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मोदी के मंत्री: हर्षवर्धन, अनंत, रविशंकर, मेनका और गौड़ा

भारतीय राजनीति में नए युग की शुरुआत करते हुए नरेन्द्र मोदी ने आज प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनके नेतृत्व में राजग सरकार में 45 मंत्री हैं। इस बार के लोकसभा चुनावों ने 30 साल बाद स्पष्ट बहुमत के साथ...

मोदी के मंत्री: हर्षवर्धन, अनंत, रविशंकर, मेनका और गौड़ा
लाइव हिन्दुस्तान टीमMon, 26 May 2014 09:59 PM
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भारतीय राजनीति में नए युग की शुरुआत करते हुए नरेन्द्र मोदी ने आज प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। उनके नेतृत्व में राजग सरकार में 45 मंत्री हैं। इस बार के लोकसभा चुनावों ने 30 साल बाद स्पष्ट बहुमत के साथ कोई सरकार दी है। मोदी ने भाजपा को अकेले दम पर विजय दिलायी। 63 वर्षीय मोदी देश के 15वें प्रधानमंत्री बने। राष्ट्रपति भवन के प्रांगण में 3,000 से अधिक लोगों की मौजूदगी में हुए भव्य समारोह में उन्हें और उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने शपथ दिलायी।
   
राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, एम वेंकैया नायडू, नितिन गडकरी, उमा भारती, मेनका गांधी, अनंत कुमार, रवि शंकर प्रसाद, स्मृति ईरानी और हर्षवर्धन ने कैबिनेट मंत्रियों के रूप में शपथ ली। सहयोगी दलों में से लोजपा के राम विलास पासवान, शिरोमणि अकाली दल से हरसिमरत कौर, शिवसेना से अनंत गीते और तेदेपा से अशोक गजपति राजू ने बतौर कैबिनेट मंत्री शपथ ली।
   
राजनीति, उद्योग, सिनेमा और धार्मिक क्षेत्र की नामचीन हस्तियां, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ सहित दक्षेस देशों के नेता मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के साक्षी बने। मोदी ने पद एवं गोपनीयता की शपथ हिन्दी में ली। उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, निवर्तमान प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी पी चिदंबरम, शरद पवार, प्रफुल्ल पटेल और पल्लम राजू, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी, भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, निवर्तमान लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, प्रतिभा पाटिल भी समारोह में शामिल हुए।

डॉक्टर हर्षवर्धन: मोदी सरकार के डॉक्टर साहब  
सहज व्यवहार और सादगी की पहचान रखने वाले डॉक्टर हर्षवर्धन को दिल्ली भाजपा की इकाई को एकजुट करने तथा लोकसभा चुनाव में पार्टी के आक्रामक प्रचार अभियान का नेतत्व करने का श्रेय जाता है। उन्हें मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री की हैसियत से शामिल किया गया है। युवा अवस्था से ही आरएसएस से जुड़े 59 साल के हर्षवर्धन पिछले साल के दिल्ली विधानसभा चुनाव में पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे। इसी साल फरवरी में वह विजय गोयल के स्थान पर दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष बने। उनके नेतृत्व में भाजपा ने दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की। दिल्ली विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुमत के आंकड़े से चार सीटों के अंतर से दूर रह गई थी तो पेशे से चिकित्सक हर्षवर्धन ने सरकार गठन का प्रयास नहीं करने का फैसला किया और वह इस रूख पर कायम रहे। हर्षवर्धन ने साल 1993 में अपने राजनीतिक पारी की शुरुआत की और वह पूर्वी दिल्ली की कृष्णानगर विधानसभा सीट से निर्वाचित हुए। इसके बाद से वह लगातार चार बार इस सीट पर चुनाव जीत चुके हैं। अपने लोगों के बीच डॉक्टर साहब के नाम से मशहूर हर्षवर्धन ने दिल्ली में स्वास्थ मंत्री रहते हुए पोलियो उन्मूलन को लेकर काफी प्रयास किए। उनका आरएसएस के साथ काफी सौहार्दपूर्ण संबंध है और उनके करीब आज भी उन्हें स्वयंसेवक कहते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार हर्षवर्धन के बारे में कहा था, वह अपने विशेष चिकित्सा ज्ञान का इस्तेमाल करने के सराहनीय उद्देश्य तथा आम आदमी की सेवा करने के अनुभव के साथ राजनीति में शामिल हुए हैं। दिल्ली सरकार मंत्री के तौर पर असर छोड़ने के साथ हर्षवर्धन ने पार्टी संगठन में भी अपनी क्षमता का लोहा मनवाया। साल 2003 के विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद पार्टी लगभग बिखर सी गई थी, लेकिन हर्षवर्धन ने उसे एकजुट करने का काम किया। साल 2003 के आखिर में वह दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष बने। पार्टी के ढांचे से नए सिरे से बनाने का श्रेय उन्हें दिया जाता हैं। उनके नेतृत्व में भाजपा अप्रैल 2007 में दिल्ली नगर निगम में सत्तासीन हुई और 2008 में दिल्ली छावनी बोर्ड के चुनाव में पार्टी को जीत मिली। हर्षवर्धन की सादगी और मित्रवत नेतृत्व शैली की सराहना उनके विरोधी दल के लोग भी करते हैं। उनका जन्म 13 दिसंबर, 1954 को हुआ था और उन्होंने मध्य दिल्ली के दरियागंज स्थित एंग्लो-संस्कत विक्टोरिया जुबली सीनियर सेंकडरी स्कूल से स्कूली शिक्षा हासिल की। बाद में उन्होंने कानपुर के जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस और ईएनटी में विशेज्ञता की पढ़ाई की।
   
दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री के तौर पर पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम के अलावा यहां धूम्रपान निषेध तथा स्वास्थ्य संरक्षण विधेयक लाने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता हैं। बाद में केंद्रीय स्तर पर ही इस तरह का विधेयक लाया गया। विश्व स्वास्थ संगठन ने उनके योगदान को सराहते हुए मई, 1998 में उन्हें प्रशस्ति पदक (डायरेक्टर जनरल कमेंडेशन मेडल) से सम्मानित किया। हर्षवर्धन ने दिसंबर, 2004 में पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम की पृष्ठभूमि पर एक टेल ऑफ टू ड्रॉप्स नामक पुस्तक लिखी, जिसका लोकार्पण अटल बिहारी वाजपेयी ने किया था। हर्षवर्धन की पत्नी नूतन खुद चिकित्सक थीं, लेकिन उन्होंने गृहणी बनने को तवज्जो दी। उनके दो बेटे एक बेटी हैं। हर्षवर्धन श्यामा प्रसाद मुखर्जी और दीन दयाल उपाध्याय की विचारधारा को आगे बढ़ाने के काम में शामिल रहे।

अनंत कुमार: कर्नाटक के कद्दावर नेता
राष्ट्रीय राजनीति में नब्बे के दशक के मध्य में कर्नाटक के कद्दावर नेता अनंत कुमार को अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में केन्द्रीय मंत्रिमंडल में नागर विमानन मंत्री के रूप में शामिल किया था। इस बार के चुनाव में अनंत कुमार ने दक्षिण बेंगलूर से यूआईडीएआई के पूर्व अध्यक्ष कांग्रेस उम्मीदवार नंदन नीलेकणि को परास्त किया। अनंत कुमार ने छात्र राजनीति की शुरूआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ की। एबीवीपी के महत्वपूर्ण पदाधिकारी रहते हुए वह कर्नाटक के लोकप्रिय एवं प्रभावशाली नेता बन गये। वह एबीवीपी में राज्य सचिव और राष्ट्रीय सचिव के पदों पर रहे। फिर वह भाजपा युवा मोर्चा के राज्य अध्यक्ष बने। 1995 में वह राष्ट्रीय सचिव नियुक्त हुए। 1996 में वह पहली बार लोकसभा के लिए बेंगलूर दक्षिण से चुने गये। वह रेलवे मंत्रालय और उद्योग मंत्रालय के तहत आने वाली समितियों के सदस्य भी रहे। वाजपेयी सरकार में वह पर्यटन, खेल एवं युवा मामले, संस्कृति, शहरी विकास और गरीबी उन्मूलन सहित विभिन्न महत्वपूर्ण मंत्रालयों में रहे। अच्छी राजनीतिक समक्ष रखने वाले अनंत कुमार पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के करीब रहने में सफल रहे हैं, फिर चाहे अटल बिहारी वाजपेयी या आडवाणी की अगुवाई वाला दौर रहा हो या अब मोदी के नेतृत्व वाला कालखंड हो। कुमार और उनके प्रदेश से आने वाले येदियुरप्पा को परस्पर राजनीतिक विरोध के लिए जाना जाता है। अकसर इस तरह के आरोप भी लगते रहे हैं कि जब लिंगायत समुदाय के दिग्गज येदियुरप्पा मुख्यमंत्री थे, तब कुमार कर्नाटक के मामलों में काफी हस्तक्षेप करते थे।

