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सुब्रह्मण्यम जयशंकर को विदेश सचिव बनाए जाने के पीछे की असली वजह

नये विदेश सचिव सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने आज सुबह साउथ ब्लॉक स्थित विदेश मंत्रालय में अपना कार्यभार संभाल लिया।         बुधवार देर रात विदेश सचिव सुजाता सिंह को निर्धारित...

सुब्रह्मण्यम जयशंकर को विदेश सचिव बनाए जाने के पीछे की असली वजह
एजेंसीThu, 29 Jan 2015 04:24 PM
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नये विदेश सचिव सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने आज सुबह साउथ ब्लॉक स्थित विदेश मंत्रालय में अपना कार्यभार संभाल लिया।
       
बुधवार देर रात विदेश सचिव सुजाता सिंह को निर्धारित कार्य अवधि से छह माह पहले ही तत्काल प्रभाव से पद से हटा दिया गया और अमेरिका में भारत के राजदूत जयशंकर को नया विदेश सचिव नियुक्त करने संबंधी आदेश जारी किये गये थे।
   
सूत्रों के अनुसार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार शाम हुई मंत्रिमंडल की नियुक्ति समिति की बैठक में यह फैसला लिया था। जयशंकर सुबह साढे नौ बजे साउथ ब्लॉक पहुंचे और अपना कार्यभार ग्रहण किया। पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा कि उन्हें बहुत बड़ी जिम्मेदारी मिली है और वह इसके लिये चुने जाने पर खुद को सम्मानित महसूस कर रहे हैं।
      
जब उनसे पूछा गया कि कया वह अपनी नियुक्ति को अकस्मात घटना मानते हैं तो उन्होंने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि इस वक्त उनसे ऐसे सवाल पूछे जाने चाहिये। जयशंकर दिन में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज से मुलाकात करेगें।

भारतीय विदेश सेवा की 1976 बैच की अधिकारी सुजाता सिंह को एक अगस्त 2013 को विदेश सचिव नियुक्त किया गया था और उनका कार्यकाल 31 जुलाई 2015 तक का था। लेकिन सरकार ने उनके कार्यकाल के छह माह पहले ही उन्हें पद मुक्त कर दिया। सूत्रों के अनुसार सुजाता सिंह ने सेवा से त्यागपत्र भी दे दिया है।
    
भारतीय विदेश सेवा की 1977 बैच के अधिकारी जयशंकर का कार्यकाल उनके पद संभालने की तिथि से दो वर्ष की अवधि के लिए होगा। इस पद के लिये जयशंकर का नाम 2013 में भी चर्चा में था। लेकिन तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने जर्मनी में राजदूत सुजाता सिंह को विदेश सचिव नियुक्त किया था।
    
सुजाता सिंह को बीच कार्यकाल में हटाकर जयशंकर को इस पदपर लाया जाना भारतीय कूटनीति में अहम बदलाव के संकेत के रूप में देखा जा रहा है।

जयशंकर को परमाणु कूटनीति का विशेषज्ञ माना जाता है। नई दिल्ली में जन्मे 60 वर्षीय जयशंकर देश के तेज तर्रार कूटनीतिज्ञों में गिने जाते हैं। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से परमाणु कूटनीति में विशेषज्ञता के साथ अंतरराष्ट्रीय राजनीति का अध्ययन किया है।

माना जा रहा है कि मोदी की सफल अमेरिका यात्रा और अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को गणतंत्र दिवस के अतिथि के तौर पर भारत लाने के पीछे जयशंकर की अहम भूमिका थी।

वह असैन्य परमाणु समझौते को लेकर अमेरिका से बात करने वाले संपर्क समूह के भी सदस्य थे। माना जा रहा है कि उनकी इन उपलब्धियों से प्रभावित होकर मोदी सरकार ने उन्हें नया विदेश सचिव बनाने का फैसला लिया।

जयशंकर के पिता के. सुबह्मण्यम देश के जानेमाने सामरिक विश्लेषक थे। अमेरिका में राजदूत बनाए जाने से पहले जयशंकर चीन, सिंगापुर और चेक गणराज्य में भारत के राजदूत रह चुके हैं।

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