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पोस्टमार्टम रिपोर्टों ने कई बार कराई है पुलिस की फजीहत

मोहनलालगंज कांड में एक बार फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट सवालों के घेरे में है। इसे लेकर पुलिस के दावे संदेह की नज़रों से देखे जा रहे हैं। कहना गलत न होगा कि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों की लापरवाही के...

पोस्टमार्टम रिपोर्टों ने कई बार कराई है पुलिस की फजीहत
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 22 Jul 2014 10:39 PM
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मोहनलालगंज कांड में एक बार फिर पोस्टमार्टम रिपोर्ट सवालों के घेरे में है। इसे लेकर पुलिस के दावे संदेह की नज़रों से देखे जा रहे हैं। कहना गलत न होगा कि पोस्टमार्टम करने वाले डाक्टरों की लापरवाही के चलते लगातार पुलिस को फजीहत ङोलनी पड़ रही है।

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है जबकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट को लेकर पुलिस की जांच सवालों के घेरे में आई है। सबसे पहले आरुषि हत्याकांड में पुलिस की भूमिका सवालों के घेरे में आ गई थी। आरुषि कांड में पोस्टमार्टम रिपोर्ट को बदलने की भी कोशिशों के आरोप लगे। इसके बाद प्रदेश सरकार ने सभी सीएमओ और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को निर्देश दिए थे कि वैज्ञानिक तौर-तरीके से पोस्टमार्टम कराया जाए। साथ ही डीएनए नमूने लेने के लिए भी प्रक्रिया अपनाई जाए।

इन निर्देशों का कितना असर  हुआ इसका खुलासा लखनऊ जिला कारागार में डा. वाई.एस.सचान की मौत के मामले में सामने आया। डा. सचान की मौत को डाक्टरों ने हत्या बताया जबकि सीबीआई के विशेषज्ञों ने जांच में पाया कि पोस्टमार्टम गंभीरता से नहीं किया गया। शरीर की चोटों का गहराई से अध्ययन नहीं हुआ और खुद पहुंचाई गई चोटों को कातिल द्वारा पहुंचाई गई चोट करार दिया गया।

कुछ इसी तर्ज पर बदायूं के दोहरे हत्याकांड में भी पोस्टमार्टम रिपोर्ट को लेकर सीबीआई ने सवाल उठाए हैं। पोस्टमार्टम में दुराचार को लेकर सीबीआई और बदायूं के डाक्टरों में मतैक्य नहीं है। सीबीआई का मानना है कि दुराचार को लेकर पुख्ता रिपोर्ट न लिखना विधिक रूप से ठीक नहीं है। खैर मोहनलालगंज कांड में अब नए सिरे से विवाद उठ खड़ा हुआ है। यह रिपोर्ट सुनवाई के वक्त अभियोजन पक्ष के लिए मुसीबत का सबब बने तो हैरत की बात नहीं है।

 

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