रविशंकर प्रसाद: अनुभव के पिटारे के साथ लौटे प्रसाद
भाजपा के स्पष्ट वक्ता के तौर पर मशहूर और टेलीविजन की चर्चाओं में अकसर दिखाई देने वाले रविशंकर प्रसाद अनुभव के पिटारे के साथ केन्द्रीय मंत्रिमंडल में वापस लौटे हैं। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वह चार वर्ष तक विभिन्न विभागों के प्रभारी रहे। रविशंकर प्रसाद ने अपना राजनीतिक जीवन भले ही लालू प्रसाद के नेतत्व में पटना विश्वविद्यालय के तेजतर्रार छात्र नेता के तौर पर शुरू किया, लेकिन उनका भाजपा में आना बहुत स्वाभाविक रहा क्योंकि उनके वकील पिता ठाकुर प्रसाद जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। उंची जाति के कश्यप परिवार में 30 अगस्त 1954 को जन्मे रविशंकर ने पटना विश्वविद्यालय से स्नातक, स्नातकोत्तर और फिर कानून की पढ़ाई की। उन्होंने 1970 के दशक में छात्र नेता के तौर पर अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया और इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर शिरकत की। उन्होंने 1974 के जेपी आंदोलन में हिस्सा लिया और आपातकाल के दौरान जेल गए।
    
अपने कालेज के दिनों में वह पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के सहायक महासचिव बने। लालू प्रसाद संघ के अध्यक्ष थे। 1980 से पटना उच्च न्यायालय में वकालत की प्रेक्टिस के बाद उन्हें 1999 में पटना उच्च न्यायालय का वरिष्ठ एडवोकेट बनाया गया और वर्ष 2000 में वह उच्चतम न्यायालय में वरिष्ठ एडवोकेट बने। राजद प्रमुख लालू प्रसाद के खिलाफ करोड़ों रूपए के चारा घोटाले में प्रसाद मुख्य अधिवक्ता थे। उन्होंने हवाला मामले में भाजपा के वयोवद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी की पैरवी की। 2010 में प्रसाद अयोध्या टाइटल मुकदमे में मुख्य अधिवक्ता रहे और इलाहाबाद उच्च न्यायालय में पेश हुए।
    
प्रसाद को वर्ष 2000 में केन्द्रीय कोयला एवं खनन राज्य मंत्री बनाया गया और जुलाई 2002 में विधि एवं न्याय राज्य मंत्री का अतिरिक्त प्रभार दिया गया, जहां उन्हें फास्ट ट्रैक अदालतों की प्रक्रिया में तेजी लाने का श्रेय जाता है। बाद में राजग शासन में सूचना और प्रसारण मंत्री के तौर पर उन्होंने रेडियो, टेलीविजन और एनीमेशन के क्षेत्र में सुधारों की शुरूआत की। उन्हें गोवा को भारतीय अन्तरराष्ट्रीय फिल्म समारोह का स्थायी आयोजन स्थल बनाने का श्रेय भी जाता है। भाजपा के 10 साल तक सत्ता से दूर रहने के दौरान रविशंकर प्रसाद पार्टी का प्रमुख सार्वजनिक चेहरा बने रहे। वह प्रमुख मामलों पर अपने विचार स्पष्ट शब्दों में व्यक्त करते रहे और कई वर्ष तक पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रहे। वह वर्ष 2012 में बिहार से राज्य सभा सदस्य के रूप में तीसरी बार चुने गए। रविशंकर प्रसाद की बहन अनुराधा प्रसाद मीडिया से जुड़ी हैं और कांग्रेस नेता तथा पूर्व आईपीएल अध्यक्ष राजीव शुक्ला की पत्नी हैं।

