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यूपीः साइबर वार में कूदी आईएसआई

आईएसआई आतंकियों को मदद देने के लिए अब देश में स्लीपिंग माड्युल्स बनाने के साथ ही अब ‘साइबर वार’ छेड़ने में जुटी है। इसके लिए आईएसआई ने विशेषज्ञ कंप्यूटर हैकर का सहारा लिया है तो दूसरी ओर...

यूपीः साइबर वार में कूदी आईएसआई
लाइव हिन्दुस्तान टीमTue, 19 Aug 2014 10:40 PM
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आईएसआई आतंकियों को मदद देने के लिए अब देश में स्लीपिंग माड्युल्स बनाने के साथ ही अब ‘साइबर वार’ छेड़ने में जुटी है। इसके लिए आईएसआई ने विशेषज्ञ कंप्यूटर हैकर का सहारा लिया है तो दूसरी ओर ‘स्लेव कंप्यूटर’ के जरिए जरूरी सूचनाएं चुराई जा रही हैं। यह खुलासा और नई माडस आपरेंडी का पता मेरठ में धरे गए आईएसआई एजेंट आसिफ अली से पूछताछ में हुआ है।

एक जमाना था जब आईएसआई मोबाइल फोन और हवाले के जरिए एजेंटों को आर्थिक मदद पहुंचाती थी। फिर बदले जामने के साथ बैंक खातों में रकम जमा कराने का सिलसिला शुरू हुआ।  लेकिन अब थ्री जी मोबाइल फोनों के जरिए न केवल सैन्य संस्थानों की फोटोग्राफ हासिल की जा रही है, बल्कि वीडियो कॉलिंग के जरिए तमाम तस्वीरों को भेजा जा रहा है। आसिफ अली ने कबूला है कि आईएसआई का जोर अब सैन्य जासूसों को ‘स्लेव कंप्यूटर’ सप्लाई करने पर है। इसके तहत ‘ट्रोजन वायरेस’ का सहारा लेकर सभी सूचनाएं सीधे आईएसआई के सर्वर पर पहुंचाई जा रही हैं। इसके लिए ‘मैक आईडी’ नंबर का सहारा लिया जा रहा है।
एसटीएफ को पता चला है कि आईएसआई ने इसके लिए कुछ हैकरों को लगाया है। इसमें कुछ चीनी खुफिया एजेंसियां भी लगी हैं। इस संबंध में पहले भी आईबी ने अलर्ट जारी कर एक खास कंपनी के लैपटॉप अथवा कंप्यूटर का सुरक्षा एजेंसियों द्वारा इस्तेमाल न करने की हिदायत दी थी। एसटीएफ के एसपी उमेश कुमार सिंह के मुताबिक, सैन्य संस्थानों को इस बारे में आगाह किया जाएगा। साथ ही एसटीएफ सैन्य संस्थानों के उन कर्मचारियों के बारे में मध्य कमान अथवा संबंधित सैन्य अधिकारियों को पत्र लिखकर जानकारी देगी, जिनके आईएसआई एजेंट से रिश्तों के ठोस सुबूत मिले हैं।

क्या है ट्रोजन वायरेस
यह एक ऐसा प्रोग्राम या यूं कहें वायरस है, जिसके सहारे कंप्यूटर अथवा लैपटाप के मैक नंबर की मदद लेकर सूचनाओं की चोरी की जाती है। कुछ खुफिया एजेंसियां और हैकर इसका इस्तेमाल कर विरोधी देश की महत्वपूर्ण जानकारियां जुटाते रहे हैं। इस प्रोग्राम में खासियत यह होती है कि जो ‘होस्ट’ होता है यानी जो इसका इस्तेमाल करता है उसे सूचनाएं खुद-ब-खुद पहुंच जाती हैं। वैसे यह आमतौर पर प्रतिबंधित है लेकिन मैक नंबर के जरिए आईएसआई इसकी मदद से भारतीय सैन्य सूचनाएं चुरा रही है।

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