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भारत ने दोहराया, अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कदापि नहीं

भारत ने परमाणु हथियारों के प्रथम इस्तेमाल न करने और परमाणु हथियार विहीन देशों पर हमला न करने की अपनी पारंपरिक नीति को दोहराते हुए ऐसे समझौतों में शामिल होने की पेशकश की है, जिसमें ये दोनों सिद्धांत...

भारत ने दोहराया, अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कदापि नहीं
एजेंसीWed, 22 Oct 2014 02:55 PM
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भारत ने परमाणु हथियारों के प्रथम इस्तेमाल न करने और परमाणु हथियार विहीन देशों पर हमला न करने की अपनी पारंपरिक नीति को दोहराते हुए ऐसे समझौतों में शामिल होने की पेशकश की है, जिसमें ये दोनों सिद्धांत शामिल हों। लेकिन भारत ने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने से एक बार फिर इंकार कर दिया है। 

संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत डी.बी.वेंकटेश वर्मा ने सोमवार को कहा कि एक जिम्मेदार परमाणु संपन्न देश होने के नाते भारत की, प्रथम परमाणु हथियार इस्तेमाल न करने और परमाणु हथियार विहीन देश पर हमला न करने पर आधारित एक विश्वसनीय न्यूनतम प्रतिरोधात्मक नीति है। हम इसे द्विपक्षीय या बहुपक्षीय कानूनी रूप से बाध्यकारी व्यवस्थाओं में बदलने के लिए तैयार हैं।’’
 
निशस्त्रीकरण सम्मेलन में भारत के स्थायी प्रतिनिधि वर्मा निशस्त्रीकरण एवं अंतर्राष्ट्रीय शांति पर संयुक्त राष्ट्र महासभा की समिति की एक बैठक में बोल रहे थे।

वर्मा ने कहा, ‘‘भारत सार्वभौमिक, गैर-भेदभावपूर्ण, प्रामाणीकृत परमाणु निरस्त्रीकरण की अपनी प्रतिबद्धता पर अडिग है, लेकिन परमाणु संपन्न देश होने के नाते भारत के अप्रसार संधि में शामिल होने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता।’’ इसके लिए भारत को अपने परमाणु हथियारों को एकतरफा त्यागने की जरूरत होगी।

परमाणु हथियारों पर प्रतिबंध को प्रभावित करने वाले एक अन्य मामले पर वर्मा ने विखंडनीय सामग्री कटौती संधि (एफएमसीटी) पर बातचीत को नई दिल्ली का समुचित समर्थन देने की पेशकश की।

वर्मा ने कहा, ‘‘हम परमाणु निशस्त्रीकरण को जो प्राथमिकता देते हैं, उसे बरकरार रखते हुए हम एक ऐसे एफएमसीटी के निशस्त्रीकरण सम्मेलन में बातचीत को समर्थन देते हैं, जो भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों को पूरा करे।’’

ऐसी किसी संधि से उन सामग्रियों के निर्माण पर रोक लगेगी, जिनका परमाणु हथियार बनाने में इस्तेमाल किया जा सकता है।

वर्मा ने परमाणु हथियार निवारक संकल्प पर एक मसौदा प्रस्ताव फिर से पेश करते हुए परमाणु हथियार संपन्न उन देशों की आलोचना की, जिन्होंने इस प्रस्तावित उपाय के खिलाफ बार-बार वोट दिया है। यह उपाय 1982 में पहली बार पेश किया गया था।

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