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अफसरों ने रुचि ली तो हारने लगा कुपोषण

करमहां बुजुर्ग में सात महीने के सुभांश के दिल में छेद है। चार महीने सीडीओ प्रशांत कुमार ने इस गांव को गोद लिया तब सुभांश का वजन चार किलो था। इस दौरान काउंसिलिंग और सामुदायिक कर्मियों की देखरेख में...

अफसरों ने रुचि ली तो हारने लगा कुपोषण
लाइव हिन्दुस्तान टीमWed, 25 Feb 2015 08:42 PM
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करमहां बुजुर्ग में सात महीने के सुभांश के दिल में छेद है। चार महीने सीडीओ प्रशांत कुमार ने इस गांव को गोद लिया तब सुभांश का वजन चार किलो था। इस दौरान काउंसिलिंग और सामुदायिक कर्मियों की देखरेख में सुभांश की हालत में लगातार सुधार हो रहा है। वजन में भी 1.4 किलो की बढ़ोतरी हुई है। इसी गांव की चार साल तीन माह की गुड़िया अति कुपोषित से सामान्य हो चुकी है। वहीं चार साल की आंचल और नौ महीने की अंशिका का भी कुपोषण कम हुआ है।

प्रदेश में शिशु मृत्यु दर (42 प्रति हजार) में कमी लाने के उद्देश्य से एक नवम्बर 2014 को मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य कुपोषण मिशन की शुरुआत की थी। 27 फरवरी को मिशन के महानिदेशक कामरान रिजवी पहली बार गोरखपुर के दौरे पर आ रहे हैं। वह कुपोषण से निपटने के उपायों की समीक्षा के साथ एक गांव का मौका मुआयना भी करेंगे। रामनगर कड़जहां में इस मुआयने की तैयारियां भी हो रही हैं। इस गांव को डीएम रंजन कुमार ने गोद लिया है।

नवम्बर में उनके साथ जिले के 45 जिला स्तरीय अधिकारियों ने दो-दो गांव गोद लिए थे। चार महीने की निगरानी में रामनगर कड़जहां के 10 अतिकुपोषित बच्चों में पांच मध्यम कुपोषण की श्रेणी में आ गए हैं। जिला कार्यक्रम अधिकारी हेमंत सिंह के मुताबिक डीएम के गोद लिए जंगल धूसड़ और सीडीओ के ठाकुरपुर नम्बर एक गांव में भी हालत में लगातार सुधार हो रहा है। जंगल धूसड़ में 18 तो ठाकुरपुर नम्बर एक में 12 अतिकुपोषित बच्चे मिले थे।

हालांकि मंजिल अभी बहुत दूर हैं, क्योंकि मुट्टीभर ग्राम सभाएं ही गोद ली गई हैं। शेष ग्राम सभाओं में निगरानी का स्तर अब भी बेहद निराशाजनक है।

क्या है कुपोषण
लम्बे समय तक शरीर को आवश्यक संतुलित आहार न मिलना ही कुपोषण है। इससे रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। रोग आसानी से शिकार बना लेते हैं। बच्चों में सूखा रोग और रतौंधी और स्त्रियों में रक्त की कमी और घेंघा जैसी बीमारियां आम हैं। कुपोषण का कारण गरीबी है, जिससे पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता।

कुपोषण के दुष्परिणाम
पूर्वांचल में इंसेफेलाइटिस की बड़ी वजह है
शरीर की वृद्धि रुक जाती है
मांसपेशिया ढीली पड़ जातीं या सिकुड़ जाती हैं
झुर्रियों से भरी पीले रंग की त्वचा
थकान, उत्साह की कमी, चिड़चिड़ापन, घबराहट
बालों का रुखा और चमक रहित हो जाना
चेहरे की चमक गायब, आंखें धंसना और चारों ओर काला निशान
नींद और पाचन तंत्र की गड़बड़ी
हाथ पैर पतले पड़ जाना, पेट बढ़ना और शरीर में सूजन

 कुपोषण मापने के तरीके
विश्व स्वास्थ्य संगठन बाल वृद्धि मानकों के अनुसार बने ग्रोथ चार्ट पर वजन के हिसाब से तीन श्रेणियों में कुपोषण का मापन किया जाता है। ग्राफ चार्ट पर हरे रंग तक पहुंचने वाले बच्चों को सामान्य, पीली पप्ती तक मध्यम कुपोषित और लाल पप्ती वालों को अति कुपोषित माना जाता है। हर आयु वर्ग के लिए वजन के अलग-अलग मानक हैं। मसलन, एक साल तक बच्चा यदि सात किलोग्राम से कम है तो अति कुपोषित, 7 किलो से 7.7 किलो तक मध्यम कुपोषित और उसके ऊपर सामान्य माना जाता है।
(जैसा कि भटहट के बाल विकास परियोजना अधिकारी राधाकृष्ण त्रिपाठी ने बताया)

गर्भावस्था से ही कुपोषण की जंग
कुपोषण की जंग गर्भावस्था से ही शुरू हो जाती है। हर गर्भवती महिला को मातृत्व शिशु रक्षा कार्ड बनाकर प्रसव के छह महीने बाद तक हफ्ते में एक किलो के हिसाब से पंजीरी दिए जाने का नियम है। इसी तरह छह महीने से तीन साल के बच्चों को हर हफ्ते घर ले जाने के लिए पंजीरी दी जाती है। तीन से छह साल तक के बच्चों को आंगनबाड़ी में रोज 50 ग्राम पंजीरी के साथ-साथ गर्म पका खाना देने का नियम है।

पिछले साल तीन महीने ही पका भोजन
आंगनबाड़ी केंद्रों पर बजट न मिलने की वजह से कई-कई महीने खाना नहीं पक पाता। पिछले साल जिले के 4032 में से बहुतेरे केंद्रों को सिर्फ तीन महीने का पैसा मिला। जिले में ऐसे 205 आंगनबाड़ी केंद्रों भी हैं जहां कोई तैनात नहीं।

गोद लिए गांवों में क्या हो रहा
अधिकारियों द्वारा गोद लिए गांवों में बच्चों के मां-बाप की नियमित काउंसलिंग की जा रही है। स्वास्थ्य विभाग की टीमें सेहत की नियमित जांच करती हैं। अधिकारी गांव की साफ सफाई और अलग-अलग विभागों द्वारा किए जा रहे कामों की निगरानी करते हैं।

 

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