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यूपी में उर्दू को दूसरी भाषा के रूप में मंजूरी

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में उर्दू को सरकारी कामकाज की दूसरी भाषा घोषित करने के फैसले पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाते हुए कहा कि देश के भाषाई कानून सख्त नहीं बल्कि भाषाई पंथनिरपेक्षता का लक्ष्य हासिल...

यूपी में उर्दू को दूसरी भाषा के रूप में मंजूरी
लाइव हिन्दुस्तान टीमThu, 04 Sep 2014 09:13 PM
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सुप्रीम कोर्ट ने यूपी में उर्दू को सरकारी कामकाज की दूसरी भाषा घोषित करने के फैसले पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगाते हुए कहा कि देश के भाषाई कानून सख्त नहीं बल्कि भाषाई पंथनिरपेक्षता का लक्ष्य हासिल करने के लिए उदार हैं।

मुख्य न्यायाधीश आरएम लोढा की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने उप्र हिन्दी साहित्य सम्मेलन की अपील पर गुरुवार को दी व्यवस्था में कहा कि संविधान राज्य सरकार को हिन्दी के अतिरिक्त एक या उससे अधिक भाषाओं के इस्तेमाल से नहीं रोकता।

संविधान पीठ ने कहा कि किसी राज्य की सरकारी भाषा या भाषाओं से संबंधित अनुच्छेद 345 में ऐसा कुछ नहीं है जो हिन्दी के अतिरिक्त राज्य में एक या अधिक भाषाओं को दूसरी भाषा घोषित करने से रोकता है। इसलिए राज्य में उर्दू को दूसरी शासकीय भाषा का दर्जा देने वाला यूपी शासकीय भाषा (संशोधन) कानून 1989 पूरी तरह से वैध है। यूपी की पैरवी अधिवक्ता आरपी मेहरोत्रा ने की। 

शीर्ष अदालत ने कहा कि बिहार, हरियाणा, झारखंड, मध्यप्रदेश, उत्तराखंड और दिल्ली जैसे कई राज्यों ने हिन्दी के अतिरिक्त दूसरी भाषाओं को भी सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में मान्यता दी है। पीठ ने कहा कि यदि संविधान इसकी इजाजत नहीं देता तो ऐसा संभव नहीं हो पाता। दिल्ली में हिन्दी के साथ ही पंजाब और उर्दू को दूसरी सरकारी कामकाज की भाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है।

संविधान पीठ ने कहा कि हिन्दी को स्पष्ट रूप से या अलग से राज्य में सरकारी भाषा के रूप में अपनाए जाने का उल्लेख होने की वजह से उसे नहीं लगता कि संविधान किसी अन्य भाषा को सरकारी भाषा के रूप में अपनाने के विधानमंडल के विकल्प को बंद करता है।

चुनाव सामग्री उर्दू में हो
उर्दू को दूसरी भाषा का दर्जा देने के फैसले को सही ठहराने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने उर्दू डेवलपमेंट कौंसिल की याचिका रेगुलर बेंच के समक्ष भेज दी है। याचिका में कहा गया है कि जब प्रदेश में दूसरी भाषा उर्दू है तो पंचायत और स्थानीय निकाय के चुनावों की सामग्री जैसे चुनाव चिन्ह मतदाता सूची भी उर्दू में होनी चाहिए। लेकिन यूपी शासकीय भाषा (संशोधन) कानून 1989 में इसका प्रावधान नहीं है। इसके अनुसार प्रदेश में याचिकाओं को उर्दू में स्वीकार करना और उनका जवाब देना, पंजीकरण कार्यालयों में उर्दू के दस्तावेज स्वीकार करना, महत्वपूर्ण सरकारी नियम, विनियम तथा अधिसूचनाएं उर्दू में प्रकाशित करना, सार्वजनिक महत्व के आदेश और परिपत्र उर्दू में भी जारी करना, गजट का उर्दू अनुवाद प्रकाशित करना और महत्वपूर्ण साइनबोर्डों को उर्दू में प्रदर्शित करना ही शामिल है।

घटनाक्रम :
यूपी ने शासकीय भाषा (संशोधन) आध्यादेश, 1982 पास किया जिससे शासकीय भाषा कानून, 1951 में धारा 3 जोड़ी गई और उर्दू को प्रदेश में दूसरी शासकीय भाषा बनाया गया।
1989 में विधानसभा ने कानून पास किया
1989 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा इसे इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई
1996 में हाईकोर्ट ने कानून को सही ठहराया
1997 में इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती
2003 में सुप्रीम कोर्ट ने मामला तीन जजों को रेफर किया
2003 में ही तीन जजों ने मामला पांच जजों की पीठ को रेफर  

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