उड़ते ताबूत बने चीता और चेतक की विदाई की तैयारी
आंतरिक दवाब के कारण रक्षा मंत्रालय चेतक एवं चीता हेलीकॉप्टरों को विदा करने की तैयारी में है। योजना यह है कि उड़ते ताबूत बन चुके इन पुरानी मशीनों की जगह भविष्य में दो इंजन के हेलीकॉप्टर इस्तेमाल में...
आंतरिक दवाब के कारण रक्षा मंत्रालय चेतक एवं चीता हेलीकॉप्टरों को विदा करने की तैयारी में है। योजना यह है कि उड़ते ताबूत बन चुके इन पुरानी मशीनों की जगह भविष्य में दो इंजन के हेलीकॉप्टर इस्तेमाल में लाए जाएं। इसके लिए हिन्दुस्तान एयरोनाटिकल लिमिटेड (एचएएल) द्वारा विकसित किए जा रहे हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टरों (एलसीएच) पर विचार किया जा रहा है। एचएएल को एलसीएच परियोजना में तेजी लाने के निर्देश दिए गए हैं।
एचएएल ने 1960-70 के दशक में फ्रांस की कंपनियों से चीता एवं चेतक हैलीकॉप्टरों के लिए तकनीक हासिल की थी और उसके बाद स्वदेशी का ठप्पा लगाकर इनका उत्पादन शुरू किया। सेना, वायुसेना और नौसेना में ये एक इंजन वाले हेलीकॉप्टर छोटे-मोटे कई किस्म के कामों के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं। लेकिन इनकी बढ़ती दुर्घटनाओं ने सरकार की मुश्किल बढ़ा दी है।
एचएएल ने अब तक 300 चेतक एवं 275 चीता हेलीकॉप्टर बनाए हैं जिनमें से कई छोटे देशों को बेचे गए हैं। लेकिन पिछले दो दशकों में बड़े पैमाने पर चीता और चेतक दुर्घटना के शिकार हुए हैं। 191 चीता एवं चेतक क्रैश हुए हैं जिनमें करीब तीन सौ सैन्यकर्मियों की मौत हुई हैं। विदेशों से भी इनके क्रैश हेने की खबर है।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अभी 120 चेतक एवं चीता हैलीकॉप्टर प्रचलन में हैं। मंत्रलय के समक्ष एक और नैतिक संकट हाल में तब खड़ा हो गया जब इन पायलटों की पत्नियों की एसोसिएशन ने एक ऑनलाइन अभियान चलाकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रक्षा मंत्री मनोहर पार्रिकर से इनका परिचालन बंद करने की मांग की।
रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार एलसीएच को इनके विकल्प के रूप में देखा जा रहा है लेकिन असल दिक्कत यह है कि एचएएल ने 2018 से पहले इनका उत्पादन शुरू कर पाने में असमर्थता जताई है। विभिन्न परीक्षणों में ये खरा उतरा है।