मेनका गांधी: भगवा पार्टी की गांधी सदस्य
बेजुबान पशुओं के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ने वाली और भाजपा की गांधी परिवार की सदस्य मेनका गांधी को आज कैबिनेट मंत्री के तौर पर मोदी सरकार में शामिल किया गया। सात बार की सांसद और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की छोटी पुत्रवधू मेनका गांधी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतत्व में बनी पिछली राजग सरकार में भी मंत्री थीं। उन्हें देश के पहले पशु कल्याण मंत्री के तौर पर मंत्रिपरिषद में स्थान दिया गया था। हालिया लोकसभा चुनाव में मेनका गांधी पीलीभीत से विजय हासिल करने में कामयाब रहीं। उन्होंने समाजवादी पार्टी के अपने प्रतिद्वंद्वी बुद्धसेन वर्मा को तीन लाख से ज्यादा वोट से पराजित किया। मेनका और उनके पुत्र वरूण गांधी दोनो ही कांग्रेस के गांधी परिवार की तरह संसद के निचले सदन के सदस्य हैं। कांग्रेस के गांधी परिवार में सोनिया गांधी और उनके पुत्र राहुल गांधी भी लोकसभा सदस्य हैं। मेनका गांधी ने 1980 में अपने पति संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मृत्यु के बाद सक्रिय राजनीति में कदम रखा और मार्च 1983 में अपना राजनीतिक दल बनाया, जिसकी वजह से अपनी सास इंदिरा गांधी से उनकी अनबन हो गई। मेनका ने 1984 में अमेठी से लोकसभा का चुनाव लड़ा और पूर्व प्रधानमंत्री और अपने जेठ राजीव गांधी से हार गईं। हालांकि मेनका गांधी वाजपेयी के तहत राजग सरकार का हिस्सा रहीं, लेकिन उन्होंने औपचारिक तौर पर भाजपा की सदस्यता 2004 में ही ग्रहण की है।

सदानंद गौड़ा: केंद्र में पहली बार भूमिका    
जनसंघ के सदस्य के रूप में 70 के दशक में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत करने वाले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री डी वी सदानंद अब केंद्र में मंत्री के तौर पर भूमिका अदा करेंगे। चेहरे पर हमेशा मुस्कान रखने वाले 61 वर्षीय गौड़ा को उस समय राष्ट्रीय फलक पर पहचान मिली जब उनके प्रदेश अध्यक्ष रहते मई 2008 में भाजपा ने पहली बार दक्षिण भारत के किसी राज्य में विधानसभा चुनाव में अपना परचम फहराया था। जनता पार्टी के विभाजन के बाद कर्नाटक में भाजपा के सदस्य बने गौड़ा 2011 में मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की बागडोर संभालने के पहले लंबे समय तक जमीनी स्तर पर कार्य करते रहे हैं। कॉलेज के दिनों से राजनीति में सक्रिय गौड़ा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के रास्ते जनसंघ में आये थे। वह 1983 से 88 के बीच पार्टी की युवा शाखा जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय सचिव रहे, 2003-2004 में राज्य भाजपा के सचिव और 2004 में पार्टी के राष्ट्रीय सचिव बने।
    
वह पुत्तुर निर्वाचन क्षेत्र से 1994 और 1999 में कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गये। दूसरी बार विधायक बनने पर उन्हें सदन में विपक्ष का उप नेता बनाया गया। कुशल प्रशासक और प्रमुख नीति निर्माता गौड़ा ने कर्नाटक विधानसभा की विभिन्न समितियों में कार्य किया। वह 2003 में संसद की लोकलेखा समिति के अध्यक्ष बने। 2004 में वह मेंगलूर निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली को पराजित कर 14वीं लोकसभा में पहुंचे थे। 2006 में पार्टी ने उन्हें कर्नाटक प्रदेश की जिम्मेवारी सौंपी। मई 2008 में राज्य विधानसभा चुनाव में पार्टी को उनकी अगुवाई में भारी सफलता मिली। कर्नाटक का मुख्यमंत्री बनने से पहले 2009 में वह उडुपी चिकमंगलूर निर्वाचन क्षेत्र से 15वीं लोकसभा के सदस्य चुने गये थे। अपने गुरू माने जाने वाले येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद अगस्त 2011 में वह कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें अपनी पार्टी की छवि को सुधारने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ी जिसे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते भारी नुकसान पहुंचा था। बाद में जगदीश शेट्टार ने गौड़ा का स्थान लिया। मई 2013 में विधानसभा चुनावों में मिली भारी पराजय के बाद भाजपा ने उन्हें कर्नाटक विधान परिषद में विपक्ष का नेता बनाया। हाल में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में वह बेंगलूर उत्तर निर्वाचन क्षेत्र से चुने गये हैं।

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