगनहर पर गांव अबूपुर के सामने सुबह चार बजे गोलियों की तड़तड़ाहट से लोगों की रूह कांप उठी थी। चश्मदीदों की मानें तो हाशिमपुरा से गाड़ी में भरकर लाए गए युवकों को गोलियों से...

हाशिमपुरा:42 कत्ल हुए, 28 साल बाद कोर्ट ने किया सबको बरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 22 Mar 2015 01:37 PM
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करीब 28 वर्ष पहले मुरादनगर गंगनहर पर गांव अबूपुर के सामने सुबह चार बजे गोलियों की तड़तड़ाहट से लोगों की रूह कांप उठी थी। चश्मदीदों की मानें तो हाशिमपुरा से गाड़ी में भरकर लाए गए युवकों को गोलियों से भूनकर गंगनहर में डाल दिया गया था। इस मामले में शनिवार को तीस हजारी कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए आरोपियों को बरी कर दिया। अब सवाल है कि आखिर इतने लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है।

22 मई 1987 की सुबह गोलियों की आवाज से लोगों की आंख खुली। लोग घटनास्थल पर जाने लगे तो वहां मौजूद पीएसी के जवानों ने उन्हें रोक दिया था। बाद में पता चला कि हाशिमपुरा की धार्मिक सभा से उठाकर लाए गए 50 लोगों में से 42 युवकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद उन्हें गंगनहर में डाल दिया गया था। घटना के बाद भारी पुलिस फोर्स तैनात कर दिया गया था।

क्या हुआ था उस समय

1. पठानान कॉलोनी निवासी 65 वर्षीय एडवोकेट जमशेद खान ने बताया कि 22 मई सन 1987 को वे स्थानीय नेता अहमद हसन के आफिस में बैठे हुए थे। तभी उनके पास फोन आया कि गंगनहर पटरी पर युवकों की पीएसी ने गोली मारकर हत्या कर दी है। इसके बाद वे और अहमद हसन सैकड़ों लोगों के साथ घटनास्थल के लिए निकल पड़े। दो किलोमीटर दूर शहजादपुर मार्ग पर ही पुलिस फोर्स ने लोगों को आगे जाने से रोक दिया था। इसके बाद उन्होंने यह बात पूर्व राष्ट्रपति आर. वेंकट रमन के चिकित्सक रहे हकीम जाकिर हुसैन को बताई। जाकिर हुसैन ने उस समय के तत्कालीन डीएम डॉ. नसीम जैदी को पूरे घटनाक्रम से अवगत कराया। उन्होंने उस समय के बिहार के किशनगंज से सांसद सैय्यद शहाबुद्दीन को भी घटनाक्रम से अवगत कराया था।

2. जीतपुर कॉलोनी निवासी 70 वर्षीय खाऊ पुत्र अल्लामेहर ने बताया कि उस दिन मैं अपने भाई फरीद के साथ बुग्गी-भैंसा लेकर खेत जा रहा था। नेशनल हाईवे पर पुराने बिजलीघर के सामने शौचालय में नग्न हालत में एक युवक छिपा था और हमसे मदद मांग रहा था। जब मैंने वहां जाकर देखा तो उसके पेट में गोली लगी हुई थी। मैं उसे तुरंत रावली रोड पर हकीम जाकिर हुसैन के पास ले गया, उन्होंने उसका इलाज किया। दो दिन बाद होश में आने पर युवक ने अपना नाम नासिर निवासी हाशिमपुरा बताया। युवक ने बताया कि पीएसी के जवान करीब 50 युवकों को गाड़ी में भरकर लाए थे। पूरी रात हम सभी की आंखों पर पट्टी बांधकर किसी जंगल में रखा गया था। सुबह के वक्त गंगनहर पटरी पर लाकर सभी पट्टी खोली गई और फिर एक-एक करके गोली मारनी शुरू कर दी गई। एक दर्जन से अधिक जवान लाइन में खड़ा करके गोली मार रहे थे और दर्जनों सिपाही लाश को नहर में फेंक रहे थे। नासिर ने बताया कि जब मुझे गोली मारकर नहर में फेंका गया था तो मैंने झाड़ी पकड़ ली थी और अंधेरे का फायदा उठाते हुए वहां से भाग आया था।

