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निर्भया डॉक्यूमेंट्री पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के वकीलों से जवाब मांगा

उच्चतम न्यायालय ने 16 दिसंबर की सामूहिक बलात्कार घटना के दोषियों की पैरवी कर रहे दो वकीलों से आज जवाब मांगा, जिनके खिलाफ एक महिला अधिवक्ताओं के निकाय ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में महिलाओं के खिलाफ...

निर्भया डॉक्यूमेंट्री पर सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों के वकीलों से जवाब मांगा
एजेंसीTue, 24 Mar 2015 02:53 PM
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उच्चतम न्यायालय ने 16 दिसंबर की सामूहिक बलात्कार घटना के दोषियों की पैरवी कर रहे दो वकीलों से आज जवाब मांगा, जिनके खिलाफ एक महिला अधिवक्ताओं के निकाय ने बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में महिलाओं के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी करने के लिए कार्रवाई की मांग की है।

न्यायमूर्ति वी गोपाल गौड़ा और न्यायमूर्ति सी नागप्पन की पीठ ने कहा, हमने दलीलों, तर्क वितर्क और याचिका में की गई शिकायतों को सुना है। तथ्यात्मक और कानूनी दलीलों के मददेनजर मामले पर विचार करने की आवश्यकता है। पीठ ने दोनों वकीलों- एमएल शर्मा और एपी सिंह को नोटिस जारी किया और दो हफ्ते के भीतर उनसे जवाब मांगा है।

उच्चतम न्यायालय महिला अधिवक्ता एसोसिएशन ने अपनी याचिका में मांग की थी कि दोनों वकीलों के शीर्ष अदालत परिसर में प्रवेश पर रोक लगाई जाए। इसमें आरोप लगाया गया था कि बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में उनकी टिप्पणियां अमानवीय, लज्जाजनक, अनुचित, पक्षपातपूर्ण, अपमानजनक और दूषित सोच की परिचायक हैं तथा महिलाओं की गरिमा का सीधा अपमान और उल्लंघन हैं, खासकर उनके लिए जो उच्चतम न्यायालय में प्रैक्टिस कर रही हैं। उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन (एससीबीए) ने महिला अधिवक्ता एसोसिएशन की याचिका का समर्थन किया।

महिला एसोसिएशन की पैरवी कर रहीं वरिष्ठ अधिवक्ता विभा दत्ता मखीजा ने कहा कि उच्चतम न्यायालय को इसका नेतत्व करना चाहिए और दिखाना चाहिए कि इस तरह के विचार कतई बर्दाश्त के काबिल नहीं हैं। उन्होंने कहा, हमें एक ऐसे माहौल की आवश्यकता है जहां हम निडर हों। उन्होंने कहा कि दोनों अधिवक्ताओं को संवेदनशील बनाए जाने की आवश्यकता है।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (एससीबीए) की ओर से पेश हुए अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने कहा कि लैंगिक संवेदनशीलता नियमन का उपयोगी और उचित कार्यान्वयन होना चाहिए। उन्होंने कहा, एससीबीए ने शर्मा के खिलाफ कार्रवाई करने का एकमत से फैसला किया है। याचिका में कहा गया था कि शीर्ष अदालत में काम कर रही महिला अधिवक्ताओं के संविधान में प्रदत्त बुनियादी अधिकारों का संरक्षण किया जाए जिससे वे गरिमा के साथ बिना किसी लैंगिक भेदभाव के काम कर सकें।

टिप्पणियां 16 दिसंबर 2012 की सामूहिक बलात्कार की घटना पर बीबीसी द्वारा बनाई गई डॉक्यूमेंट्री इंडियाज डॉटर में की गई थीं। अधिवक्ता महालक्ष्मी पावनी के जरिए दायर की गई याचिका में लैंगिक संवेदनशीलता समिति अध्यक्ष और शीर्ष अदालत के रजिस्ट्रार को पक्ष बनाया गया है और दोनों अधिवक्ताओं की टिप्पणी की प्रति सौंपी गई है।

याचिका में यह भी कहा गया कि शर्मा और सिंह को निर्देश दिया जाए कि वे ऐसे विचार व्यक्त करने के लिए मीडिया में सार्वजनिक रूप से माफी मांगें जो महिलाओं की गरिमा के पूरी तरह खिलाफ हैं और वे भविष्य में इस तरह के बयान न दें। इसमें यह भी कहा गया था कि दोनों अधिवक्ताओं को यह भी निर्देश दिया जाए कि वे अपने बयान वापस लें और उनकी माफी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री में भी शामिल की जानी चाहिए।

याचिका में कहा गया कि दोनों अधिवक्ताओं द्वारा की गई टिप्पणियां दर्शाती हैं कि उनके मन में किसी महिला के लिए सम्मान नहीं है और वे महिलाओं को वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं समझते। इसमें यह भी कहा गया था कि इन वकीलों का आचरण दर्शाता है कि बार के सिद्धांतों के बावजूद उन्हें समाज की कोई चिंता नहीं है और यह संवैधानिक मूल्यों तथा मानवाधिकारों का पूरी तरह निरादर है। याचिका में कहा गया कि यह अपराध से कहीं ज्यादा है।

 

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