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विदेश मंत्रालय में हिंदी पर जोर

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मंत्रालय में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नई कार्य संस्कृति विकसित करने का प्रयास कर रही हैं। दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए तैयार की गई वेबसाइट का शनिवार को लोकार्पण करते...

विदेश मंत्रालय में हिंदी पर जोर
लाइव हिन्दुस्तान टीमSun, 17 May 2015 06:28 PM
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विदेश मंत्री सुषमा स्वराज मंत्रालय में हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नई कार्य संस्कृति विकसित करने का प्रयास कर रही हैं। दसवें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए तैयार की गई वेबसाइट का शनिवार को लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि मुझसे जब कोई विदेशी प्रतिनिधि भारत में आकर अपनी भाषा में बात करता है तो मैं भी उनसे अंग्रेजी में नहीं हिंदी में ही बात करती हूं।

स्वराज ने कहा कि जब मुझसे विदेश से आए प्रतिनिधि अंग्रेजी में बात करते हैं,  तो मैं उनसे अंग्रेजी में बात करती हूं, क्योंकि इसके लिए अनुवादक की जरूरत नहीं होती। लेकिन जब कोई चीन का प्रतिनिधि चीनी में, जापान का प्रतिनिधि जापानी में रसियन रूसी भाषा में या अरब देशों के प्रतिनिधि अरबी में बात करते हैं, तो मैं उनसे हिंदी में बात करती हूं। अगर दुभाषिया ही चाहिए, भाषा का अनुवाद ही करना है, तो वह अंग्रेजी से अनुवाद करके क्यों बताएं। हिंदी के लिए ऐसा क्यों न हो। विदेश मंत्री ने कहा कि इसीलिए मैंने वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय को यह दायित्व दिया है कि वे तमाम विदेशी भाषाओं से संवाद करने के लिए हिंदी अनुवादक तैयार करें।


वेबसाइट लांच
अंग्रेजी का आधिपत्य क्यों?

विदेश मंत्री ने कहा कि जब मैंने विदेश मंत्रालय में काम संभाला और इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफेयर (आईसीडब्लूए) में गई तो मैंने उनसे पूछा कि आपने हिंदी में कोई पुस्तक छापी। कोई अनुवाद हिंदी में कराया या कोई शोध पत्र या लेख हिंदी में लिखा? हर सवाल के जवाब में ना का उत्तर मिला।

पढ़ाई हिंदी में क्यों नहीं
स्वराज ने कहा कि हम क्यों समझते हैं कि विज्ञान, मेडिकल,इंजीनियरिंग की पढ़ाई केवल अंग्रेजी में हो सकती है। उन्होंने कहा कि इसका सबसे ज्यादा नुकसान उन बच्चों को होता है जो हिंदी माध्यम से पढ़कर आते हैं। उनपर भाषा और जानकारी हासिल करने का दोहरा बोझ होता है। यह बहुत बड़ी कमी है। विदेश मंत्री ने चीन,जापान,जर्मनी सहित दुनिया के तमाम देशों का उदाहरण देते हुए कहा कि ज्ञान,विज्ञान और पढ़ाई अपनी भाषाओं में कराके शिखर पर पहुंचे हैं तो हम ऐसा क्यों नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि हम अपनी भाषा को इतना अक्षम क्यों मानते हैं।

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