3. आयुध निर्माणी फैक्ट्री परिसर निवासी 42 वर्षीय प्रमोद शर्मा ने बताया कि सुबह छह बजे हम सभी दोस्त मार्निक वॉक करने आयुध निर्माणी के रास्ते गंगनहर पटरी पर आ गए थे। वहां मैंने देखा कि नहर में एक साथ दर्जनों लाशें बहकर जा रही हैं। हम सभी दोस्त वहां से चले आए और यह बात अपने परिजनों को बताई।

हक्का-बक्का रह गया हाशिमपुरा
शनिवार को हाशिमपुरा बेचैन था। सबको तीस हजारी कोर्ट के फैसले का इंतजार था। फैसला दो बजे सुनाया जाना था। फिर पता लगा यह साढ़े तीन बजे सुनाया जाएगा। यह डेढ़ घंटा 28 साल के इंतजार पर भी भारी था।

फैसला आया तो हाशिमपुरा हक्का बक्का रह गया। उम्मीद थी कि आरोपियों को कड़ी सजा मिलेगी। लेकिन कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपी बरी कर दिए। हाशिमपुरा छोटा सा मोहल्ला है। मुश्किल से चार हजार की आबादी है। बुनकरों की तादाद ज्यादा है। शहर में जरा सा माहौल खराब हो तो यहां के लोगों की रुह कांप जाती है।

28 साल पहले के जख्म ताजा हो जाते हैं। कोर्ट से फैसला आया तो अपने बच्चों की तस्वीरें कलेजे से चिपक गईं। पीड़ित हक्के-बक्के थे। हरेक की जुबां पर एक ही बात थी-कानूनी लड़ाई जारी रखेंगे। हिन्दुस्तान टीम हाशिमपुरा पहुंची तो लोगों ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी। बहुत से नौजवान थे, जिन्होंने इसके बारे में सुना था। हाशिमपुरा के लोगों में गुस्सा था लेकिन आंखों में अभी इंसाफ की लौ बुझी नहीं थी। हां, इस बात से संतोष भी था कि कोर्ट ने पीड़ितों के दर्द को समझा और पुनर्वास के आदेश दिए। 

हर परिवार के पास दर्दभरी दास्तां
1933 में मुफ्ती हाशमी ने इस मोहल्ले को बसाया था जिसे हाशिमपुरा के नाम से जाना जाता है। यहां करीब 650 घर और 34 सौ से अधिक आबादी है। यहां दो रास्ते मुख्य सड़क से जुड़ते हैं। लगभग 80 प्रतिशत से अधिक परिवार बुनकरों के हैं। मोहल्ले के हर परिवार के पास हाशिमपुरा कांड से जुड़ी दर्दभरी दास्ता है। 40-45 साल से अधिक उम्र के अधिकांश लोगों के शरीर पर ऐसे निशान हैं जो हाशिमपुरा कांड का दर्द बयां करते हैं। फरवरी 1986 में देशभर में दंगे शुरू हो गए थे। हाशिमपुरा कांड इस दंगे का सबसे शर्मनाक चेहरा है।

निकाला गया था विरोध मार्च
एडवोकेट जमशेद खान ने बताया कि घटना के चार दिन बाद मैं और हकीम जाकिर हुसैन नासिर को लेकर जब सांसद शहाबुद्दीन के पास गए तो वहां पर लोकदल के राष्ट्रीय अध्यक्ष कैप्टन अब्बास अली भी बैठे थे। जब हमने सांसद को पूरी बात बताई तो पहले तो उन्हें यकीन नहीं आया लेकिन नासिर की हालत देखकर सबसे पहले उन्होंने डीएम नसीम जैदी को फोन किया और जांच करने की बात कही। इसके बाद उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर व उस समय जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रमण्यम स्वामी को बुलाकर प्रेस वार्ता की और पूरे घटनाक्रम की उच्च स्तरीय जांच कराने की मांग की। पांच जून को पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर, सुब्रमण्यम स्वामी के नेतृत्व में सैकड़ों लोग ने मुरादनगर गंनहर से लेकर दिल्ली के संसद भवन तक पैदल मार्च निकाला था। इसके बाद प्रदेश सरकार ने घटना की सीबीसीआईडी जांच करने के आदेश जारी किए।

