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प्लास्टिक कचरे पर नकेल कसने की तैयारी में सरकार

केंद्र सरकार प्लास्टिक कचरे को हतोत्साहित करने के लिए प्लास्टिक की थैलियों के निर्माण के नियमों में बदलाव करने जा रही है। इस दिशा में मौजूदा नियमों को सख्त बनाया जा रही है। भविष्य में प्लास्टिक...

प्लास्टिक कचरे पर नकेल कसने की तैयारी में सरकार
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 23 Aug 2015 04:35 PM
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केंद्र सरकार प्लास्टिक कचरे को हतोत्साहित करने के लिए प्लास्टिक की थैलियों के निर्माण के नियमों में बदलाव करने जा रही है। इस दिशा में मौजूदा नियमों को सख्त बनाया जा रही है। भविष्य में प्लास्टिक थैलियों के निर्माण के लिए न्यूनतम 50 माइक्रोन की मोटाई निर्धारित की जा रही है। इससे पलती थैलियों के निर्माण, बिक्री और इस्तेमाल पर पूरी तरह से रोक होगी।

वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने प्लास्टिक अपशिष्ट (प्रबंधन एवं निपटान) नियमों को जल्दी अंतिम रूप दिया जाएगा। ये नियम पहली बार 2011 में बने थे और तब प्लास्टिक थैलियों के निर्माण के लिए न्यूनतम 40 माइक्रोन की मोटाई रखी गई थी। लेकिन कुछ समय पूर्व जारी नए मसौदे में इसे बढ़ाकर 50 किया जा रहा है।

इस कवायद के पीछे सरकार का मकसद चरणबद्ध तरीके से प्लास्टिक के इस्तेमाल को हतोत्साहित करना है। एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार अगले चरण में इस मोटाई को फिर बढ़ाया जा सकेगा। बहरहाल, मसौदे पर सलाह-मशविरे की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और अगले कुछ दिनों में सरकार नए नियमों को अधिसूचित करेगी।

एक लाख जुर्माना-मंत्रालय के अनुसार प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम पर्यावरण संरक्षण कानून का हिस्सा हैं। इन नियमों का उल्लंघन करने पर एक लाख रुपये तक का जुर्माना और पांच साल की कैद हो सकती है। सरकार ने नए मसौदे में जुर्माने की राशि को भी बढ़ाने का प्रस्ताव किया। एक लाख की राशि को न्यूनतम किया जा सकता है जबकि अभी यह अधिकतम है।

दिल्ली में ढाई सौ शिकायतें-मंत्रालय के अनुसार देश में 40 माइक्रोन से कम मोटाई वाले प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल को लेकर दिल्ली में 258 मामले सामने आए हैं जिनमें जांच और कार्रवाई की जा रही है। हरियाणश में 739 में दंडित किया गया। जम्मू-कश्मीर में 128 इकाइयों को बंद किया गया है। चंडीगढ़ में एक उद्योग को दंडित किया गया है। इसी प्रकार अन्य राज्यों में भी कार्रवाई हुई है। लेकिन इस मामले में ठोस निगरानी तंत्र की कमी है।
 
नए नियमों की कुछ और प्रमुख बातें
-प्लास्टिक कैरी बैग पूरी तरह से रंगहीन होगा। इसमें वही पिग्मेंट शामिल होंगे जो दवाओं, खाद्य पदार्थ और पानी के साथ मिलने पर घातक नहीं हों।
-यदि बैग पुनचक्रित प्लास्टिक से बना है तो उस पर यह बात दर्ज करनी होगी और उसे बैग में खाद्य पदार्थो को ले जाना प्रतिबंधित होगा।
-प्लास्टिक बैगों के निर्माताओं को राज्य प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड में खुद को पंजीकृत कराकर नंबर हासिल करना होगा। इस नंबर के दिखाकर ही वे प्लास्टिग बैग बनाने के लिए कच्चा माल खरीद सकेंगे। अपंजीकृत उद्यमियों को कच्चे प्लास्टिक की बिक्री नहीं होगी।
-प्लास्टिक कचरा प्रबंधन के लिए निकाय, उत्पादक और उपभोक्ता सभी की सामूहिक जिम्मेदारी होगी।
-ग्राम क्षेत्रों में ग्राम पंचयतों पर इसकी जवाबदेही होगी।
-उत्पादकों पर प्लास्टिक बैगों पर अपना नाम और रजिस्ट्रेशन नंबर भी दर्ज कराना होगा।
-ग्राहकों को प्लास्टिक बैग मुफ्त में नहीं दिए जा सकेंगे। स्थानीय निकाय एजेंसियां बैगों के आकार और मोटाई के हिसाब से न्यूनतम मूल्य तय करेंगी।
 
देश में प्लास्टिक कचरा
वर्ष 2013-14 के दौरान देश में 1.1 करोड़ टन प्लास्टिक की खपत हुई है। जिसका एक बड़ा हिस्सा प्लास्टिक के बैगों के निर्माण में होता है।
-एक अध्ययन के अनुसार देश के 60 प्रमुख शहरों में 3501 टन प्लास्टिक कचरा निकलता है।
खतरे
-प्लास्टिक थैलियों या अन्य कचरे के सही निस्तारण नहीं होने से शहरों में नालियों के जाम होने का खतरा
-हरे रंग की थैलियों को पशु चारा समझकर खा बैठने हैं जिससे उनकी मृत्यु भी हो जाती है।
-जमीन में प्लास्टिक कचरा जमा होने के बाद बारिश के दौरान पानी जमीन के भीतर नहीं पहुंच पाता जिससे भूजल रिचार्ज नहीं होता है।
-प्लास्टिक थैलियों में रखे जाने वाले खाद्य पदार्थ भी प्रदूषित होते हैं।

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