बढ़ते दबाव के बाद हुई रिपोर्ट दर्ज
मामला दिल्ली तक पहुंचने के बाद उस समय के तत्कालीन डीएम डॉ. नसीब जैदी ने मसूरी झाल के पास से सभी शवों को नहर से बाहर निकलवाकर पहले उनका पोस्टमार्टम कराया और फिर मसूरी थाने में रिपोर्ट दर्ज कराई थी ।

थाने ले जाने की बात कह घर से उठाया था

किदवई नगर निवासी हाजी हासिम के ममेरे भाई शहजाद और उसके पडमेसी यासीन को पीएसी ने घर से उठाया था। आज तक उनका कोई सुराग नहीं मिल सका है। बाद में पता चला कि पीएसी ने थाने ले जाने की बात कहकर जिन युवकों को ट्रक में बैठाया था, उन सभी को वे मुरादनगर स्थित गंगनहर पर ले गए और गोली मार उन्हें गंगनहर में डाल दिया।

प्रमुख शिक्षाविद् विनोद कुमार माहेश्वरी के मुताबिक उस रात वे गाजियाबाद से लौट रहे थे। मुरादनगर गंगनहर पुल के निकट उन्होंने पीएसी के ट्रक को खड़े देखा था। रात के समय हाईवे से हटकर खड़े ट्रक को देखकर जब उन्होंने ट्रक के पास खड़े जवानों से कारण पूछा तो उन्होंने उन्हें वहां से चले जाने को कहा, जिसके बाद वे वहां से आ गए। बाद में अखबारों के माध्यम से पता चला कि उस रात कुछ युवकों को गोली मारकर नहर में फेंका गया था।

अबूपुर निवासी बलराम सिंह का कहना है उस रात गर्मी अधिक होने के कारण वे अपने मकान की छत पर सो रहे थे। रात के समय रह रहकर धमाकों की आवाज आ रही थी। गांव वाले इन धमाकों को पटाखों की आवाज मान रहे थे।

वैशाली स्थित 41वीं पीएसी में फैसले से सब अनजान
ट्रांस हिंडन। वैशाली स्थित 41वीं पीएसी का नाजारा शनिवार को आम दिनों जैसा ही था। यहां तैनात जवानों से बात की गई तो किसी को फैसले के संबंध में कोई जानकारी नहीं थी। पीएसी में तैनात डिप्टी कमांडेंट किरण यादव ने बताया कि बात पुरानी हो गई है। मौजूदा समय यहां पर उस दौर का कोई भी जवान तैनात नहीं है। ज्यादातर लोग सेवानिवृत्त हो गए होंगे या फिर किसी अन्य पीएसी में उनकी तैनाती हो गई होगी।

कब क्या हुआ
-अप्रैल 1987 में मेरठ दंगा हुआ, जिस पर काबू भी कर लिया गया।
-18 और 19 मई 1987 को शहर में फिर दंगा भड़क गया, लेकिन हाशिमपुरा और आसपास के मोहल्ले शांत रहे?
-21 मई 1987 को हाशिमपुरा में एक युवक की हत्या के बाद माहौल गरमा गया।
-22 मई 1987 की रात को लेकर आरोप है कि पीएसी की 41वीं बटालियन के जवानों ने हाशिमपुरा से विशेष समुदाय के 43 लोगों को अगवाकर मुरादनगर में हत्या की और उनके शव गंगनहर में फेंक दिए। किसी तरह बच निकले पांच लोगों के कारण पूरा मामला खुला।
-30 मई 1987 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और मुख्यमंत्री वीर बहादुर सिंह ने मेरठ का दौरा किया।
-1988 में प्रदेश सरकार ने हाशिमपुरा कांड की सीबीसीआईडी जांच के आदेश दिए।
-सीबीसीआईडी की जांच में तत्कालीन गाजियाबाद डीएम नसीम जैदी, एसएसपी वीएन राय सहित पीएसी के  अधिकारियों और पुलिस जवानों के बयान दर्ज हुए।
-सीबीसीआईडी ने पीएसी के 37 जवानों और अधिकारियों को आरोपी माना था।
-एक जून 1995 को प्रदेश सरकार ने 19 जवानों और अधिकारियों पर मुकदमा चलाने की अनुमति दी।
-बाद में 20 मई 1997 को मायावती सरकार ने 18 पर मुकदमे की अनुमति दी।
-1996 में गाजियाबाद के सीजेएम कोर्ट ने सभी आरोपी जवानों और अधिकारियों के खिलाफ वॉरंट जारी किया।
-23 बार जमानती वॉरंट जारी हुआ।
-2000 में गाजियाबाद कोर्ट में 16 आरोपियों ने सरेंडर किया।
-ट्रायल में देरी पर पीड़ितों ने 2001 में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की।
-सितंबर-2002 में सुप्रीम कोर्ट ने यह केस दिल्ली की तीसहजारी कोर्ट में ट्रांसफर कर दिया।
-नवंबर-2004 तक यह मामला प्रदेश सरकार की ओर से विशेष लोक अभियोजक की नियुक्ति के अभाव में बिना सुनवाई के लंबित रहा।
-15 जुलाई 2006 से दिल्ली की विशेष अदालत में यह मुकदमा शुरू हुआ।
-तब से 21 जनवरी 2015 कोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया। 
-21 मार्च 2015 को कोर्ट ने सभी आरोपियों को बरी किया।

कुल 43 लोगों की हत्या हाशिमपुरा कांड में हुई-

मृतक का नाम        उम्र
1- कमरुद्दीन        22 वर्ष
2- कदीर        50 वर्ष
3- हाजी शमीम        43 वर्ष
4- इकबाल उर्फ बाली    29 वर्ष
5- मो.यामिन         65 वर्ष
6- मो. नईम        50 वर्ष
7- अशरफ        20 वर्ष
8- सिराज         22 वर्ष
9- हाजी मुस्तकीम    55 वर्ष
10-इस्लामुद्दीन        21 वर्ष
11- जावेद        13 वर्ष
12- जहीर अहमद    45 वर्ष
13- अय्यूब        17 वर्ष
14- कय्यूम        14 वर्ष
15- मो.यूनुस        13 वर्ष
16- नईम        15 वर्ष
17- अलाउद्दीन        16 वर्ष
18- अखलाक        45 वर्ष
19- महताब        20 वर्ष
20- सदरुद्दीन        35 वर्ष
21- आसिफ        18 वर्ष
22- जमशेद        18 वर्ष
23- शमशाद        15 वर्ष
24- निजामुद्दीन        16 वर्ष
25- अब्दुल हक        24 वर्ष
26- रिजवान        22 वर्ष
27- नईम            14 वर्ष
28- मुन्ना            40 वर्ष
29- मोईनुद्दीन        40 वर्ष
30- कौशर अली    15 वर्ष
31- मो.नसीम        17 वर्ष
32- मो.यूसुफ         24 वर्ष
33- मो. शाकिर        18 वर्ष
34- मोईनुद्दीन         35 वर्ष
35- अब्दुल माजिद    70 वर्ष
36- मास्टर हनीफ    56 वर्ष
37- दीन मोहम्मद    24 वर्ष
38- मो.हुसैन        40 वर्ष
39- जमील अहमद    43 वर्ष
40- मो.सलीम        37 वर्ष
41- मो.नईम        रिकॉर्ड नहीं उपलब्ध
42- इस्लामुद्दीन        51 वर्ष
43- अब्दुल अजीज     रिकॉर्ड नहीं उपलब्ध


पीएसी के इन अधिकारियों, जवानों पर था हत्या का आरोप
1- सुरेन्द्र पाल सिंह, पीएसी कंपनी कमांडर (मृत)
2- सुरेश चंद्र शर्मा
3- निरंजन लाल
4- कमल सिंह
5- बुद्धि सिंह
6- कुश कुमार(मृत)
7- वसंत वल्लभ
8- कुंवर पाल सिंह
9- बुद्धा सिंह।
10- रामवीर सिंह
11- लीलाधर
12- रामबीर सिंह
13- मोहकम सिंह
14- शमीउल्लाह
15- श्रवण कुमार
16- जयपाल सिंह
17- ओमप्रकाश(मृत)
18- रामध्यान
19- महेश प्रसाद

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